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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कैसे कम हो वायु प्रदूषण?

  • 07 Nov 2017
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

आज राजधानी दिल्ली में ही नहीं बल्कि पूरे देश में वायु प्रदूषण का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। हम वायु प्रदूषण के विभिन्न कारणों पर तो बात करते हैं लेकिन इसे खत्म करने या रोके जाने के उपायों पर कम ही चर्चा करते हैं। हवा की गुणवत्ता अभी भी निहायत खराब है। अगर हम कोई ठोस उपाय नहीं करते हैं तो हालात ऐसे ही बने रहेंगे। 

इस स्तर को कम करने के लिये क्या किया जाना चाहिये? 

  • यह चिंताजनक है कि अस्वच्छ ईंधन पर करों में रियायत दी जा रही है, जबकि स्वच्छ ईंधन के मामले में यह रियायत नहीं दी जा रही।
  • वस्तु एवं सेवा कर व्यवस्था के अधीन ‘फर्नेस ऑयल’ जैसे ज़हरीले ईंधन को इस्तेमाल करने वाले उद्योगों को ईंधन पर रीफंड दिया जा रहा है, जबकि प्राकृतिक गैस को जीएसटी से बाहर रखा गया है।
  • यानी उद्योगपति चाहकर भी स्वच्छ ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं कर सकते। हमें स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देना होगा।
  • हम दुनिया का सबसे प्रदूषक ईंधन यानी ‘पेट कोक’, अमेरिका से आयात करते हैं। अमेरिका प्रदूषण के चलते खुद इस पर प्रतिबंध लगा चुका है।
  • चीन ने इसका आयात बंद कर दिया है लेकिन हमारे यहाँ ‘ओपेन जनरल लाइसेंस’ के अधीन इसे अनुमति दी जा रही है।
  • उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में इस गंदे ईंधन का इस्तेमाल बंद करने के लिये दखल दी है।
  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को चाहिये कि वह उच्च सल्फर ईंधन से उत्पन्न प्रदूषकों को देखते हुए उत्सर्जन मानक तय करे।

निष्कर्ष

  • इन प्रयासों से तात्कालिक तौर पर राहत तो मिल जाएगी, लेकिन प्रदूषण कम करने हेतु दीर्घावधि सुधार के लिये सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। साथ ही पैदल या साइकिल से चलने वालों के लिये नया मार्ग भी बनाना होगा।
  • कचरा निपटान की कोई ठोस व्यवस्था करनी होगी। दिल्ली जैसे शहरों में जहाँ कचरा निस्तारण के ठिकाने बनाए गए हैं वहाँ भी जब तब आग लगती ही रहती है।
  • यदि कचरा फेंकने की उपयुक्त व्यवस्था नहीं है तो लोगों को सबसे आसान यही लगता है कि उसे एक जगह एकत्रित कर जला दिया जाए। हमें कचरे के पूर्ण निस्तारण की व्यवस्था करनी होगी। इसमें कचरे को अलग-अलग करना भी शामिल है।
  • दिल्ली के आसपास पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फसल जलाने से होने वाले प्रदूषण का ऐसा हल निकालना होगा जो किसानों को उनके फसल अवशेष के वैकल्पिक उपयोग का तरीका सिखा सके।
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