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रिकैपिटलाइज़ेशन बॉण्ड से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • 07 Nov 2017
  • 7 min read

संदर्भ

हाल ही में सरकार ने एक बड़े बैंक ‘रिकैपिटलाइज़ेशन कार्यक्रम’ की घोषणा की है।  इसके माध्यम से अगले 18 माह में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को विभिन्न स्रोतों के माध्यम से 2.1 करोड़ रुपए का इक्विटी इन्फ्युजन (equity infusion) प्राप्त होने की अपेक्षा की जा रही है। विदित हो कि उच्च गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों से प्रभावित हो रहे पीएसबी को धन की आपूर्ति करने के लिये 1.35 ट्रिलियन रुपए के बॉण्ड जारी किये जा रहे हैं। रिकैपिटलाइज़ेशन बॉण्ड को सरकार द्वारा घोषित 2.11 ट्रिलियन रुपए के कैपिटल इन्फ्युशन पैकेज (capital infusion package) के एक भाग के रुप में प्रस्तावित किया गया है।  

रिकैपिटलाइज़ेशन बॉण्ड क्या है?

  • रिकैपिटलाइज़ेशन बॉण्ड एक डेडिकेटेड बॉण्ड (dedicated bond) है, जिसे एनपीए की समस्या का सामना कर रहे ‘सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों’ (Public Sector Banks-PSBs) को रिकैपिटलाइज़ करने के लिये जारी किया जाता है।  
  • रिकैपिटलाइज़ेशन शब्द का तात्पर्य किसी संस्था के ऋण को कवर करने के लिये इक्विटी राशि (equity money) देना है।  यदि सार्वजनिक क्षेत्रों की बात की जाए तो रिकैपिटलाइज़ेशन के माध्यम से सरकार द्वारा एनपीए (ऋण) को इक्विटी पूंजी से विस्थापित कर दिया जाएगा।  
  • इन बॉण्ड की बिक्री से प्राप्त धन को सरकारी इक्विटी फंडिंग के तौर पर पीएसबी में दे दिया जाता है। 

आरसीबी को कौन जारी करेगा?

  • यह कहा जा रहा है कि आरसीबी को एक होल्डिंग कंपनी द्वारा जारी किया जाएगा, जिसका सृजन पीएसबी में सरकारी इक्विटी रखने के लिये किया जाएगा। यदि ऐसी कंपनी कोई बॉण्ड जारी करती है, तो यह सरकार के ऋण में नहीं गिना जाएगा और इसलिये यह ऋण राजकोषीय घाटे में नहीं जोड़ा जाएगा।  दरअसल, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस विचार का समर्थन किया है। 
  • संभव है कि एक होल्डिंग कंपनी की स्थापना करके इसमें सभी पीएसबी में रखे सरकार के शेयरों का हस्तांतरण किया जाएगा। 
  • इसके बाद यह कंपनी प्रस्तावित बॉण्ड जारी करेगी।  यदि सरकार बॉण्ड को जारी नहीं करना चाहती है तो भी इस विकल्प का उपयोग किया जा सकता है। 
  • यद्यपि इन बॉण्ड को एक पृथक संस्था द्वारा भी जारी किया जा सकता है, परन्तु  इन्हें सरकारी पहचान प्राप्त होगी।  

रिकैपिटलाइज़ेशन बॉण्ड स किस प्रकार कारू करेंगे?

  • एक बार होल्डिंग कंपनी द्वारा जारी कर लिये जाने पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक स्वयं ही इनकी सदस्यता प्राप्त कर लेंगे। बॉण्ड को जारी करने से प्राप्त हुए धन का उपयोग पीएसबी के शेयरों को सब्सक्राइब करने में किया जाएगा और इसे अतिरिक्त सरकारी इक्विटी और पूंजी माना जाएगा।  इस प्रकार पीएसबी की पूंजी में वृद्धि की जाएगी जिससे उन्हें एनपीए संबंधी समस्याओं का समाधान करने में मदद मिलेगी। 
  • चूँकि विगत कुछ वर्षों में ऋण वृद्धि (credit growth) कम रही है, अतः वर्तमान में बैंकों के पास पर्याप्त धन है। साथ ही बैंकों में विमुद्रीकरण के दौरान भी काफी पैसा जमा किया जा चुका है।  अनुमान है कि बैंकिंग व्यवस्था में कम से कम 1 ट्रिलियन रुपए हैं, जहाँ जमाकर्त्ताओं को उनके आय के स्रोत से अवगत कराना पड़ता है। 

रिकैपिटलाइज़ेशन किस प्रकार एनपीए की समस्या के समाधान में बैंकों को मदद कर सकता है? 

  • बॉण्ड के जारी होने पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक सरकार से अतिरिक्त पूंजी प्राप्त करेंगे।  प्रत्येक बैंक द्वारा ली जाने वाली धनराशी का निर्धारण बाद में किया जाएगा और यह एनपीए समस्या पर ही निर्भर करेगा। तात्पर्य यह है कि जिस बैंक की एनपीए समस्या जितनी बड़ी होगी उस बैंक को उतनी धनराशि उपलब्ध कराई जाएगी।  यदि एक बार बैंक धन प्राप्त कर लेते हैं तो वे रिकैपिटलाइज़ेशन से प्राप्त धन का उपयोग करके अपनी बैड लोन संबंधी समस्या का समाधान कर सकते हैं। 
  • बेसेल III मानकों के अनुसार, बैंकों के पास न्यूनतम उच्च गुणवत्ता की पूंजी जैसे- इक्विटी पूंजी (टियर 1 पूंजी) होनी चाहिये।  इन मानकों के अनुसार न्यूनतम टियर-1 पूंजी 7% है।  परन्तु अनेक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पास यह न्यूनतम उच्च गुणवत्ता वाली पूंजी नहीं होती है।  

रिकैपिटलाइज़ेशन बॉण्ड का सरकार के राजकोषीय घाटे पर क्या प्रभाव होगा?

  • इन बॉण्ड की बिक्री से प्राप्त धन को राजकोषीय घाटे के अंतर्गत नहीं रखा जाएगा, परन्तु इसके लिये किया गया ब्याज भुगतान राजकोषीय घाटे का एक भाग होगा।  प्रमुख आर्थिक सलाहकार के अनुसार, इसमें होने वाला वार्षिक ब्याज भुगतान खर्च लगभग 9000 करोड़ रुपए होगा।   इस ब्याज भुगतान खर्च को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा प्राप्त की गई पूंजी के लाभों से कवर कर लिया जाएगा।
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