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सामाजिक न्याय

घरेलू हिंसा अधिनियम 2005

  • 29 May 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की पीठ ने घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act, 2005) की पुनः व्याख्या की जिसके तहत घरेलू कलह के किसी भी मामले में समानता एवं जीवन के अधिकार की रक्षा की बात कही गई।

प्रमुख बिंदु

  • न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ (D.Y. Chandrachud) एवं हेमंत गुप्ता (Hemant Gupta) की पीठ ने पानीपत सत्र न्यायाधीश के निर्णय की पुष्टि करते हुए घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की पुनः व्याख्या की है।
  • इस वाद के अनुसार दो भाई अपने पैतृक घर में संयुक्त परिवार के रूप में अलग-अलग मंजिलों पर रहते थे। लेकिन बड़े भाई की मृत्यु के बाद मृतक का छोटा भाई अपनी भाभी को घर में नहीं रहने दे रहा था। सत्र न्यायाधीश ने मृतक के भाई को मृतक की विधवा पत्नी और पुत्र के लिये सहायता राशि प्रदान करने का आदेश दिया।

नया प्रावधान क्या है?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदू अविभाजित परिवार (Hindu Undivided Family-HUF) के संदर्भ में ‘संबंध’ को निम्नलिखित आधार पर परिभाषित किया है-
  1. जब दो व्यक्ति विवाह करके साथ रहे चुके हों या फिर साथ रह रहे हों;
  2. जब दो व्यक्तियों के संबंध की प्रकृति विवाह की तरह हो और वे एक ही घर में रह रहे हों;
  3. कोई दत्तक सदस्य या अन्य सदस्य जो संयुक्त परिवार की भाँति रह रहा हो; उक्त लोगों के बीच जो आपसी सहयोग और तालमेल स्थापित होता है उसे ही संबंध कहते हैं।
  • न्यायालय ने साझा घर को भी परिभाषित करते हुए कहा कि जहाँ संयुक्त परिवार निवास करता है, प्रतिवादी (विधवा स्त्री) भी उस परिवार का सदस्य है, भले ही उसके पास घर में कोई अधिकार, उपनाम हो या न हो, वह साझा/संयुक्त परिवार का हिस्सा है।

domestic violence

घरेलू हिंसा क्या है?

  • घरेलू हिंसा अर्थात् कोई भी ऐसा कार्य जो किसी महिला एवं बच्चे (18 वर्ष से कम आयु के बालक एवं बालिका) के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन के संकट, आर्थिक क्षति और  ऐसी क्षति जो असहनीय हो तथा जिससे महिला व बच्चे को दुःख एवं अपमान सहना पड़े, इन सभी को घरेलू हिंसा के दायरे में शामिल किया जाता है।

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005

  • इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण का अधिनियम, 2005 है।
  • यह जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू होता है।
  • इस कानून में निहित सभी प्रावधानों का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिये यह समझना ज़रूरी है कि पीड़ित कौन होता है। यदि आप एक महिला हैं और रिश्तेदारों में कोई व्यक्ति आपके प्रति दुर्व्यवहार करता है तो आप इस अधिनियम के तहत पीड़ित हैंl
  • चूँकि इस कानून का उद्देश्य महिलाओं को रिश्तदारों के दुर्व्यवहार से संरक्षित करना है, इसलिये यह समझना भी ज़रूरी है कि घरेलू रिश्तेदारी या संबंध क्या है? ‘घरेलू रिश्तेदारी’ का आशय किन्हीं दो व्यक्तियों के बीच के उन संबंधों से है, जिसमें वे या तो साझी गृहस्थी में एक साथ रहते हैं या पहले कभी रह चुके होते हैं।

पृष्ठभूमि

घरेलू हिंसा अधिनियम से पहले विवाहित महिला के पास परिवार द्वारा मानसिक एवं शारीरिक रूप से प्रताडि़त किये जाने की दशा में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498-क के तहत शिकायत करने का प्रावधान था। दहेज निषेध अधिनियम, 1961 में वर्ष 1983 में हुए संशोधन के बाद धारा 498-क को जोड़ा गया। यह एक गैर-जमानती धारा है, जिसके अंतर्गत प्रतिवादियाें की गिरफ्तारी तो हो सकती है पर पीडि़त महिला को भरण-पोषण अथवा निवास जैसी सुविधा दिये जाने का प्रावधान शामिल नहीं है। जबकि घरेलू हिंसा कानून के अंतर्गत प्रतिवादियाें की गिरफ्तारी नही होती है लेकिन इसके अंतर्गत पीडि़त महिला को भरण-पोषण, निवास एवं बच्चाें के लिये अस्थायी संरक्षण की सुविधा का प्रावधान किया गया है।

स्रोत: द हिंदू

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