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  • 03 Jan, 2020
  • 12 min read
शासन व्यवस्था

ऊर्जा क्षेत्र में एकीकृत शासन व्यवस्था की आवश्यकता

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत के ऊर्जा क्षेत्र की शासन व्यवस्था में एकीकरण की आवश्यकता से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

विश्व भर में ऊर्जा को सार्वभौमिक रूप से आर्थिक विकास और मानव विकास के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में मान्यता दी गई है। ऊर्जा क्षेत्र में भारत की भूमिका को इसी तथ्य से आँका जा सकता है कि वह अमेरिका, चीन और रूस के बाद दुनिया में ऊर्जा का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। हालाँकि कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के ऊर्जा क्षेत्र की शासन व्यवस्था काफी जटिल है और यह भारत में ऊर्जा क्षेत्र के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकती है। ऐसे में आवश्यक है कि हम भारत के ऊर्जा क्षेत्र की संरचना का विश्लेषण करते हुए यह विचार करें कि क्या देश में ऊर्जा से संबंधित विभिन्न मंत्रालयों और विनियामकों का एकीकरण किया जा सकता है?

ऊर्जा क्षेत्र में प्रशासनिक ढाँचे का मौजूदा स्वरूप

  • वर्तमान में भारत के ऊर्जा क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिये देश में 5 अलग-अलग मंत्रालय और विभिन्न नियामक संस्थाएँ मौजूद हैं।
  • पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, कोयला, नवीकरणीय ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा के लिये देश में अलग-अलग मंत्रालय या विभाग मौजूद हैं। साथ ही हमारे पास विद्युत मंत्रालय और राज्य-स्तरीय निकाय भी हैं जो बिजली वितरण कंपनियों या DISCOMS को विनियमित करते हैं।
  • इसके अलावा प्रत्येक प्रकार के ईंधन और ऊर्जा स्रोत के लिये अलग-अलग नियामकों की उपस्थिति इस क्षेत्र में कार्य को और अधिक जटिल बनाती है।
  • पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस क्षेत्र के भी दो नियामक हैं (1) अपस्ट्रीम गतिविधियों के लिये हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (2) डाउनस्ट्रीम गतिविधियों के लिये पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड।

अपस्ट्रीम गतिविधियाँ

  • अपस्ट्रीम गतिविधियाँ मुख्य रूप से तेल और प्राकृतिक गैस के अन्वेषण तथा उत्पादन के प्रारंभिक चरण से संबंधित होती हैं।

डाउनस्ट्रीम गतिविधियाँ

  • डाउनस्ट्रीम गतिविधियाँ सामान्यतः तेल और प्राकृतिक गैस को अंतिम उत्पाद में बदलने की प्रक्रिया व वितरण से संबंध होती हैं।

क्यों आवश्यक है एकीकरण?

  • अलग-अलग नियामकों के मध्य समन्वय का अभाव
    देश के ऊर्जा क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिये मौजूदा मंत्रालयों और विभागों के मध्य समन्वय स्थापित करना अपेक्षाकृत काफी कठिन कार्य है। ऊर्जा क्षेत्र में कार्यरत प्रत्येक मंत्रालय और विभाग के अपने-अपने लक्ष्य एवं प्राथमिकताएँ हैं और वे सिर्फ उन्हीं लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जिसके कारण ऊर्जा क्षेत्र के विकास हेतु निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में कठिनाई पैदा होती है। विभागों के मध्य बेहतर समन्वय स्थापित करने के मामले में भारतीय रेलवे द्वारा उठाया गया हालिया कदम एक अच्छा उदाहरण है जिसमें कुल आठ सेवाओं का एकीकरण किया गया ताकि ‘विभागीयकरण’ को समाप्त कर विभागों के मध्य बेहतर समन्वय स्थापित किया जा सके।
  • आँकड़ों की कमी
    ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित समग्र आँकड़ों का एकत्रीकरण भी एक बड़ी समस्या है। भारत में कोई भी एकल एजेंसी संपूर्ण और एकीकृत रूप से ऊर्जा क्षेत्र का डेटा एकत्र नहीं करती है। जहाँ एक ओर ऊर्जा के उपभोग से संबंधित आँकड़े मुश्किल से ही उपलब्ध हो पाते हैं, वहीं विभिन्न मंत्रालयों द्वारा एकत्रित पूर्ति पक्ष के आँकड़े भी काफी हद तक शक के दायरे में रहते हैं। हालाँकि सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय इस संबंध में आँकड़े एकत्र करने और सर्वेक्षण का कार्य करता है, परंतु वह भी किसी निश्चित अंतराल पर यह कार्य नहीं कर पाता।

अन्य देशों के मॉडल

  • ऊर्जा की शासन व्यवस्था को लेकर विभिन्न देशों ने विभिन्न मॉडल अपनाए हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, फ्राँस और यूनाइटेड किंगडम जैसे विकसित देशों में ऊर्जा क्षेत्र को एकल मंत्रालय या विभाग द्वारा प्रशासित अथवा नियंत्रित किया जाता है।
  • कई देशों के शासन मॉडल में ऊर्जा मंत्रालय अथवा विभाग पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, खानों और उद्योग जैसे अन्य संबंधित मंत्रालयों अथवा विभागों के साथ संयोजन में कार्य कर रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये यूनाइटेड किंगडम (UK) में ‘व्यापार, ऊर्जा और औद्योगिक रणनीति विभाग’ है, फ्राँस में ‘पर्यावरण, ऊर्जा और समुद्री मामलों का मंत्रालय’ है, ब्राज़ील में ‘खान एवं ऊर्जा मंत्रालय’ है तथा ऑस्ट्रेलिया में ‘पर्यावरण और ऊर्जा मंत्रालय’ है।
  • उक्त सभी उदाहरणों से ऊर्जा क्षेत्र की एकीकृत शासन व्यवस्था का महत्त्व स्पष्ट हो जाता है।

