भारतीय राजव्यवस्था
न्यायालय की अवमानना
- 18 Nov 2019
- 6 min read
प्रीलिम्स के लिये:
न्यायालय की अवमानना
मेन्स के लिये:
न्यायालय की अवमानना से संबंधित विभिन्न संवैधानिक पक्ष
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने रैनबैक्सी (Ranbaxy) के पूर्व प्रमोटरों को अपने आदेश के उल्लंघन के लिये अवमानना का दोषी ठहराया है।
मुख्य बिंदु:
- जापानी दवा निर्माता कंपनी दाइची (Daiichi) द्वारा दायर याचिका के अनुसार, रैनबैक्सी के पूर्व प्रमोटरों ने न्यायालय की रोक के बावजूद फोर्टिस हेल्थकेयर (Fortis Healthcare) के शेयरों की बिक्री की।
- दाइची कंपनी द्वारा 3,500 करोड़ रूपए के आर्बिट्रेशन (Arbitration) अवार्ड मामले में रैनबैक्सी कंपनी के पूर्व प्रमोटरों के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दायर की गई थी।
- दाइची ने वर्ष 2008 में रैनबैक्सी को खरीदा था। बाद में दाइची ने सिंगापुर ट्रिब्यूनल में शिकायत करते हुए कहा कि रेनबेक्सी ‘यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन’ (US Food and Drug Administration) द्वारा की जा रही जाँच के दायरे में थी तथा कंपनी के प्रमोटर्स ने दाइची के साथ हुए सौदे के दौरान इस जाँच के बारे में नहीं बताया था।
न्यायालय की अवमानना:
- न्यायालय का अवमानना अधिनियम, 1971 (Contempt of Court Act, 1971) के अनुसार, न्यायालय की अवमानना का अर्थ किसी न्यायालय की गरिमा तथा उसके अधिकारों के प्रति अनादर प्रदर्शित करना है।
- इस अधिनियम में अवमानना को ‘सिविल’ और ‘आपराधिक’ अवमानना में बाँटा गया है।
- सिविल अवमानना: न्यायालय के किसी निर्णय, डिक्री, आदेश, रिट, अथवा अन्य किसी प्रक्रिया की जान बूझकर की गई अवज्ञा या उल्लंघन करना न्यायालय की सिविल अवमानना कहलाता है।
- आपराधिक अवमानना: न्यायालय की आपराधिक अवमानना का अर्थ न्यायालय से जुड़ी किसी ऐसी बात के प्रकाशन से है, जो लिखित, मौखिक, चिह्नित , चित्रित या किसी अन्य तरीके से न्यायालय की अवमानना करती हो।
- हालाँकि किसी मामले का निर्दोष प्रकाशन, न्यायिक कृत्यों की निष्पक्ष और उचित आलोचना तथा न्यायालय के प्रशासनिक पक्ष पर टिप्पणी करना न्यायालय की अवमानना के अंतर्गत नहीं आता है।
न्यायालय की अवमानना के लिये दंड का प्रावधान:
- सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय को अदालत की अवमानना के लिये दंडित करने की शक्ति प्राप्त है। यह दंड छह महीने का साधारण कारावास या 2000 रूपए तक का जुर्माना या दोंनों एक साथ हो सकता है।
- वर्ष 1991 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया कि उसके पास न केवल खुद की बल्कि पूरे देश में उच्च न्यायालयों, अधीनस्थ न्यायालयों तथा न्यायाधिकरणों की अवमानना के मामले में भी दंडित करने की शक्ति है।
- उच्च न्यायालयों को न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 10 के अंतर्गत अधीनस्थ न्यायालयों की अवमानना के लिये दंडित करने का विशेष अधिकार प्रदान किया गया है।
अवमानना अधिनियम की आवश्यकता:
- न्यायालय का अवमानना अधिनियम, 1971 का उद्देश्य न्यायालय की गरिमा और महत्त्व को बनाए रखना है।
- अवमानना से जुड़ी हुई शक्तियाँ न्यायाधीशों को भय, पक्षपात और की भावना के बिना कर्त्तव्यों का निर्वहन करने में सहायता करती हैं।
संवैधानिक पृष्ठभूमि:
- अनुच्छेद 129: सर्वोच्च न्यायालय को स्वंय की अवमानना के लिये दंडित करने की शक्ति देता है।
- अनुच्छेद 142 (2): यह अनुच्छेद अवमानना के आरोप में किसी भी व्यक्ति की जाँच तथा उसे दंडित करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय को सक्षम बनाता है।
- अनुच्छेद 215: उच्च न्यायालयों को स्वंय की अवमानना के लिये दंडित करने में सक्षम बनाता है।
अवमानना से जुड़े अन्य मुद्दे :
- संविधान का अनुच्छेद-19 भारत के प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति एवं भाषण की स्वतंत्रता प्रदान करता है परंतु न्यायालय का अवमानना अधिनियम, 1971 द्वारा न्यायालय की कार्यप्रणाली के खिलाफ बात करने पर अंकुश लगा दिया है।
- कानून बहुत व्यक्तिपरक है, अतः अवमानना के दंड का उपयोग न्यायालय द्वारा अपनी आलोचना करने वाले व्यक्ति की आवाज़ को दबाने के लिये किया जा सकता है।
न्यायालय का अवमानना अधिनियम, 1971
(Contempt of Court Act, 1971):
- यह अधिनियम अवमानना के लिये दंडित करने तथा न्यायालयों की प्रक्रिया को नियंत्रित करने की शक्ति को परिभाषित करता है।
- इस कानून में वर्ष 2006 में धारा 13 के तहत ‘सत्य की रक्षा’ (Defence of Truth) को शामिल करने के लिये संशोधित किया गया था।