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एडिटोरियल

  • 26 Apr, 2021
  • 7 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

MSME में लघु उद्योग की स्थिति

यह एडिटोरियल दिनांक 23/04/2021 को 'द हिंदू बिज़नेस लाइन' में प्रकाशित लेख “Micro enterprises need exclusive treatment” पर आधारित है। इसमें सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (MSME) क्षेत्र में सूक्ष्म उद्योग के महत्त्व पर चर्चा की गई है। 

जैसा कि हम जानते हैं कि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों (MSME) को सामाजिक समानता एवं आर्थिक विकास का इंजन स्वीकार किया जाता है। अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्थाओं में MSME क्षेत्र 90 % से अधिक योगदान देता है एवं औद्योगिक उत्पादन तथा निर्यात को बढ़ावा देता है और साथ ही बेरोज़गारी की दर को कम करता है। 

हालाॅंकि MSME में सूक्ष्म उद्योग सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्र है। इस क्षेत्र को विमुद्रीकरण एवं कोविड-19 के कारण आकस्मिक लॉकडाउन की दोहरी क्षति पहुँची है। इसके अतिरिक्त, सूक्ष्म उद्योगों से जुड़े नीतिगत निर्णय लेने के लिये इस क्षेत्र से जुड़ी कई विशेषताओं एवं बाधाओं का ध्यान रखना पड़ता है। संपूर्ण MSME क्षेत्र के लिये बनाई गई नीतियाँ इसके लिये कम उपयोगी हैं। 

MSME में सूक्ष्म उद्योगों का महत्त्व 

  • राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (National Sample Survey Organisation - NSSO) के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, विनिर्माण आधारित सूक्ष्म उद्योग MSME में 99.7% का योगदान देते हैं, वहीं MSME क्षेत्र में उपलब्ध कुल रोज़गार का 97.5% रोज़गार सूक्ष्म उद्योग द्वारा प्रदान किया जाता है। 
  • इसके अलावा सूक्ष्म उद्योग MSME के कुल उत्पादन में 90.1% और आय में 91.9% का योगदान देता है।
  • शिल्पकार, बुनकर, खाद्य प्रसंस्करण, मछुआरा, बढ़ई, मोची, ट्यूटर, दर्जी, प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन, सड़क किनारे स्थित ढाबे, आइसक्रीम, ब्यूटी पार्लर, सैलून, मोटर मरम्मत, विज्ञापन एजेंसी इत्यादि सूक्ष्म उद्योग के कुछ उदाहरण हैं। बड़ी संख्या में इनकी उपस्थिति सूक्ष्म उद्योग को हमारे सामाजिक-आर्थिक प्रणाली का सबसे विविधतापूर्ण एवं विस्तृत क्षेत्र बनाती है।
  • सूक्ष्म उद्योगों के कई प्रकार है एवं उनकी गतिविधियाॅं भी विविध प्रकार की हैं किंतु इनका आर्थिक योगदान अपेक्षाकृत कम है; फिर भी ये उद्योग विकास प्रक्रिया द्वारा दरकिनार किये गए असुरक्षित वर्गों के लिये बेहद ज़रूरी हैं। 

सूक्ष्म उद्योग से संबंधित चुनौतियाॅं

  • पूंजीगत ऋण: सूक्ष्म उद्योगों में स्वयं की पूंजी की क्षमता कम है। अतः इन उद्योगों में परिसंपत्तियों का उपयोग किराये पर अधिक किया जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि इन उद्यमों में कुल लागत का एक बड़ा हिस्सा किराये पर खर्च होता है। पूंजीगत ऋण सूक्ष्म उद्योगों की वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिये बहुत कम उपयोगी हो पाते हैं। बाज़ार की अनिश्चितताओं से जुड़े जोखिमों को देखते हुए सूक्ष्म उद्यम में निवेश के लिये लाभदायक क्षेत्र नहीं माना जाता है।
  • संरचनात्मक चुनौती: कार्यबल का एक बड़ा भाग इस क्षेत्र में होने की बाद भी इस समूह के लोगों की संगठित आवाज़ की कमी है। इस क्षेत्र के प्रतिनिधित्व के लिये अलग से कोई समूह सक्रिय नहीं है। अतः प्रक्रियाओं की सीमित और कम समझ के कारण बड़े स्तर पर सौदेबाजी (Negotiation) में ये पिछड़ जाते हैं।
  • 'वन साइज फिट ऑल' दृष्टिकोण: MSME के तहत सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों हेतु प्रोत्साहन पैकेज सामान्यीकृत रूप से डिज़ाइन किया जाता है। विशेष तौर पर लघु उद्योगों के लिये कोई वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज अलग से डिज़ाइन नहीं किया जाता है। 

आगे की राह 

  • लघु उद्योगों को समर्पित नीति: यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि एक सामान्यीकृत नीति को पूरे MSME क्षेत्र पर लागू नहीं किया जा सकता है और ना ही इससे सूक्ष्म उद्योगों की आवश्यकताएँ पूरी हो सकती है। दरअसल MSMEs पर RBI की विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट यह दर्शाती है कि सूक्ष्म (और लघु) उद्यमों में सौदेबाजी की क्षमता सीमित है। अतः सूक्ष्म उद्योग की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सूचनाओं को एकत्र करने और उनके विशिष्ट उपयोग के लिये एक केंद्रित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। 
  • सहकारी मॉडल: उन्नत प्रौद्योगिकी में उच्च निवेश, डिजिटल और प्रौद्योगिकी सक्षम प्लेटफार्मों के उपयोग, प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण, मानव संसाधनों में अधिक निवेश, वित्त की बेहतर पहुॅंच आदि के लिये और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
    • सहकारी मॉडल (किसान उत्पादक संगठनों की तर्ज़ पर) को बढ़ावा देने से इस संबंध में सूक्ष्म उद्योगों को मदद मिल सकती है। 

निष्कर्ष:

वर्ष 2024-25 तक $5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था जैसे महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के लिये MSME क्षेत्र को नज़रंदाज करना सही नहीं होगा क्योंकि सूक्ष्म उद्योग का योगदान उत्पादन, आय एवं रोज़गार प्रदान करने में उल्लेखनीय है, जो एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। 

अभ्यास प्रश्न: सूक्ष्म उद्योगों को ध्यान में रखते हुए एक नई औद्योगिक नीति तैयार करना आवश्यक हो गया है। टिप्पणी कीजिये।


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