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डेली न्यूज़

शासन व्यवस्था

आपराधिक न्याय प्रणाली

  • 30 Apr 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ड्राफ्ट रूल ऑफ क्रिमिनल प्रैक्टिस, 2020, सर्वोच्च न्यायालय, भारतीय दंड संहिता।

मेन्स के लिये:

आपराधिक न्याय प्रणाली, विचाराधीन कैदी, अखिल भारतीय न्यायिक सेवा। 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों को अपने संबंधित राज्यों की आपराधिक कार्यवाही प्रणाली में कमियों और अक्षमता में सुधार के लिये दिशा-निर्देशों के एक सेट को लागू करने हेतु दो महीने का समय दिया है।

  • नए दिशा-निर्देशों को ड्राफ्ट रूल ऑफ क्रिमिनल प्रैक्टिस, 2020 (Draft Rules of Criminal Practice, 2020) के रूप में संदर्भित किया जाता है।  
  • ड्राफ्ट रूल में जांँच और परीक्षण में सुधार की सिफारिश की गई है जिसमें जांँच के दौरान व मुकदमे के लिये पुलिस की मदद करने हेतु वकीलों की अलग टीमों को नियुक्त करने का प्रस्ताव शामिल है; स्पॉट पंचनामा का मसौदा तैयार करते समय तथा यहांँ तक कि बॉडी स्केच में सुधार करते समय विवरण को शामिल किया जाना चाहिये।

भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली:

  • आपराधिक न्याय प्रणाली का तात्पर्य सरकार की उन एजेंसियों से है जो कानून लागू करने, आपराधिक मामलों पर निर्णय देने और आपराधिक आचरण में सुधार करने हेतु कार्यरत हैं।
  • उद्देश्य :
    • आपराधिक घटनाओं को रोकना।
    • अपराधियों और दोषियों को दंडित करना।
    • अपराधियों और दोषियों का पुनर्वास।
    • पीड़ितों को यथासंभव मुआवज़ दिलाना।
    • समाज में कानून व्यवस्था बनाए रखना।
    • अपराधियों को भविष्य में कोई भी आपराधिक कृत्य करने से रोकना

सुधारों की आवश्यकता:

  • औपनिवेशिक विरासत: आपराधिक न्याय प्रणाली- मूल और प्रक्रियात्मक दोनोंब्रिटिश औपनिवेशिक न्यायशास्त्र की प्रतिकृति हैं, जिन्हें भारत पर शासन करने के उद्देश्य से बनाया  गया था। 
    • इसलिये 19वीं सदी के इन कानूनों की प्रासंगिकता 21वीं सदी में बहस का एक ज्वलंत मुद्दा  है।
  • अप्रभावी न्याय वितरण: आपराधिक न्याय प्रणाली का उद्देश्य निर्दोषों के अधिकारों की रक्षा करना और दोषियों को दंडित करना था, लेकिन आजकल यह व्यवस्था आम लोगों के उत्पीड़न का एक साधन बन गई है।
  • लंबित मामले: आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, न्यायिक प्रणाली, विशेष रूप से ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों में लगभग 3.5 करोड़ मामले लंबित हैं,जो ‘न्याय में देरी  न्याय से वंचित करने के समान है’, की कहावत को चरितार्थ करता है।
  • विचाराधीन कैदी: भारत दुनिया के सबसे अधिक विचाराधीन कैदियों वाले देशों में से एक है।
  • पुलिस का मुद्दा: पुलिस आपराधिक न्याय प्रणाली की अग्रिम पंँक्ति है, जिसने न्याय प्रशासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। न्याय के त्वरित और पारदर्शी वितरण में भ्रष्टाचार, वर्कलोड और पुलिस की जवाबदेही एक बड़ी बाधा है।

सरकार द्वारा की गई संबंधित पहल:

आगे की राह

  • पीड़ित और गवाह संरक्षण: पीड़ित और गवाह संरक्षण योजनाओं को शुरू करने, पीड़ित के बयानों का उपयोग, आपराधिक मुकदमे में पीड़ितों की भागीदारी में वृद्धि, पीड़ितों के लिये मुआवज़ा और उनकी बहाली की आवश्यकता है। 
  • आपराधिक संहिताओं में संशोधन: दंड की मात्रा (Degree) निर्दिष्ट करने के लिये आपराधिक दायित्व को बेहतर ढंग से वर्गीकृत किया जाना चाहिये। 
    • नए प्रकार के दंड जैसे- सामुदायिक सेवा आदेश, बहाली आदेश, तथा पुनर्स्थापना और सुधारात्मक न्याय के अन्य पहलुओं को भी इसके दायरे में लाया जा सकता है। 
    • साथ ही भारतीय दंड संहिता के कई अध्याय अनेक जगहों पर अतिभारित (Overloaded) हैं। 
    • उदाहरण के लिए लोक सेवकों के खिलाफ अपराध, अधिकार की अवमानना, सार्वजनिक शांति और अतिचार जैसे अध्यायों को फिर से परिभाषित और संकुचित किया जा सकता है। 
  • न्यायिक सेवा की शक्ति: समाधानों के तहत अधीनस्थ स्तर पर अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति करके न्यायिक सेवाओं की शक्ति में वृद्धि करना है, इसके लिये सबसे नीचे से सुधार शुरू होना चाहिये।
    • अधीनस्थ न्यायपालिका को सुदृढ़ करने हेतु उसे प्रशासनिक और तकनीकी सहायता के साथ पदोन्नति, विकास व प्रशिक्षण के अवसर प्रदान करना आवश्यक है।
    • अखिल भारतीय न्यायिक सेवा को संस्थापित करना उचित दिशा में कदम हो सकता है। 
  • वैकल्पिक विवाद समाधान: यह अनिवार्य किया जाना चाहिये कि सभी वाणिज्यिक मुकदमों पर तभी विचार किया जाएगा जब याचिकाकर्त्ता की ओर से हलफनामें में यह स्वीकार किया गया हो कि मध्यस्थता और सुलह का प्रयास किया गया और यह प्रयास विफल हो गया।

 स्रोत: द हिंदू

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