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डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

चांगपा समुदाय

  • 03 Jun 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

चांगपा समुदाय, चुशूल-डेमचोक-चुमूर बेल्ट, पश्मीना बकरी तथा पश्मीना उत्पाद

मेन्स के लिये: 

चीनी अतिक्रमण के कारण चरवाहा चांगपा समुदाय पर पड़ने वाले प्रभाव 

चर्चा में क्यों? 

लद्दाख के चुमूर (Chumur) और डेमचोक (Demchok) क्षेत्र में चीनी सेना के अतिक्रमण ने लद्दाख के घुमंतू चरवाहा चांगपा समुदाय (Changpa Community) को ग्रीष्मकालीन चरागाहों के बड़े हिस्से से अलग-थलग कर दिया है। जिसका प्रतिकूल प्रभाव उनके बकरी पालन व्यवसाय पर पड़ रहा है।

chumur

प्रमुख बिंदु:

  • चीन की ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’( People’s Liberation Army) द्वारा चुमूर में 16 कनाल (दो एकड़) की कृषि योग्य भूमि पर कब्ज़ा कर लिया गया है जो डेमचोक क्षेत्र के अंदर लगभग 15 किमी. की दूरी पर स्थित है। 
  • यह एक पारंपरिक चराई वाले चरागाहों और खेती योग्य भूमि वाला क्षेत्र है।
  • इसका प्रतिकूल प्रभाव लद्दाख के चांगथांग पठार (Changthang Plateau) के कोरज़ोक-चुमूर बेल्ट (Korzok-Chumur Belt) में नवज़ात पश्मीना बकरियों की संख्या पर देखा जा रहा है।
  • पर्याप्त चरागाहों के अभाव में युवा पश्मीना बकरियों की मौतों में वृद्धि देखी गई है जिसमें पश्मीना बकरियों के साथ-साथ याक भी शामिल हैं।
  • चांगपा समुदाय के लोगों का मानना है कि इस तरह की गतिविधियों के चलते इस वर्ष (वर्ष 2020 में) 70-80% नवज़ात पश्मीना बकरियों को जीवित रख पाना मुश्किल हो रहा है। 
  • चीनी सेना द्वारा इन चरागाह क्षेत्रों पर सतर्कता बनाए रखने के लिये हेलीकॉप्टरों द्वारा निगरानी की जा रही है।

चांगपा समुदाय (Changpa Community): 

  • चांगपा जनजाति एक बंजारा समुदाय है जो भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के लद्दाख़ क्षेत्र के चांगथंग इलाके में निवास करती हैं।
  • चांगपा जनजाति खानाबदोश जीवन पसंद करती हैं।
  • इनकी आजीविका का मुख्य आधार मवेशी और पश्मीना बकरियाँ हैं।

चुशूल-डेमचोक-चुमूर बेल्ट (Chushol-Demchok-Chumur belt):

  • यह पश्मीना बकरियों की अधिकतम आबादी वाला क्षेत्र है, जो 13,000 फीट से अधिक ऊँचाई पर स्थित है। 
  • लद्दाख में सालाना 45-50 टन बेहतरीन किस्म की ऊन का उत्पादन होता है जिसमें से 25 से 30 टन ऊन का उत्पादन चुशूल-डेमचोक-चुमूर बेल्ट में होता है।

पश्मीना बकरियाँ (Pashmina Goats): 

  • पश्मीना बकरियाँ को चांगथांगी बकरियों के नाम से भी जाना जाता है। 
  • इन्हें पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा के निकट चांगथांग क्षेत्र (तिब्बत के पठार के एक पश्चिमी विस्तार) में घुमंतू चरवाहा समुदाय चांगपा द्वारा पाला जाता है।
  • ये बकरियाँ -40 डिग्री तापमान पर भी स्वयं को जीवित रखने की क्षमता रखती हैं।
  • चांगथांगी बकरी के बाल बहुत मोटे होते हैं और इनसे विश्व का बेहतरीन पश्मीना प्राप्त होता है जिसकी मोटाई 12-15 माइक्रोन के बीच होती है।

पश्मीना उत्पाद (Pashmina Products):

  • लद्दाख विश्व में सर्वाधिक (लगभग 50 मीट्रिक टन) और सबसे उन्नत किस्म के पश्मीना का उत्पादन करता है।
  • असली पश्मीना उत्पादों को चांगथांगी या पश्मीना बकरी के बालों से बनाया जाता है। 
  • कश्मीर में बुने गए सुप्रसिद्ध पश्मीना शॉलों का निर्माण लद्दाख की इन बकरियों से प्राप्त ऊन से किया जाता है। 
  • ये शाल अपनी गुणवत्ता एवं अपने जटिल कलाकृति के लिये प्रसिद्ध हैं।
  • चांगथांगी बकरियों की बदौलत ही छांगथांग, लेह और लद्दाख क्षेत्र में अर्थव्यवस्था बहाल हुई है।
  • भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards-BIS) ने पश्मीना उत्पादों की शुद्धता प्रमाणित करने के उद्देश्य से उसकी पहचान और लेबलिंग की प्रक्रिया को भारतीय मानक (Indian Standards) के दायरे में रख दिया है।

स्रोत: द हिंदू

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