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कृषि

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर वैकल्पिक फसल की व्यवस्था

  • 27 May 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

गहराते जल संकट को देखते हुए हरियाणा सरकार ने धान (Paddy) की खेती को हतोत्साहित करने का फैसला किया है। धान की खेती में जल की अत्यधिक मात्रा का प्रयोग किया जाता है जो भू-जल (Groundwater) स्तर में गिरावट का कारण है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • लंबे समय से पानी की कमी के कारण हरियाणा में 60 ऐसे क्षेत्र हैं जो डार्क ज़ोन (Dark Zone) की श्रेणी में हैं । भूजल संकट को देखते हुए राज्य सरकार ने आगामी सीज़न से धान की बुवाई को हतोत्साहित करने का निर्णय लिया है।
  • हरियाणा सरकार ने 27 मई से यमुनानगर, अंबाला, करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल, जींद और सोनीपत ज़िले के सात ब्लॉकों में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने का फैसला किया है।
  • इस पायलट प्रोजेक्ट (Pilot Project) के तहत किसानों को प्रोत्साहन राशि देकर मक्का और तुअर दाल की बुवाई को बढ़ावा दिया जाएगा। यह कदम न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल में विविधता को भी बढ़ावा देगा।
  • हरियाणा में इस नई योजना के तहत चिह्नित किसानों को मुफ्त बीज उपलब्ध कराया जाएगा और दो भागों में 2000रुपए प्रति एकड़ हेतु वित्तीय सहायता दी जाएगी।
  • 766रुपए प्रति हेक्टेयर मक्का फसल बीमा प्रीमियम (Maize Crop Insurance Premium) भी सरकार द्वारा वहन किया जाएगा। साथ ही सरकारी एजेंसियों (Government Agencies) द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर मक्का की उपज खरीदी जाएगी।
  • इसी प्रकार 'तुअर' का बीज भी किसानों को मुफ्त में दिया जाएगा और इसी तरह से प्रोत्साहन भी दिया जाएगा।
  • किसानों के अनुसार, यदि सरकार धान की खेती को रोकने की इस योजना को सफल बनाना चाहती है तो न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर वैकल्पिक फसलों की खरीद के लिये पहले एक अनुकूल व्यवस्था का निर्माण करे, ताकि उन्हें अपनी फसल का सही मूल्य प्राप्त हो सके।
  • धान की खेती छोड़ने के बाद सरकार द्वारा दो फसलों- मक्का और तुअर की दाल का विकल्प किसानों को दिया गया है परंतु पिछले सीज़न के दौरान किसानों को मंडियों में मक्के की बिक्री में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। इस अनुभव के कारण उन्होंनें इस योजना को सफल बनाने हेतु एक अनुकूल व्यवस्था के निर्माण पर बल दिया है।
  • राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों को खरीदने का कोई विश्वसनीय तंत्र नहीं है। खरीद केंद्रों की स्थापना में देरी, बिचौलियों द्वारा किया जाने वाला शोषण, आदि के कारण किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दर पर अपनी उपज को बेचने के लिये विवश हो जाते हैं।
  • जब तक किसानों को उनकी उपज के लिए उचित और सुनिश्चित कीमत नहीं दी जाती, तब तक उन्हें नुकसान होता रहेगा।

स्रोत- द हिंदू

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