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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

किसानों की आत्महत्याओं पर सर्वोच्च न्यायालय ने लिया संज्ञान

  • 01 May 2017
  • 6 min read

संदर्भ
केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा 13 राज्यों पर किये गए एक अध्ययन में किसानों की आत्महत्याओं के सभी संभावित कारणों पर प्रकाश डाला गया है|

प्रमुख बिंदु 
मंत्रालय की कृषि आर्थिक इकाई (बंगलुरु स्थित सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन {Institute for Social and Economic Change –ISEC} संस्थान के कृषि और ग्रामीण परिवर्तन केंद्र{Agricultural and Rural Transformation Centre –ADRTC})ने तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, छत्तीसगढ़, पंजाब, गुजरात, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में होने वाली किसानों की आत्महत्याओं  की जाँच की|

यह निष्कर्ष निकाला गया कि प्रत्येक किसान की आत्महत्या का कारण फसल का बर्बाद होना, मानसून की अनियमितता, जल संसाधनों की अपर्याप्त उपलब्धता, कीटों के हमले, रोग, ऋण, खेती और सामाजिक कारण इत्यादि थे|

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों से यह स्पष्ट हुआ है कि पिछले दो वर्षों में किसानों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है| 

2015 तक की एनसीआरबी की रिपोर्ट में किसानों की आत्महत्याओं के कुछ अन्य कारण भी बताए गए जैसे-दिवालियापन, खेती से संबंधित मुद्दे, पारिवारिक समस्याएँ, अस्वस्थता, दवा का दुरुपयोग अथवा शराब का सेवन|

न्यायालय में दायर हलफ़नामा
पिछले सप्ताह केन्द्रीय मंत्रालय द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दायर किये गए एक हलफ़नामे में यह उल्लेख किया गया था कि केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय के इस विचार से सहमत है कि किसानों की मृत्यु एक दुर्भाग्यपूर्ण मुद्दा है परन्तु इस मुद्दे का समाधान करने का दायित्व प्रत्येक राज्य का है|

इस हलफ़नामे में फसल बीमा, फसल और उद्यम विविधीकरण,न्यूनतम समर्थन मूल्य(जिसमें उत्पादन की लागत और उचित लाभ शामिल हो) के माध्यम से सरकार का हस्तक्षेप,समर्थक समूहों के रूप में किसानों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और अनौपचारिक ऋण बाज़ार के विनियमन का भी सुझाव दिया गया था|

किसानों के लिये राहत के उपाय
हालाँकि सरकार द्वारा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की ओर भी संकेत किया गया है| इस योजना के अंतर्गत किसानों को पूरा बीमा उपलब्ध कराया जाता है|

वर्ष 2016 में खरीफ की फसल के दौरान इस योजना के तहत 390.02 लाख किसानों को उनकी 386.75 लाख हेक्टेयर भूमि के लिये 1,41,883.30 करोड़ रुपये का बीमा उपलब्ध कराया गया| कृषि मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2016-17 में रबी की फसल के दौरान 172.94 लाख किसानों को कुल  69,851.37 लाख करोड़ रुपये उपलब्ध कराए गए|

मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2017-18 के बजट में सरकार ने कृषि ऋण के लक्ष्य 9 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपये कर दिया है|

ऋणों का पुनर्निर्धारण
इसके अतिरिक्त भारतीय रिज़र्व बैंक ने राज्य और ज़िला स्तर के बैंकों को ऋणों के पुननिर्धारण(यदि 33% या उससे अधिक फसल का नुकसान हो जाए) की भी अनुमति प्रदान की है| 

सरकार ने 14 अप्रैल 2016 को लागू हुई किसान क्रेडिट कार्ड योजना और ई-राष्ट्रीय कृषि बाज़ार योजना का भी उल्लेख किया| इन योजनाओं का उद्देश्य कृषि वस्तुओं हेतु राज्य अथवा राष्ट्र के लिये एकल एकीकृत बाज़ार का निर्माण करना था|

निष्कर्ष
विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान में केंद्र और राज्यों के मध्य कई विवाद हैं जिसके कारण किसानों को कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा| उनके अनुसार यह स्पष्ट है कि किसानों की आजीविका से संबंधित सभी महत्त्वपूर्ण नीतियों जैसे-न्यूनतम समर्थन मूल्य, ऋण, फसल बीमा, आपदा के दौरान मुआवज़ा, व्यापार नीतियाँ इत्यादि पर केंद्र का नियंत्रण होता है| प्रायः ऐसे मामलों में राज्यों से कोई परामर्श नहीं लिया जाता है|

अधिकांश किसानों को उसकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी प्राप्त नहीं होता है| वर्तमान में सभी नीतियों का स्वरूप किसानों के हितों के विपरीत हैं| जब तक इन नीतियों भलिभाँति क्रियान्वयन नहीं होता तब तक किसानों की आत्महत्याओं पर रोक नहीं लगाई जा सकती है| एक स्थाई कृषि आय आयोग का गठन भी एक सुधारवादी प्रयास होगा|

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