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रोहिंग्या समस्या एवं अंतर्राष्ट्रीय संवेदनहीनता

  • 26 Dec 2018
  • 6 min read

भूमिका


2012 में रोहिंग्या तथा बौद्धों के बीच म्याँमार के रखाइन क्षेत्र में हिंसक साम्प्रदायिक दंगे हुए जिसमें 200 रोहिंग्या मारे गए तथा हजारों लोगों को घर छोड़ना पड़ा। दो साल बाद 2014 में भी हिंसात्मक संघर्ष भड़क उठा था। वर्तमान में म्याँमार के ये अल्पसंख्यक मुस्लिम रोहिंग्या समुदाय जातीय हिंसा से बचने के लिये म्याँमार से भाग रहे हैं। अन्य देशों द्वारा शरण न दिये जाने के कारण या तो ये मानव तस्करों के हाथ लग जाते हैं या समुद्र में ही भटकते रहते हैं। समुद्र में नावों पर फँसे इन लोगों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र ने मानव आपदा की चेतावनी दी है। हाल ही में इस समुदाय के लोगों के खिलाफ़ हुई हिंसा पर संयुक्त राष्ट्र ने चिंता जताते हुए कहा कि “ये दुनिया के सबसे प्रताड़ित लोगों में से हैं।”


रोहिंग्या का इतिहास

  • रोहिंग्या म्याँमार के रखाइन (अराकान) क्षेत्र के निवासी हैं तथा ये 7वीं शताब्दी में अराकान क्षेत्र में रहने वाले अरब, मुगल तथा बंगाली व्यापारियों के वंशज हैं।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध में म्याँमार पर ब्रिटिश नियंत्रण के बाद रोहिंग्याओं की वफादारी अंग्रेजों के प्रति थी तथा 1947 में इन्होंने एक सेना का गठन कर जिन्ना से उत्तरी अराकान क्षेत्र का पूर्वी पाकिस्तान में विलय करने को कहा। माना जाता है कि इनके इसी कार्य ने इनके एवं म्याँमार सरकार के बीच समस्या के बीज बो दिये।
  • 1948 में म्याँमार की स्वतंत्रता के बाद बौद्ध अधिकारियों ने ऐसी नीतियाँ बनानी शुरू कर दीं जिन्हें मुस्लिम समुदाय भेदभावपूर्ण मानता था।
  • 1962 में सैन्य शासन की स्थापना से पूर्व इन्हें म्याँमार की राष्ट्रीयता प्राप्त थी तथा संसद, मंत्रिमण्डल व अन्य उच्च सरकारी पदों पर इनकी भागीदारी थी, किंतु बाद में 1982 के नागरिक कानून में, जो सैन्य शासकों द्वारा बनाया गया था, इन्हें गैर-राष्ट्रीय तथा विदेशी घोषित कर दिया गया। जातीय संहार से बचने के लिये बड़ी संख्या में रोहिंग्या म्याँमार छोड़कर पाकिस्तान, बांग्लादेश, सऊदी अरब, थाईलैण्ड व मलेशिया जैसे देशों में रह रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार देश छोड़ने वाले रोहिंग्या लगभग 130,000 हैं।

रोहिंग्याओं की समस्याएँ

  • म्याँमार के बौद्ध संगठनों द्वारा सरकार पर रोहिंग्याओं को वापस म्याँमार न आने देने तथा ज्यादा अधिकार न देने का दबाव बनाया जा रहा है।
  • म्याँमार जहाँ वर्तमान रोहिंग्याओं की समस्या के लिये मानव तस्करों को दोषी मानता है वहीं रोहिंग्या तथा मानवाधिकार संगठन इसके लिये म्याँमार सरकार की नीतियों को दोषी मानते हैं।

रोहिंग्या समस्या के कारण

  • रोहिंग्या समस्या के प्रमुख कारण धार्मिक संघर्ष, धार्मिक एवं जातीय भिन्नताएँ, रखाइन राज्य का इतिहास, आर्थिक स्थिति, 1982 का नागरिकता कानून, बढ़ता अविश्वास, अवसरों में असमानता इत्यादि माने जाते हैं। रखाइन राज्य के म्याँमार के अन्य राज्यों की तुलना में पिछड़े होने से रोहिंग्याओं में बढ़ता असंतोष।
  • म्याँमार सरकार रोहिंग्याओं को अवैध अप्रवासी मानती है, हालाँकि वे यहाँ कई पीढि़यों से रह रहे हैं। कुछ म्याँमार सांसदों ने सरकार से इनकी मानवीय समस्याओं का समाधान करने की अपील की है लेकिन म्याँमार सरकार में इस समस्या को सुलझाने के प्रति गंभीरता का अभाव है क्योंकि उन्हें (सरकार) बहुसंख्यक बौद्ध मत खोने का डर है।

समाधान

  • इस समस्या के समाधान के लिये प्रभावित देशों तथा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को मिलकर कार्य करना चाहिये जिससे मानवीय गरिमा, मानवाधिकार तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के अनुरूप नीति का विकास कर लोगों की मदद की जा सके। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के अनुसार दिल्ली में लगभग 9000 रोहिंग्या रह रहे हैं, किंतु भारत म्याँमार पर अनावश्यक दबाव बनाकर बनते रिश्तों को प्रभावित नहीं करना चाहता।
  • अंतर्राष्ट्रीय समुदाय रक्षा की ज़िम्मेदारी के सिद्धांत के तहत म्याँमार सरकार पर अपने लोगों की रक्षा के लिये दबाव डाल सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय क्या कर सकता है?

  • स्वैच्छिक वापसी, जिसके अंतर्गत शरणार्थी सुरक्षित एवं स्वेच्छापूर्वक अपने मूल देश वापस जा सकते हैं।
  • स्थानीय एकीकरण, जिसके माध्यम से शरणार्थी स्थानीय समाज के सदस्य बन सकते हैं।
  • पुनर्वास, जिसके अंतर्गत शरणार्थियों को स्थायी रूप से किसी तीसरे देश में बसाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय रक्षा की ज़िम्मेदारी के इस सिद्धांत को लागू तो करना चाहता है, किंतु म्याँमार सरकार इसमें सहयोग नहीं दे रही है।
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