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नोलन समिति की प्रथम रिपोर्ट “सार्वजनिक जीवन में नैतिक मानक” का सारांश

  • 04 May 2020
  • 32 min read

नोलन कमेटी ने प्रधानमंत्री के अनुरोध पर छह माह तक ब्रिटिश सार्वजनिक जीवन में नैतिक मानक के बारे में जाँच की। इस सरांश में सांसद, मंत्री, सिविल सेवक,अर्द्ध-स्वायत्त गैर-सरकारी और एनएचएस निकायों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। 

हम निर्णायक रूप से नहीं कह सकते कि सार्वजनिक जीवन में आचरण के मानक में अवनति हुई है किंतु यह कहा जा सकता है कि सार्वजनिक जीवन में आचरण कि जाँच पूर्व की अपेक्षा वर्तमान में सख्ती से की जाती है तथा सार्वजनिक जीवन में लोगों के बीच ऊँचे मानदंडों की मांग रहती है, साथ ही अधिकांश लोग इन उच्च मानदंडों को पूरा भी करते है। परंतु इन मानदंडों को बनाए रखने तथा लागू करने की प्रक्रिया में खामियाँ हैं। परिणामस्वरूप सार्वजनिक जीवन में लोग हमेशा उतने स्पष्ट नहीं होते जितना इस बात में होते हैं कि उनके व्यवहार की सीमाएँ कहाँ तक हैं। हम इसे सार्वजनिक चिंता का प्रमुख कारण मानते हैं तथा इसके लिये तुरंत सुधारात्मक कार्रवाई की आवश्यकता है।

यह पत्रक समिति के सर्वसम्मत निष्कर्षों के सारांश के साथ-साथ सिफारिशों को भी सूचीबद्ध करता है।

सार्वजनिक जीवन के सात सिद्धांत:-

निःस्वार्थता- सार्वजनिक अधिकारियों/नौकरशाहों को लोकहित के संदर्भ में निर्णय लेना चाहिये। उन्हें अपने व अपने परिवार या अपने दोस्तों के लिये वित्तीय या अन्य भौतिक लाभ हेतु  निर्णय नहीं लेना चाहिये।

सत्यनिष्ठा- नौकरशाहों को ऐसे किसी वित्तीय या अन्य दायित्व के अधीन बाहरी व्यक्तियों या संगठनों के तहत नहीं होना चाहिये जिससे उनके आधिकारिक कर्त्तव्य प्रभावित हों।

वस्तुनिष्ठता- सार्वजनिक कामकाज, नियुक्तियाँ करने, अनुबंध या पुरस्कार और लाभ के लिये लोगों की सिफारिश करने में नौकरशाहों को योग्यता को आधार बनाना चाहिये।

जवाबदेही- नौकरशाह अपने निर्णयों और कार्यों के लिये जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं और उन्हें अपने कार्यालय को भी जाँच/समीक्षा के अधीन रखना चाहिये।

खुलापन- नौकरशाहों के सभी निर्णयों और कार्यों में खुलापन होना चाहिये। उन्हें अपने निर्णयों का स्पष्ट कारण देना चाहिये तथा सूचना तभी  प्रतिबंधित करनी चाहिये जब व्यापक जन-हित की मांग हो।

ईमानदारी- नौकरशाह का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने सार्वजनिक कर्त्तव्यों से संबंधित निजी हितों की घोषणा करे और ऐसे किसी विरोध के समाधान के लिये आवश्यक कदम उठाए जो सार्वजनिक हितों की रक्षा करने में आड़े आता हो।

नेतृत्व- नौकरशाहों को अपने नेतृत्व और उदाहरण द्वारा एक मिसाल पेश करते हुए इन सिद्धांतों को विकसित और इनका समर्थन करना चाहिये।

ये सिद्धांत सार्वजनिक जीवन के सभी पहलुओं पर लागू होते हैं। किसी भी तरह से जनता की सेवा करने वाले लोगों के लिये समिति ने इन्हें प्रस्तुत किया है।

सामान्य सिफारिश:

हमारे कुछ निष्कर्षों का संपूर्ण सार्वजनिक सेवा में सामान्य अनुप्रयोग होता है।

सार्वजनिक जीवन के सिद्धांत-

सार्वजनिक जीवन में अंतर्निहित आचरण के सामान्य सिद्धांतों को पुनःवर्णित करने की आवश्यकता है।

आचार संहिता-

सभी सार्वजनिक निकायों को इन सिद्धांतों को शामिल करते हुए “आचार संहिता” तैयार करनी चाहिये।

स्वतंत्र जाँच-

मानकों को कायम रखने हेतु आंतरिक प्रणालियों की स्वतंत्र जाँच होनी चाहिये।

शिक्षा-

विशेष रूप से मार्गदर्शन और प्रशिक्षण के माध्यम से सार्वजनिक निकायों में आचरण के मानकों को बढ़ावा देने तथा सुदृढ़ करने की अत्यधिक आवश्यकता है।

सांसद:

संसदीय भूमिका से संबंधित परामर्श देने वाले सांसदों की बढ़ती संख्या के साथ कंसल्टेंसी से जुड़ने से संसद सदस्यों की वित्तीय ईमानदारी पर जनता का विश्वास घटा है। वर्तमान में सदन का एक बड़ा हिस्सा (सांसद) ऐसी कंसल्टेंसी से जुड़े हैं। 

