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भारतीय अर्थव्यवस्था

औद्योगिक श्रमिकों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का नया आधार वर्ष

  • 23 Oct 2020
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI), थोक मूल्य सूचकांक (WPI)

मेन्स के लिये 

आधार वर्ष में परिवर्तन की आवश्यकता और इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

श्रम एवं रोज़गार राज्य मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने हाल ही में वर्ष 2016 के आधार पर औद्योगिक श्रमिकों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) की नई शृंखला जारी की है।

प्रमुख बिंदु

  • केंद्रीय मंत्री द्वारा जारी नई शृंखला, मौजूदा शृंखला आधार वर्ष 2001=100 को वर्ष आधार 2016=100 के साथ प्रतिस्थापित करेगी।
  • ध्यातव्य है कि इस संशोधन से पूर्व श्रम ब्यूरो की स्थापना के बाद से शृंखला को वर्ष 1944 से वर्ष 1949; वर्ष 1949 से वर्ष 1960; वर्ष 1960 से वर्ष 1982 और वर्ष 1982 से वर्ष 2001 तक संशोधित किया गया था। 
  • केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि भविष्य में इस सूचकांक के आधार वर्ष में प्रत्येक पाँच वर्ष बाद परिवर्तन किया जाएगा। 

नई शृंखला में किये गए सुधार

  • वर्ष 2016 के आधार पर जारी नई शृंखला में कुल 88 केंद्रों को शामिल किया गया है, जबकि वर्ष 2001 के आधार वर्ष पर जारी होने वाली शृंखला में केवल 78 केंद्र ही शामिल थे।
  • खुदरा शृंखला के आँकड़ों के संग्रह के लिये चयनित बाज़ारों की संख्या भी वर्ष 2016 के आधार वर्ष वाली शृंखला के तहत 317 बाज़ारों तक बढ़ा दी गई है, जबकि वर्ष 2001 की शृंखला में 289 बाज़ारों को ही शामिल किया गया था।
  • वर्ष 2016 की शृंखला के तहत राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की संख्या 28 हो गई है, जबकि वर्ष 2001 शृंखला में राज्यों की संख्या केवल 25 ही थी।
  • नई शृंखला के तहत खाद्य समूह के भार को घटाकर 39.17 प्रतिशत कर दिया गया है, जो कि वर्ष 2001 में 46.2 प्रतिशत था, वहीं शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी विविध मदों के भार को 23.26 प्रतिशत (वर्ष 2001) से बढ़ाकर 30.31 प्रतिशत कर दिया गया है।
  • नई शृंखला में ज्यामितीय माध्य (Geometric Mean) आधारित कार्यप्रणाली का उपयोग सूचकांकों के संकलन के लिये किया जाता है, जबकि वर्ष 2001 की शृंखला में अंकगणितीय माध्य (Arithmetic Mean) का उपयोग किया जाता था।

उद्देश्य

  • औद्योगिक श्रमिकों हेतु उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) के लिये आधार वर्ष में परिवर्तन का मुख्य उद्देश्य इस सूचकांक में श्रमिक वर्ग की आबादी के नवीनतम उपभोग पैटर्न को सही ढंग से प्रदर्शित करना है।
  • मज़दूर और श्रमिक वर्ग के उपभोग पैटर्न में बीते वर्षों में काफी बदलाव आया है, इसलिये समय के साथ ‘कंज़म्पशन बास्केट’ (Consumption Basket) को भी अपडेट करना आवश्यक है, ताकि आँकड़ों की विश्वसनीयता बरकरार रखी जा सके।
  • ध्यातव्य है कि इससे पूर्व विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठनों और राष्ट्रीय आयोगों ने लक्षित समूह के तेज़ी से बदलते उपयोग पैटर्न के आधार पर लगातार संशोधन करने की सिफारिश की थी।

महत्त्व

  • इससे भारतीय अर्थव्यवस्था के वृहद् आर्थिक संकेतकों को मापने में मदद मिलेगी। साथ ही नई शृंखला में सुधार करते हुए इसमें अंतर्राष्ट्रीय मानकों और प्रथाओं को शामिल किया गया है एवं इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिक तुलनीय बनाया गया है।
  • ध्यातव्य है कि सरकारी कर्मचारियों और औद्योगिक क्षेत्र में श्रमिकों को मिलने वाला महँगाई भत्ता इसी सूचकांक के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
    • हालाँकि सरकार ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि वर्तमान में औद्योगिक श्रमिकों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) के आधार पर निर्धारित किये जाने वाले महँगाई भत्ते (Dearness Allowance) में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) 

  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) का उपयोग आधार वर्ष के संदर्भ में कुछ चयनित वस्तुओं और सेवाओं के खुदरा मूल्यों के स्तर में समय के साथ बदलाव को मापने के लिये किया जाता है, जिस पर एक परिभाषित उपभोक्ता समूह द्वारा अपनी आय खर्च की जाती है।
  • जहाँ एक ओर थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में उत्पादक स्तर पर मुद्रास्फीति की गणना की जाती है, वहीं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में उपभोक्ता के स्तर पर कीमतों में होने वाले परिवर्तन को मापने का प्रयास किया जाता है।
  • CPI के चार प्रकार निम्नलिखित हैं:
    1. औद्योगिक श्रमिकों (Industrial Workers-IW) के लिये CPI 
    2. कृषि मज़दूर (Agricultural Labourer-AL) के लिये CPI
    3. ग्रामीण मज़दूर (Rural Labourer-RL) के लिये CPI
    4. CPI (ग्रामीण/शहरी/संयुक्त)
  • इनमें से प्रथम तीन को श्रम और रोज़गार मंत्रालय में श्रम ब्यूरो द्वारा संकलित किया जाता है, जबकि चौथे प्रकार के CPI को सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा संकलित किया जाता है।

आधार वर्ष और उसकी आवश्यकता

  • आधार वर्ष वह बेंचमार्क होता है जिसके संदर्भ में विभिन्न राष्ट्रीय आँकड़ों और सूचकांकों जैसे- सकल घरेलू उत्पाद (GDP), सकल घरेलू बचत और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आदि की गणना की जाती है। 
  • आधार वर्ष को एक प्रतिनिधि वर्ष के रूप में माना जाता है, अतः यह आवश्यक है कि उस वर्ष किसी भी प्रकार की असामान्य घटना जैसे-सूखा, बाढ़, भूकंप आदि न हुई हो। 
  • अधिकांश विशेषज्ञ मानते हैं कि अर्थव्यवस्था के भीतर होने वाले संरचनात्मक परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करने के लिये आधार वर्ष को समय-समय पर संशोधित करना काफी आवश्यक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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