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बिम्सटेक की कूटनीति : कितनी सार्थक साबित होगी?

  • 10 Oct 2017
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

पर्यावरणीय एवं जलवायु कूटनीति में अपने क्षेत्रीय नेतृत्व की पुष्टि करने के उद्देश्य से भारत 10 अक्तूबर से शुरू हो रहे पहले बिम्सटेक डी.एम.ईक्स. 2017 (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation Disaster Management Exercise - BIMSTEC DMEx 2017) की मेज़बानी कर रहा है। यह इस क्षेत्र विशेष में अपनी स्थिति को मज़बूत करने की दिशा में भारत के लिये एक बेहतर अवसर होगा।

  • उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र विशेष में अनेकों सार्थक प्रयास किये जाने के एक दशक बाद भी इसके सदस्यों के बीच मौजूद राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी तनाव के चलते इसके क्षेत्रीय सहयोग एवं अन्य प्रभावी कार्रवाईयों की प्रगति में बाधा आती रहती है।
  • वस्तुतः बिम्सटेक की स्थापना के दो दशक बाद यहाँ के क्षेत्रीय नेताओं द्वारा बिम्सटेक को पुन: जीवंत करने हेतु एक नए सिरे से उत्साह प्रकट किया गया है। यह इस उप-क्षेत्र में प्रभावी सहयोग को बढ़ावा देने की दिशा में एक स्वागत योग्य अवसर है।

बिम्सटेक क्षेत्र की वास्तविक स्थिति

  • विश्व की कुल 22% आबादी वाला बिम्सटेक क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं के कारण कभी भी बढ़ सकने वाले खतरे के साए में अपना जीवन-यापन कर रहा है। 
  • चाहे यह असम को प्रभावित करने वाली बाढ़ हो या फिर पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के अनुप्रवाह क्षेत्र हों अथवा भारत और नेपाल में होने वाली हिमालयन भूस्खलन की घटनाएँ हों, इस उप-क्षेत्र में आने वाली नियमित आपदाओं के भयावह परिणाम होते हैं। 
  • जहाँ एक ओर इन प्राकृतिक आपदाओं के कारण जीवन की हानि होती है, वहीं दूसरी ओर इससे बड़े पैमाने पर आजीविका एवं परिसंपत्तियाँ भी नष्ट होती हैं, जिसका परिणाम अक्सर बड़े पैमाने पर होने वाली विस्थापन तथा सीमा के आर-पार के प्रवासन के रूप में नज़र आता है।
  • वस्तुतः बड़े पैमाने पर इन प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति एवं प्रभावों को संबोधित करने वाले एक संयुक्त एकीकृत तंत्र की अनुपस्थिति में उत्तरवर्ती आपदा संकट के संबंध में अनुक्रिया बहुत अधिक सीमित एवं प्रतिक्रियाशील होती है।

समस्या के समाधान की दिशा में बिम्सटेक

  • बिम्सटेक को एक पारंपरिक राहत केंद्रित, संयुक्त, सक्रिय तथा समग्र रूप से प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण वाली कार्यपद्धति से एक प्रतिमान नीति की ओर रुख करने का अवसर प्राप्त हुआ है। एक ऐसी प्रतिमान नीति, जिसमें सदस्य राज्यों के बीच आपदा संबंधी तैयारियों, उनके रोकथाम, शमन तथा जोखिम में कमी करने सभी घटकों के संदर्भ में प्रभावी रूप से कार्य किया किया जा सके।
  • बिम्सटेक के सदस्यों के बीच अंतर-सरकारी समन्वय को मज़बूत करने के लिये पहला कदम एक व्यापक आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Devise a Comprehensive Disaster Risk Reduction - DRR) क्षेत्रीय कार्य योजना तैयार करना होना चाहिये।
  • इस कार्य योजना के तहत सदस्य देशों के सभी विकास कार्यक्रमों में डी.आर.आर. को एकीकृत करने के लिये एक स्पष्ट रणनीति प्रस्तुत की जानी चाहिये। 
  • इसके अंतर्गत डी.आर.आर. के लिये एक बहु-संकट एवं बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण को अपनाने तथा शासन के सभी स्तरों में संस्थागत साझेदारी के ज़रिये सामान्य परिणामों को प्राप्त किये जाने की दिशा में कार्य किया जाना चाहिये।

