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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

स्वतंत्र निदेशकों का मूल्यांकन

  • 08 Apr 2017
  • 5 min read

समाचारों में क्यों ?
सुधारों की बाट जोहता कॉर्पोरेट प्रशासन में एक आशा की किरण दिखाई दे रही है, विदित हो कि सूचीबद्ध कंपनियों के स्वतंत्र निदेशकों का मूल्यांकन अब ‘नामांकन और पारिश्रमिक समिति’ (Nomination and Remuneration Committee) करेगी और उस मूल्यांकन के आधार पर ही यह निर्णय लिया जाएगा कि वे कंपनी के स्वतंत्र निदेशक के पद पर बने रहेंगे अथवा नहीं। इससे पहले बाह्य संस्थाओं द्वारा निदेशकों का मूल्यांकन उनकी इच्छा पर निर्भर करता था और प्रत्येक स्वतंत्र निदेशक एक-दूसरे के कार्यों का मूल्यांकन करता रहता था।

स्वतंत्र निदेशकों के अधिकार और कर्तव्य

  • सेबी (The Securities and Exchange Board of India) के नियमों एवं कंपनी अधिनियम के तहत स्वतंत्र निदेशकों का कर्तव्य है कि वे शेयरधारकों( विशेष तौर पर अल्पसंख्यक शेयरधारकों) के हितों की रक्षा करें।
  • स्वतंत्र निदेशकों को प्रत्येक वर्ष अलग-अलग मिलकर, कम्पनी अध्यक्ष के प्रदर्शन की समीक्षा करनी होती है और निदेशक मंडल को किसी भी मुद्दे की जानकारी देनी होती है।
  • स्वतंत्र निदेशकों को ये अधिकार दिया गया है कि वे कंपनी के प्रमुख निर्णय के सबंध में भी आपत्ति जाहिर कर सकते हैं और ‘कम्पनी के प्रमोटर्स’ इन आपत्तियों की उपेक्षा नहीं कर सकते।

स्वतंत्र निदेशकों से सम्बन्धित समस्याएँ

  • स्वतंत्र निदेशकों के सम्बन्ध में सबसे बड़ी समस्या उनकी स्वतंत्रता को ही लेकर है, अक्सर ये देखा जाता है कि, कई भारतीय कंपनियों में स्वतंत्र निदेशक हमेशा स्वतंत्र नहीं होतें; भले ही वे तमाम मानकों पर खरे उतरें।
  • कुछ मामलों में तो यह भी देखा गया है कि उद्योगपति या संरक्षक उन पूर्व नौकरशाहों को यह पद देते हैं, जिन्होंने पिछले कुछ दिनों में उनके हक में कोई काम किया था।कुछ मामलों में तो उद्योगपति अपने संबंधियों को स्वतंत्र निदेशक बनाते हैं, जो शायद ही उनके फैसले की मुखालफत करते हैं।
  • लेकिन मसला सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। ऐसे स्वतंत्र निदेशक, जो ऊपर दी गई श्रेणी में नहीं आते, वे भी बमुश्किल उन शेयरधारकों या संरक्षकों के खिलाफ जाते हैं, जिन्होंने उन्हें इस ओहदे पर बिठाया होता है। असलियत में कुछ तो इनके कृतज्ञ होते हैं, क्योंकि उन्हें पर्याप्त वेतन मिलता है और कंपनी के फायदे में उनकी हिस्सेदारी होती है।

क्या हो आगे का रास्ता?

  • स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका को लेकर आज निवेशकों की उनसे अपेक्षा है कि वे सिर्फ कंपनियों के निदेशक मंडल की शोभा बढ़ाने का कार्य न करें बल्कि अपने संचित ज्ञान और अनुभव से कम्पनी के प्रबंधन की गुणवत्ता बढ़ाने, उनके कामकाज पर निगरानी रखने और शेयरधारकों की हितों की रक्षा के दायित्व का भी वहन करें।
  • स्वतंत्र निदेशकों को लेकर बना 2005 का कानून, उनके कार्यकाल से जुड़ा 2013 का कानून और महिला निदेशकों के संदर्भ में बना 2015 का कानून का बेहतर क्रियान्यवन, भारतीय कंपनियों के आंतरिक प्रशासन में सुधार और बोर्ड को बेहतर बना सकता है।
  • 2005 के कानून में जहाँ यह तय किया गया है कि सूचीबद्ध कंपनियों के बोर्ड में एक-तिहाई स्वतंत्र निदेशक होंगे, वहीं 2013 का कानून कहता है कि स्वतंत्र निदेशक अधिकतम दस वर्ष तक काम करेंगे यानी उन्हें लगातार दो कार्यकाल ही मिलेंगे।
  • 2015 के कानून में महिला अधिकारों की बात कही गई है और बोर्ड में कम से कम एक महिला निदेशक (वह स्वतंत्र हो भी सकती है और नहीं भी) रखने के निर्देश सूचीबद्ध कंपनियों को दिये गए हैं।

निष्कर्ष:
 इन कानूनों का थोड़ा-बहुत प्रभाव अवश्य देखने को मिला है,  लेकिन अंतत: किसी बोर्ड की बेहतरी इस बात पर निर्भर करेगी कि उसके स्वतंत्र निदेशक कितने कुशल हैं और उन्हें किस हद तक आज़ादी मिली हुई है। ऐसे में, स्वतंत्र निदेशकों के मूल्यांकन का यह कदम निश्चित ही सराहनीय है।

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