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कोविड-टीकाकरण से संबंधित चुनौतियाँ

  • 12 May 2021
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

प्राथमिकता समूह (45 वर्ष से अधिक) के साथ-साथ 18-45 आयु वर्ग को टीकाकरण की अनुमति दिये जाने के बावजूद 1 मई, 2021 से शुरू होने वाले सप्ताह में वैक्सीन की खुराक की संख्या में कमी आई है और यह बीते आठ सप्ताह में अपने न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया है।

  • किसी अन्य बीमारी की तुलना में कोविड-19 टीके का विकास तेज़ी से किया जा रहा है, फिर भी इसकी आपूर्ति में कमी देखने को मिल रही है।

प्रमुख बिंदु:

वैश्विक मुद्दे:

  • विशाल जनसंख्या:
    • दुनिया भर में लगभग सात बिलियन लोगों को टीका लगाया जाना है, जिनमें से अत्यधिक टीके दो खुराकों के माध्यम से दिये जा रहे  हैं, अतः जाहिर है कि मांग बहुत अधिक है।
  • आत्मकेंद्रीकरण की  भावना:
    • उपलब्ध टीकों में से 80% से अधिक को पहले ही खरीदने का ऑर्डर दिया जा चुका है और दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों द्वारा इनका स्टॉक किया गया है, जो कि वैश्विक आबादी के केवल 20% का प्रतिनिधित्त्व करते हैं।
    • यहाँ तक ​​कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के COVAX जैसे प्रयासों से अफ्रीकी आबादी के केवल 1% लोगों को ही अब तक वैक्सीन प्राप्त हुई है।
  • आपातकालीन स्वीकृति में देरी:
    • अमेरिका द्वारा अब तक केवल तीन टीकों-‘फाइज़र’, मॉडर्ना’, और ‘जैनसेन’ को अनुमति दी गई है।
      • सबसे सस्ती एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन अमेरिका में अभी भी अनुमोदन की प्रतीक्षा कर रही है।
    • हाल ही में ब्राज़ील में रूस के स्पुतनिक वी के लिये अनुमोदन को अस्वीकार कर दिया गया था।
    • चीन के सिनोवैक और सिनोफार्म के टीके अभी तक पश्चिमी देशों में स्वीकृत नहीं हैं।

भारत में चुनौतियाँ:

  • सीमित आपूर्तिकर्त्ता:
    • भारत के दो वैक्सीन (COVAXIN & COVISHIELD) निर्माताओं की सीमित क्षमता इस संदर्भ में एक बड़ी चुनौती है और इस पर भी राज्य सरकारों और निजी अस्पतालों द्वारा लगभग वैक्सीन की आवश्यकताओं संबंधी आदेश दिया जा रहा है, जिन्हें पूरा करने में महीनों लग सकते हैं।
  • आपूर्ति शृंखला में कमी:
    • समग्र वयस्क आबादी का टीकाकरण करने के लिये महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम की आपूर्ति शृंखला में एक बड़ा अंतर देखा गया है।
    • यद्यपि भारत टीकाकरण की संख्या में अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है, परंतु भारत की केवल 13% आबादी को ही एक खुराक मिली है और लगभग 2% का पूरी तरह से टीकाकरण किया गया है।
      • कई देशों ने पहले ही अपनी आधी से अधिक वयस्क आबादी का टीकाकरण कर लिया है।

  • असमान खरीद प्रक्रिया:
    • संशोधित वैक्सीन खरीद प्रक्रिया शहरों और कस्बों में छोटे अस्पतालों के लिये चुनौती पैदा करती है, क्योंकि उनके बड़े समकक्ष अस्पताल आसानी से वैक्सीन प्राप्त कर रहे हैं, जबकि उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जो कि स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में शहरी-ग्रामीण विभाजन को और अधिक विरूपित करता है।
  • डिजिटल विभाजन:
    • नई विकेंद्रीकृत वितरण रणनीति के हिस्से के रूप में ‘कोविन’ पोर्टल पर डिजिटल पंजीकरण भी एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है, जो संभावित रूप से टीकाकरण प्रक्रिया को कठिन बनाता है। यह अपेक्षाकृत कम शिक्षित लोगों को ‘कोविन’ पोर्टल तक पहुँचने और उसके अंग्रेज़ी इंटरफेस का उपयोग करना चुनौतीपूर्ण बनाता है।
    • यह देखते हुए भी कि भारत की आधी आबादी की ही ब्रॉडबैंड इंटरनेट तक पहुँच है और ग्रामीण टेली-घनत्व 60% से भी कम है, कहा जा सकता है कि अनिवार्य ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया शहरी केंद्रों के पक्ष में झुकी हुई दिखाई देती है।
  • बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और मध्य प्रदेश देश के सबसे कम टेली-घनत्व वाले राज्यों में से एक हैं।
    • स्मार्टफोन या कंप्यूटर के साथ-साथ तकनीक तक कम पहुँच इसे और अधिक कठिन बनाती है।

आगे की राह:

  • प्रभावी और सुरक्षित टीकों की जल्द-से-जल्द जाँच करने और उन्हें मौज़ूदा पूल में जोड़ने की आवश्यकता है।
  • भारत का कोविड-19 वैक्सीन अभियान एक स्मरणीय मिशन होगा, यह न केवल अपनी आबादी का टीकाकरण करने के मामले में, बल्कि दुनिया के एक बड़े भाग के निर्माता के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह मिशन टीकों के विकास और वितरण से जुड़े मुद्दों को संबोधित करते हुए कम-से-कम समय में सैकड़ों से लाखों लोगों को टीकों को कुशलता से प्राप्त करने के प्रयास में वृद्धि करेगा।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस

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