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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

फेल न करने की नीति पर पुनर्विचार की आवश्यकता

  • 07 Aug 2017
  • 5 min read

संदर्भ
प्राथमिक विद्यालय के स्तर तक अब तक चली आ रही बच्चों को फेल न करने की नीति को केंद्र सरकार अब समाप्त करने का मन बना चुकी है। प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने की दिशा में लिया गया यह निर्णय कई सवाल खड़े करता है। सरकार के इस निर्णय से विद्यालय छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में पुनः बढ़ोतरी हो सकती है। भारत को अपनी प्राथमिक शिक्षा में सुधार के लिये खुला और उदार दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। 

अधिक संख्या में बच्चों तक पहुँच 

  • भारत की प्राथमिक शिक्षा प्रणाली निश्चित रूप से अधिक से अधिक बच्चों तक पहुँच बनाने में सक्षम हुई है। परंतु इसे कैसे और बेहतर बनाया जाय, इसका उत्तर अभी भी नहीं मिला है।    
  • यह शिक्षा प्रणाली मुख्य रूप से प्रतियोगिता, परीक्षण और अधिक अंक पाने पर बल देती है, जबकि आवश्यकता अब बदल चुकी है।  
  • वर्तमान दौर की आवश्यकता है ऐसे मन- मस्तिष्क को उत्पन्न करने की है जो जिज्ञासु हो एवं नये-नये विचारों का सृजन करने में सक्षम हो। इस दृष्टि से मौजूदा शिक्षा प्रणाली का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। 

विद्यालय छोड़ने की दर

  • वर्तमान शिक्षा नीति  में सुधार के बावजूद विद्यालय छोड़ने की दर (dropt out rate) ज़ारी है। 
  • विद्यालय छोड़ने की दर 2015 में प्राथमिक स्तर पर लगभग 5% और माध्यमिक स्तर पर 17% से अधिक थी।  यह प्रवृति सरकारी स्कूलों में अधिक देखी गई है। 

शिक्षा का अधिकार

  • 2010 में  जब ‘नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम’ कानून बना, तब यह उम्मीद जगी कि यह उन सभी समस्याओं को दूर करने में सक्षम होगा जो बच्चों को कम से कम माध्यमिक स्तर तक स्कूली शिक्षा प्राप्त करने से रोकते थे। 
  • इस अधिनियम की धारा 16 ​​और 30 (1) में कक्षा 8 तक निरंतर स्कूली शिक्षा की गारंटी दी गई है जो फेल न करने की नीति की ही बात करता है। 
  • अतः फेल न करना (no detention) एक सुरक्षा है जिसे स्कूल शिक्षा में सुधार न कर पाने के एवज में इसे हटाकर सुधार की क्षतिपूर्ति नहीं की जानी चाहिये। 

परिणाम 

  • प्राथमिक स्तर पर फेल न करने की नीति को समाप्त कर कक्षा 5 या 6 से परीक्षा में विफल रहने वाले विद्यार्थियों को फेल करने की नीति को शुरू करने की केंद्रीय मंत्रिमंडल का  निर्णय, जल्दी स्कूल छोड़ने वाले बच्चों के उस दौर में लौट सकता है जिसको रोकना शिक्षा का अधिकार के उद्देश्यों में निहित था। 
  • ऐसा कदम बच्चों को सस्ते श्रमिक बनने की दिशा की ओर अग्रसर कर सकता है। 

कौशल प्रशिक्षण

  • वर्तमान मज़बूत आर्थिक विकास के युग में, जब कुशल श्रमिक बल की मांग और आपूर्ति के बीच एक बेमेल है, एक ऐसी विद्यालयी शिक्षा प्रणाली का निर्माण करना जो हर बच्चे का विकास सुनिश्चित करती हो, अभी भी एक चुनौती बनी हुई है। 
  • हमें एक ऐसी प्रगतिशील प्रणाली अपनानी होगी जो उन बच्चों के लिये प्राथमिक स्तर के बाद कौशल प्रशिक्षण का अवसर खोलेगा जो अकादमिक अध्ययनों के बदले कौशल अर्जित करना अधिक पसंद करते हों। 
  • इस तरह के एक मॉडल ने जर्मनी जैसे अनेक औद्योगिक देशों की दशकों से सेवा की है, जिससे वहाँ सभी का जीवन स्तर बेहतर हुआ है और साथ ही आर्थिक उत्पादकता भी सुनिश्चित हुई है। 

आगे क्या किया जाना चाहिये ?

  • शिक्षा का अधिकार कानून में निरंतर और व्यापक मूल्यांकन का प्रावधान है, जिसे वैज्ञानिक रूप से विकसित करने का समय सरकारों को नहीं मिला है। 
  • अतः कक्षा अध्यापन की गुणवत्ता बढ़ाने, शिक्षक की उपस्थिति की निरंतर निगरानी करने और प्राथमिक विद्यालय के बाद ऐसी योग्यता वाले सभी के लिये मुफ्त व्यावसायिक और औद्योगिक कौशल प्रशिक्षण की शुरुआत प्राथमिकता होनी चाहिये।
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