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भारत में मानसून की तिथियों में परिवर्तन

  • 20 Jan 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

मानसून, IMD, WMO

मेन्स के लिये:

भारत में मानसून गतिविधियाँ और उनका प्रभाव, कृषि पर मानसून का प्रभाव, मानसून के आगमन पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (Indian Meteorological Department- IMD) ने इस साल से देश के कुछ हिस्सों में मानसून की सामान्य शुरुआत और वापसी की तिथियों को संशोधित करने का फैसला किया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • दक्षिण-पश्चिम मानसून का मौसम, जो कि देश की वार्षिक वर्षा का 70 प्रतिशत तक वर्षा करता है, आधिकारिक तौर पर 1 जून से केरल में मानसून की शुरुआत के साथ शुरू होता है और 30 सितंबर को समाप्त होता है।
  • केरल के तट पर टकराने के पश्चात पूरे देश में मानसून के फैलने में लगभग डेढ़ महीने लगते हैं और देश में मानसून के लौटने की शुरुआत भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में 1 सितंबर से होती है तथा मानसून के पूरे देश से वापस लौटने में भी लगभग 1 महीने का समय लगता है।
  • ध्यातव्य है कि केरल के तट पर मानसून के टकराने की तिथि को लेकर किसी भी संशोधन की आवश्यकता नहीं है किंतु देश के अन्य भागों में मानसून आने की तिथियों में संशोधन किया जा सकता हैं। उदाहरण के लिये मुंबई में बारिश शुरू होने की तिथि को 10 जून किया जा सकता है।
  • देश के अन्य हिस्सों के लिये मानसून की तिथियों में समायोजन किये जाने की संभावना है। मानसून वापसी की तारीखों में भी इसी तरह के बदलाव की उम्मीद है।
  • स्पष्टतः अब देश के अधिकांश हिस्सों में मानसून के आगमन और निवर्तन की तिथियों में परिवर्तन की उम्मीद है।

इस संशोधन की आवश्यकता क्यों थी?

  • सामान्य तिथियों में संशोधन का मुख्य कारण पिछले कई वर्षों में वर्षा के पैटर्न में आया बदलाव है। गौरतलब है कि पिछले 13 वर्षों में केवल एक बार केरल तट पर मानसून की शुरुआत 1 जून को हुई, जबकि मानसून की शुरुआत प्रायः दो या तीन दिन पहले या बाद में होती रही है।

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  • इसी प्रकार मानसून के निवर्तन की तिथियों में भी काफी अनियमितताएँ हैं, उदाहरण के लिये पिछले 13 वर्षों में केवल दो बार ही मानसून का निवर्तन सितंबर के पहले सप्ताह में हुआ है।
  • चार महीने की मानसूनी ऋतु में बारिश के पैटर्न में काफी अनियमितताएँ देखी जाती हैं जिससे बारिश की वास्तविक मात्रा के बारे में जानकारी प्राप्त करने में कठिनाई होती है।
  • वर्तमान में मानसून के मौसम में कम दिनों में ही अधिक मात्रा में बारिश हो रही है। जिससे अनेक क्षेत्रों में कुछ दिनों तक बाढ़ जैसे हालत बन जाते हैं।
    • IMD के डेटा के अनुसार, देश के 22 प्रमुख शहरों में मानसून की लगभग 95 प्रतिशत वर्षा सिर्फ 3 से 27 दिनों की अवधि में होती है।
    • उदाहरण के लिये दिल्ली ने अपनी मानसूनी वर्षा का लगभग 95 प्रतिशत केवल 99 घंटों में प्राप्त किया था और मुंबई की मॉनसून की आधी बारिश औसतन सिर्फ 134 घंटों या साढ़े पाँच दिनों में हो गई थी।
  • वर्षा संबंधी क्षेत्रीय विविधताओं के पैटर्न भी बदलाव देखे जा रहे हैं। ध्यातव्य है कि जिन क्षेत्रों में परंपरागत रूप से बहुत अधिक वर्षा होती थी, वे अब प्रायः शुष्क रहते हैं और जिन स्थानों पर बहुत अधिक मानसूनी वर्षा होने की उम्मीद नहीं होती है, वे कभी-कभी बाढ़ से प्रभावित हो जाते हैं। यद्यपि जलवायु परिवर्तन इन अनियमितताओं के कारकों में से एक हो सकता है, लेकिन इसके अन्य कारण भी होंगे।

IMD के इस कदम का क्या असर होगा?

  • यह संशोधन हाल के वर्षों में वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन को प्रतिबिंबित करने के लिये है। यह परिवर्तन IMD को मानसून को बेहतर तरीके से ट्रैक करने में मदद करेगा।
  • नई तिथियों से देश के अनेक हिस्सों में किसानों को बारिश की तिथियों और फसलों की बुवाई के समय में समन्वय बनाने में आसानी होगी।
  • कृषि मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, इससे वर्षा के अनुपात-सामयिक वितरण के बारे में जानकारी मिलेगी जो किसानों के कृषि संबंधी कार्यों में सहायक होगी।
  • बारिश की शुरुआत की तिथि भी कृषि के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यदि मानसून के आने में तीन से चार दिन की भी देरी होती है तो फसल की उपज अपेक्षानुसार नहीं होगी चाहे उसके बाद वर्षा का वितरण कितना भी बेहतर क्यों न हो।
  • फसलें जिन्हें रोपाई की आवश्यकता होती है, जैसे- चावल की फसल के लिये बारिश के आगमन के बारे में अनुमान की आवश्यकता होती है। क्योंकि यदि चावल की पैदावार वाले क्षेत्रों में वर्षा बहुत देर से होती है, तो चावल का प्रत्यारोपण प्रभावित होगा, जो फसल की उपज को प्रभावित कर सकता है। इसलिये IMD के इस कदम से किसान को बारिश की सही जानकारी प्राप्त हो सकेगी।
  • तिथियों में बदलाव से जल संरक्षण को भी प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी।
  • उद्योगों के संचालन, बिजली क्षेत्र या शीतलन प्रणाली का उपयोग करने सहित कई अन्य गतिविधियों को भी मानसून के आने की तिथि के अनुसार संपादित किया जा सकता है।
  • अंततः मानसून की शुरुआत और वापसी की सामान्य तिथियों में बदलाव से लोगों को यह समझने में मदद मिलेगी कि कब बारिश होने की उम्मीद है और उसके अनुसार उन्हें अपनी विभिन्न गतिविधियों को संचालित करने में मदद मिलेगी। परिवर्तित तिथियों की घोषणा अप्रैल में होने की उम्मीद है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग

  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत मौसम विज्ञान प्रेक्षण, मौसम पूर्वानुमान और भूकंप विज्ञान का कार्यभार संभालने वाली सर्वप्रमुख एजेंसी है।
  • IMD विश्व मौसम संगठन के छह क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्रों में से एक है।
  • इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुई।
  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग का मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • IMD में उप महानिदेशकों द्वारा प्रबंधित कुल 6 क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र आते हैं।
  • ये चेन्नई, गुवाहाटी, कोलकाता, मुंबई, नागपुर, नई दिल्ली और हैदराबाद में स्थित हैं।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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