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भारतीय राजव्यवस्था

आंध्र प्रदेश राज्य निवार्चन आयुक्त विवाद

  • 09 Jul 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये

राज्य निर्वाचन आयोग

मेन्स के लिये

राज्य के स्थानीय चुनावों में राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका, राज्य निवार्चन आयुक्त की नियुक्ति में राज्यपाल की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग और राज्य के नेता अतलुरी रामकृष्ण (Atluri Ramakrishna) द्वारा दायर अलग-अलग याचिकाओं पर जल्द ही सुनवाई करने और निर्णय देने की बात की है। 

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि बीते माह 10 जून को सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की उस अंतरिम याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 1994 के आंध्रप्रदेश पंचायती राज अधिनियम में संशोधन को निरस्त करने के आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
  • अब इस मुद्दे पर सभी याचिकाओं की सुनवाई एक साथ की जाएगी।

क्या था मामला?

  • दरअसल आंध्र प्रदेश सरकार ने बीते दिनों 10 अप्रैल को आंध्रप्रदेश पंचायत राज कानून, 1994 में संशोधन कर राज्य निर्वाचन आयुक्त (State Election Commissioner-SCE) के कार्यकाल को पाँच वर्ष से घटाकर तीन वर्ष कर दिया था, साथ ही इस संशोधन के माध्यम से राज्य निर्वाचन आयुक्त (SCE) के पद को केवल सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों तक ही सीमित कर दिया गया था। 
  • ध्यातव्य है कि संशोधन से पूर्व सेवानिवृत्त नौकरशाह भी राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर नियुक्ति होने के पात्र थे।
  • इस अध्यादेश के लागू होते ही, राज्य सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश वी. कनगराज (V Kanagaraj) को राज्य का नया निर्वाचन आयुक्त नियुक्त कर दिया और तत्कालीन राज्य निर्वाचन आयुक्त निम्मागड्डा रमेश कुमार को अचानक पद से हटा दिया गया।
  • जिसके पश्चात् स्वयं रमेश कुमार तथा कई अन्य लोगों द्वारा आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई और राज्य सरकार के अध्यादेश पर रोक लगाने की मांग की गई है।
  • 29 मई को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के अध्यादेश को निरस्त कर दिया और स्पष्ट किया कि राज्य सरकार के पास भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243K और 243 ZA के तहत राज्य निर्वाचन आयुक्तों को नियुक्त करने की शक्ति नहीं है।
  • राज्य के निर्वाचन आयुक्तों को नियुक्त करने की शक्ति राज्य के राज्यपाल के पास होती है।
  • साथ ही आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि राज्य निर्वाचन आयुक्त के कार्यकाल को 5 वर्ष से घटकर 3 वर्ष करना पूर्ण रूप से एक मनमाना कदम है।
  • जिसके पश्चात् आंध्र प्रदेश सरकार इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लेकर गई और 11 जून, 2020 को सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय के निर्णय पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, हालाँकि मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे के नेतृत्त्व वाली खंडपीठ ने नोटिस जारी करते हुए आंध्रप्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग और निम्मगड्डा रमेश कुमार से इस संबंध में अपनी प्रतिकिया मांगी थी।

राज्य निर्वाचन आयोग (SEC)

  • राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) के गठन का मुख्य उद्देश्य राज्य में स्थानीय निकायों के लिये स्वतंत्र, निष्पक्ष और तटस्थ निर्वाचन कराना।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243K तथा 243ZA में राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) संबंधी प्रावधान किये गए हैं।
  • SEC का गठन 73वें तथा 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 (Constitutional Amendments Act, 1992) के तहत किया गया था।
  • SEC भारत के निर्वाचन आयोग से स्वतंत्र इकाई है और राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है।

कार्य:

  • SEC का गठन प्रत्येक राज्य/संघशासित क्षेत्र के निगम, नगरपालिकाओं, ज़िला परिषदों, ज़िला पंचायतों, पंचायत समितियों, ग्राम पंचायतों तथा अन्य स्थानीय निकायों के चुनावों के संचालन के लिये किया गया है। 
  • अनुच्छेद 243K के अनुसार पंचायतों के निर्वाचन तथा निर्वाचन नामावली तैयार करने के दौरान अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के कार्य राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होंगे।

राज्यपाल की भूमिका:

  • राज्य निर्वाचन आयोग में एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होता है जिसे राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • संविधान के अनुसार, राज्य के विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन, राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद की अवधि तथा सेवा की शर्तों का निर्धारण राज्यपाल द्वारा किया जाएगा। 

स्रोत: द हिंदू

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