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  • 04 Jul 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    भारतीय राजनीति में संघवाद की अवधारणा ने अपने अंतर्विरोधों को बदलना जारी रखा है। विश्लेषण कीजिये।

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संघवाद को परिभाषित कीजिये।

    • संघीय ढाँचे में परिवर्तन को चिह्नित कीजिये।

    • केंद्र-राज्य संबंधों के वर्तमान स्वरूप का वर्णन कीजिये।

    • आगे की राह लिखिये।

    परिचय

    • संघीय राज व्यवस्था में संविधान द्वारा शक्तियों का विभाजन केंद्र सरकार व राज्य सरकारों के बीच किया जाता है।
    • द्वैध शासन व्यवस्था, लिखित संविधान, संविधान की सर्वोच्चता, स्वतंत्र न्यायपालिका आदि संघीय व्यवस्था की विशेषताएँ हैं।

    प्रमुख बिंदु

    भारत के संघीय ढाँचे की विशेषताएँ

    • भारत में स्वतंत्रता के बाद के दो दशकों में एक ही पार्टी की सरकार केंद्र व राज्यों में रही जिस कारण संघीय व्यवस्था का स्वरूप स्पष्ट परिलक्षित नहीं हो पाया। कालांतर में क्षेत्रीय पार्टियों की राज्य सरकारें बनने के बाद, राज्यों द्वारा केंद्र से अधिक आर्थिक, विधिक व प्रशासनिक अधिकारों की मांग के चलते उनके बीच विवाद शुरू हुए।
    • योजना आयोग की स्थापना के कारण वित्तीय अधिकारों का केंद्रीकरण हुआ। आयोग ने वित्त आयोग के समानांतर संस्था के रूप में कार्य किया। जिस कारण वित्तीय निर्णयों में केंद्र का प्रभुत्व बना रहा। इस दौरान इस दौरान वित्तीय संघवाद का झुकाव केंद्र की ओर रहा है।
    • वर्ष 1966 के बाद राज्यों में राष्ट्रपति शासन का प्रयोग राजनैतिक उद्देश्यों व राज्यों पर केंद्र की सर्वोच्चता स्थापित करने के लिये किया गया। राज्यपालों द्वारा समय-समय पर राज्य सरकारों के विधायी कार्य में अनावश्यक हस्तक्षेप किया जाता रहा। इसी संदर्भ में सरकारिया आयोग ने गैर-राजनीतिक व्यक्ति को गवर्नर नियुक्त करने की अनुशंसा की।
    • अंतर्राज्यीय संबंध: संविधान के अनुच्छेद 263 में अंतर्राज्यीय परिषद के गठन का प्रावधान किया गया है। अनुच्छेद 262 के तहत संसद अंर्तराज्यीय नदियों के जल बँंटवारे से संबंधित किसी विवाद पर न्याय निर्णयन कर सकती है।
    • केंद्र प्रायोजितयोजनाओं के निर्माण व क्रियान्वयन में केंद्र की स्थिति राज्यों की अपेक्षा सुदृढ़ रहती है। इसमें टॉप टू वॉटम अप्रोच होने के कारण राज्यों की नीति निर्माण में भूमिका सीमित हो जाती है।

    केंद्र राज्य संबंधों का वर्तमान प्रतिरूप

    • सहकारी संघवाद: इसमें केंद्र व राज्यों के मध्य समानता व सहयोग के आधार पर संबंध निर्धारित होते हैं। यह राष्ट्रीय नीतियों के निर्माण व उनके क्रियान्वयन में राज्यों की भागीदारी सुनिश्चित करता है।
    • प्रतिस्पर्द्धी संघवाद: यह राज्यों के मध्य वित्त व निवेश को आकर्षित करने हेतु स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धी को प्रोत्साहन प्रदान करता है। इससे राज्यों में गुड गवर्नेंस में सुधार होता है।
    • एक देश, एक चुनाव की संकल्पना में लोकसभा व राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव है। यह केंद्र व राज्यों के बीच संबंधों को प्रभावित कर सकता है। विभिन्न क्षेत्रीय पार्टियाँ इसका विरोध कर रही हैं।
    • योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग के गठन ने सहकारी संघवाद को बढ़ावा दिया है।

    आगे की राह

    एस.आर. बोम्मई (1994) मामले में उच्चतम न्यायालय ने राज्य को केंद्र से स्वतंत्र संवैधानिक इकाई का दर्जा दिया है। इस संदर्भ में केंद्र व राज्यों को सहकारी संघवाद के आधार पर कार्य करना चाहिये। Question. The oncept of federalism has continued to change its contours in India Polity. (200 Word)

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