केलकर समिति

  • वर्ष 2013 में केलकर समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ‘कई मंत्रालय और एजेंसियाँ ​​वर्तमान में ऊर्जा से संबंधित मुद्दों के प्रबंधन में शामिल हैं, जिससे समन्वय और संसाधनों के इष्टतम उपयोग की समस्या एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरी है इसलिये ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के प्रयास भी कमज़ोर हो रहे हैं। अतः आवश्यक है कि विभिन्न एजेंसियों और मंत्रालयों का एकीकरण कर एक एकीकृत शासन व्यवस्था का निर्माण किया जाए।

राष्ट्रीय ऊर्जा नीति

  • राष्ट्रीय ऊर्जा नीति (National Energy Policy-NEP) के मसौदे में नीति आयोग ने भी पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस (MoPNG), कोयला (MoC), नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा (MNRE) एवं विद्युत मंत्रालय को मिलाकर एक एकीकृत ऊर्जा मंत्रालय बनाए जाने की वकालत की थी।
  • हालाँकि इसमें परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) को शामिल नहीं किया गया था, क्योंकि यह देश की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
  • नीति आयोग ने DNEP में स्पष्ट किया था कि प्रस्तावित मंत्रालय के अंतर्गत ऊर्जा क्षेत्र के विभिन्न पहलुओं से संबंधित विभिन्न एजेंसियाँ होंगी।
    • जैसे- ऊर्जा नियामक एजेंसी, ऊर्जा डेटा एजेंसी, ऊर्जा दक्षता एजेंसी, ऊर्जा योजना एवं तकनीकी एजेंसी, ऊर्जा योजना कार्यान्वयन एजेंसी और ऊर्जा अनुसंधान एवं विकास (R&D) एजेंसी।

एकीकृत शासन व्यवस्था के लाभ

  • संसाधनों का इष्टतम प्रयोग
    एकीकृत ऊर्जा मंत्रालय भारत को ऊर्जा सुरक्षा, स्थिरता और पहुँच के लक्ष्यों को पूरा करने हेतु सीमित संसाधनों का इष्टतम प्रयोग करने में सक्षम बनाएगा। वर्तमान व्यवस्था के तहत अलग-अलग मंत्रालयों और विभागों के कारण उपलब्ध सीमित संसाधनों का यथासंभव प्रयोग नहीं हो पाता है और संसाधन बर्बाद हो जाते हैं।
  • निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेज़ी आएगी
    एकीकरण का एक अन्य लाभ यह होगा कि इसके परिणामस्वरूप देश के समग्र ऊर्जा क्षेत्र के विकास हेतु महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेज़ी आएगी।
  • एकीकृत नीति तैयार करना संभव होगा
    मौजूदा मंत्रालयों और विभागों के मध्य समन्वय के अभाव में एक एकीकृत और संपूर्ण ऊर्जा नीति का निर्माण जटिल एवं चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया है, जो कि इस देश के ऊर्जा क्षेत्र में एक बड़ी बाधा बन सकता है। इस समस्या से मंत्रालयों के एकीकरण के माध्यम से निपटा जा सकता है।
  • गुणवत्तापूर्ण आँकड़ों की उपलब्धता
    मंत्रालयों और विभागों के एकीकरण के माध्यम से ऊर्जा की मांग और पूर्ति के उच्च गुणवत्ता वाले आँकड़े उपलब्ध हो सकेंगे, जिनके माध्यम से देश के ऊर्जा क्षेत्र की सही स्थिति जानने और उसी के अनुसार, नीतियों का निर्माण करने में मदद मिलेगी।

इस संदर्भ में सरकार के प्रयास

  • बीते कुछ वर्षों में मौजूदा सरकार ने देश के ऊर्जा क्षेत्र को एकीकृत करने की दिशा में कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं जिनमें नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय और विद्युत मंत्रालय हेतु एक ही मंत्री की नियुक्त जैसे कदम उल्लेखनीय हैं।
  • विशेषज्ञों ने सरकार के इस कदम की काफी सराहना की थी, क्योंकि उक्त दोनों मंत्रालयों के कार्य आपस में काफी हद तक जुड़े हुए हैं।
  • यदि एक ही व्यक्ति दोनों मंत्रालयों का प्रमुख होगा तो इस संबंध में अब तक लंबित सभी मामलों को जल्द-से-जल्द सुलझाया जा सकेगा।

आगे की राह

  • हालाँकि सरकार ऊर्जा क्षेत्र को एकीकृत करने की दिशा में यथासंभव प्रयास कर रही है, परंतु अभी भी रास्ता काफी लंबा है।
  • ऊर्जा प्रशासन में सुधार को लेकर NEP की सिफारिशों को जल्द-से-जल्द लागू किया जाना चाहिये, साथ ही मौजूदा नौकरशाही ढाँचे पर सिफारिशों के कठोर प्रभाव को देखते हुए सावधानी बरतनी भी आवश्यक है।
  • इस तरह का एक एकीकृत ऊर्जा मंत्रालय भारत को विश्व के साथ ऊर्जा क्षेत्र में हो रहे परिवर्तनों के मद्देनज़र कदम-से-कदम मिलाकर चलने में भी मदद करेगा।

प्रश्न: भारत में ऊर्जा क्षेत्र की जटिल शासन व्यवस्था के आलोक में शासन व्यवस्था के एकीकृत मॉडल की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये।


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