क्षमता निर्माण की दिशा में प्रयास

  • क्षेत्रीय प्राकृतिक स्थितियों को मद्देनज़र रखते हुए इस क्षेत्र विशेष में प्राकृतिक खतरे के आकलन एवं प्रतिक्रिया रणनीति तैयार करने हेतु तत्काल रूप से क्षेत्रीय संस्थागत क्षमता को स्थापित किये जाने की आवश्यकता है। 
  • किसी भी प्रकार की आपदा तैयारियों के संबंध में सबसे बड़ी चुनौती उस क्षेत्र विशेष के सदस्य देशों के मध्य विद्यमान ज्ञान-अंतर को पाटने की होती है।
  • इस समस्या के समाधान के लिये बिम्सटेक उप-क्षेत्र में विभिन्न जलवायु परिवर्तनों और पर्यावरण के खतरों के संबंध में एक अनुसंधान टास्क फोर्स निर्मित की जानी चाहिये। 
  • इस टास्क फोर्स का कार्य अनुसंधान कार्यों के माध्यम से सदस्य राज्यों के मध्य एक सामान्य समझ विकसित करने के साथ-साथ आपसी तालमेल के साथ इस समस्या के लागत प्रभावी समाधान निकालने की दिशा में कार्य करना होना चाहिये। 
  • इससे न केवल आपसी सहयोग निर्मित होगा, बल्कि आपातकालीन प्रबंधन के लिये आवश्यक मानकों को भी स्थापित किया जा सकता है।

भारत का पक्ष

  • भारत द्वारा स्वेच्छा से बिम्सटेक के तहत पर्यावरण और प्राकृतिक आपदा एजेंडा का नेतृत्व करने की पहल की गई है। 
  • इसके अंतर्गत भारत सार्क और आसियान के अपने आपदा प्रबंधन अनुभवों से प्राप्त ज्ञान का भली-भाँति इस्तेमाल भी कर सकता है। वस्तुतः यह कई मायनों में भारत के लिये एक बेहतर अवसर साबित होगा।
  • अन्य क्षेत्रीय ब्लॉकों की तरह यह पहल बिम्सटेक के कुछ सदस्य देशों जैसे- बांग्लादेश, भारत और म्याँमार के मध्य लंबे समय से चले आ रहे राजनीतिक विवाद के माहौल के बीच आयोजित होने जा रही है। ऐसे में इसके परिणामों के विषय में शंका उत्पन्न होना सामान्य सी बात है।
  • भारत और बांग्लादेश के मध्य एक लंबे समय से तीस्ता नदी के जल के संबंध में तनाव बना हुआ है। ऐसी ही स्थिति म्याँमार और बांग्लादेश के बीच रोहिंग्या शरणार्थी संकट के रूप में मौजूद हैं।

निष्कर्ष

उक्त संदर्भ में यह कहना गलत न होगा आपदा प्रबंधन जैसी समस्या के विषय में आपसी मतभेदों को अलग रखते हुए सदस्य देशों द्वारा न केवल एक गंभीर रुख अपनाए जाने की आवश्यकता है, बल्कि इसके विषय में शोध कार्यों को बढ़ावा देते हुए आपसी तालमेल के साथ किसी निष्कर्ष पर पहुँचाना भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। सदस्य देशों को यह समझना चाहिये कि उनकी क्षेत्रीय स्थिति एवं भौगोलिक निकटता के विषय में विचार करने के उपरांत यह ज्ञात होता है कि इस उप-क्षेत्र में अवस्थित राज्यों की सुरक्षा एक दूसरे पर निर्भर करती है। यह किसी भी मायने में एक दूसरे से पृथक नहीं है, इसलिये बिम्सटेक के सदस्य राज्यों द्वारा ‘पर्यावरण और प्राकृतिक आपदा’ प्रबंधन को उनके सामान्य सुरक्षा एजेंडे के रूप में प्राथमिकता देते हुए कार्यवाही की जानी चाहिये।

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