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भारतीय अर्थव्यवस्था

आवर्तनशील कृषि

  • 13 Dec 2019
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये

आवर्तनशील कृषि क्या है?

मेन्स के लिये

भारत में कृषि समस्याओं से निपटने में आवर्तनशील कृषि की भूमिका

संदर्भ:

कृषि में हाइब्रिड प्रजाति के बीजों के बढ़ते प्रयोग, जल की बढ़ती मांग तथा उर्वरकों और कीटनाशकों के माध्यम से रसायनों के अनियंत्रित प्रयोग ने वर्तमान में कई समस्याओं को जन्म दिया है। इसमें मृदा की प्राकृतिक उर्वरता में कमी, भू-जल स्तर का नीचे गिरना एवं जल के प्राकृतिक संसाधनों का दूषित होना आदि शामिल हैं। इस समस्या से निपटने में आवर्तनशील कृषि एक बेहतर विकल्प साबित हो सकती है।

आवर्तनशील कृषि क्या है?

  • कृषि की यह पद्धति सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व (Harmonious Co-existence) के सिद्धांत पर आधारित है।
  • इसके अनुसार, पृथ्वी पर उपस्थित सभी पशु-पक्षी, वृक्ष, कीड़े व अन्य सूक्ष्म जीवों के जीवन का एक निश्चित क्रम है। यदि मानव इनके क्रम को नुकसान न पहुँचाए तो ये कभी नष्ट नहीं होंगे।
  • कृषि की इस पद्धति में इन सभी जीवों का समन्वय तथा सहयोग आवश्यक है जिससे कृषि को धारणीय, वहनीय एवं प्राकृतिक वातावरण के अनुकूल बनाया जा सके।
  • आवर्तनशील कृषि में एक बड़े जोत को इस प्रकार बाँटा जाता है कि उसमें सब्जियाँ व अनाज उगाने, पशुपालन, मछलीपालन तथा बागवानी आदि के लिये पर्याप्त स्थान मौजूद हो।
  • इसके अतिरिक्त इस पद्धति में एकल कृषि (Monoculture) के स्थान पर मिश्रित कृषि (Mixed Farming) तथा मिश्रित फसल (Mixed Cropping) पर बल दिया जाता है।
  • कृषि की इस पद्धति में रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर गोबर, सब्जियों के छिलके, बचा हुआ खाना व अन्य जैव अपशिष्ट पदार्थों के प्रयोग से बनी जैविक खाद, कंपोस्ट (Compost), वर्मीकंपोस्ट (Vermi Compost) व नाडेप (NADEP) विधि से बनी खाद का प्रयोग किया जाता है।
  • इस प्रकार की कृषि में सिंचाई के लिये जल का सीमित उपयोग तथा वर्षा के जल का संरक्षण किया जाता है।
  • आवर्तनशील कृषि में इस बात पर विशेष बल दिया जाता है कि कृषि उत्पादों को सीधे बाज़ार में बेचने की बजाय लघु स्तर पर प्रसंस्करण (Processing) किया जाए।
  • इससे न केवल इन उत्पादों का मूल्यवर्द्धन होगा बल्कि किसानों को उनके उत्पाद की उचित कीमत भी मिलेगी।
  • इस पद्धति के अंतर्गत उत्पादित अनाज के एक हिस्से को संरक्षित किया जाता है ताकि अगली फसल की बुआई के लिये बाज़ार से बीज खरीदने की आवश्यकता न पड़े।

आवर्तनशील कृषि के लाभ:

  • इस प्रकार की कृषि में रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैविक खाद का उपयोग किया जाता है। इससे मृदा की प्राकृतिक उर्वरता बनी रहती है तथा मृदा की जल धारण क्षमता का विकास होता है।
  • रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों तथा हाइब्रिड बीजों की खरीद में अतिरिक्त लागत न लगने की वजह से आवर्तनशील कृषि आधुनिक परंपरागत कृषि के स्थान पर एक सस्ता एवं धारणीय विकल्प है।
  • भारत में स्थित सूखाग्रस्त क्षेत्र जहाँ किसानों की एक बड़ी आबादी सिंचाई के लिये वर्षा के जल पर निर्भर है, वहाँ इस पद्धति द्वारा उनकी समस्याओं को कम किया जा सकता है।
  • वर्तमान भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषण, बेरोज़गारी, किसानों द्वारा आत्महत्या, युवाओं का शहरों की तरफ पलायन आदि प्रमुख समस्याएँ है। आवर्तनशील कृषि इन समस्याओं का एक बेहतर समाधान हो सकती है।
  • क्योंकि इस पद्धति में जीव-जंतुओं, वृक्षों तथा मानवीय समन्वय पर ज़ोर दिया जाता है इसलिये पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने का यह एक प्रभावी तरीका है।

आवर्तनशील कृषि की आलोचना:

  • भारत में लघु एवं सीमांत किसानों की संख्या लगभग 85 प्रतिशत है तथा औसत जोत का आकार (Average Landholding) लगभग 1.08 हेक्टेयर है। इस संदर्भ में आवर्तनशील कृषि अधिकांश किसानों के लिये नामुमकिन साबित हो सकती है क्योंकि इसके लिये एक बड़े जोत की आवश्यकता होती है।
  • इस प्रकार की कृषि को प्रारंभ करने में बड़ी लागत की आवश्यकता होती है, जबकि नीति आयोग के अनुसार, वर्ष 2017 में देश के किसानों की औसत वार्षिक आय (Average Annual Income) लगभग 46,000 रुपए प्रतिवर्ष थी। इस वजह से भारतीय किसान आवर्तनशील कृषि के उपयोग को लेकर निरुत्साहित हो सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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