सांसदों को किसी बाह्य रोज़गार से न रोका जाए तथा यदि सभी सांसद पूर्णकालिक पेशेवर राजनेता हों तो हाउस ऑफ कॉमन्स कम प्रभावी होगा। यदि सांसद ग्राहकों की ओर से पैरवी करने वाली कंपनियों को अपनी सेवाएँ बेचते हैं तो इससे संसद के अधिकार कम होंगे। इस पर प्रतिबंध होना चाहिये।

संसदीय कंसल्टेंसीज़ और कुछ सांसदों के अधिकार में एक से अधिक संसदीय कंसल्टेंसीज़ होना चिंता का कारण है। कंसल्टेंसीज़ के साथ संबद्ध सांसद संसद में उनके वित्तीय हितों के लिये अपने कार्यों को प्रभावित न होने दें, यह सुनिश्चित करना असंभव है। 

सांसदों के हितों से जुड़े दिशा-निर्देशों ने सांसदों के बीच भ्रम उत्पन्न कर दिया कि कौन सा आचरण स्वीकार्य है। इस क्षेत्र में लंबे समय से स्थापित संसदीय कानून की पुनःपुष्टि की जानी चाहिये।

कंसल्टेंसी समझौतों और भुगतानों तथा ट्रेड यूनियन के प्रत्याभूति अनुबंध और भुगतानों का पूर्ण प्रकटीकरण तत्काल किया जाना चाहिये। अगले वर्ष संसद को अधिक प्रतिबंधों के व्यापक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए सांसदों को कंसल्टेंसी से जुड़ने की अनुमति की समीक्षा करनी चाहिये। 

सांसदों के लिये आचार संहिता तैयार की जाए। एक मसौदा निर्धारित करना चाहिये। संसदीय कार्यकाल की शुरुआत में आचार संहिता का पुनः वर्णन किया जाना चाहिये। सांसदों के लिये दिशा-निर्देशों के साथ ही प्रस्तावना सत्र भी उपलब्ध होने चाहिये।

जनता को जानने की ज़रूरत है कि सांसदों के वित्तीय हितों को नियंत्रित करने वाले आचरण के नियम दृढ़ता और न्यायोचित ढंग से लागू किये जा रहे हैं।

मंत्री और सिविल सेवक:

मंत्रियों और सिविल सेवकों से बहुत उच्च मानदंड वाले आचरण की अपेक्षा की जाती है।

हाल ही में सिविल सेवकों के लिये आचार संहिता की घोषणा की गई। मंत्रियों के लिये मौजूदा  दिशा-निर्देश उत्तम हैं परंतु इन्हें स्पष्ट श्रेणी में एक साथ उल्लेख करने की आवश्यकता है।

लोकहित हेतु आवश्यक है कि मंत्रियों के दुर्व्यवहार के आरोपों की जाँच तुरंत की जाए। सामान्यतः यह प्रधानमंत्री से संबंधित मामला है तथा प्रत्येक मामले में किसकी जाँच होनी चाहिये और क्या रिपोर्ट प्रकाशित की जाएगी, यह हर मामले में अलग-अलग होगा परंतु ऐसे मामलों में सिविल सेवको को पार्टी की बहस में शामिल न किया जाए साथ ही उनकी सलाह गोपनीय रखनी चाहिये।

ऐसे मंत्रियों को लेकर सजग रहने की आवश्यकता है जो कार्यालय छोड़ने के ठीक बाद उन कंपनियों में पद ग्रहण करते हैं जिनके साथ उनके आधिकारिक और संसदीय कार्य होते थे। कार्यालय छोड़ने के दो साल बाद वरिष्ठ सिविल सेवकों को निजी कंपनियों में शामिल होने से पहले एक स्वतंत्र सलाहकार समिति से मंजू़री लेनी होती है। लोकहित की रक्षा हेतु मंत्रियों और विशेष सलाहकारों पर एक ऐसी ही समान मंजू़री प्रणाली की आवश्यकता है।

सार्वजनिक समीक्षा हेतु मंत्रियों और सिविल सेवकों के लिये इस प्रणाली को वर्तमान की तुलना में अत्यंत खुला बनाया जाना चाहिये।

सिविल सेवकों की नई स्वतंत्र अपील प्रणाली का स्वागत तो है, परंतु सिविल सेवको की योग्यता के बारे में गोपनीय जाँच-पड़ताल के लिये विभागों के भीतर बेहतर प्रबंध करने की आवश्यकता है।

सभी सिविल सेवक लोकहित हेतु आवश्यक आचरण के मानक से अवगत हों तथा इसे सुनिश्चित करने हेतु और अत्यधिक प्रयास करने होंगे।

अर्द्ध-स्वायत्त गैर-सरकारी:

सरकार सर्वाजनिक रूप से योग्यता के आधार पर सभी नियुक्तियाँ कराने के लिये प्रतिबद्ध है परंतु 

अर्द्ध-स्वायत्त गैर-सरकारी बोर्ड में नियुक्तियों के बारे में सार्वजनिक रूप से व्यापक मत है कि ये नियुक्तियाँ हमेशा योग्यता के आधार पर नहीं होती हैं।

विशिष्ट पदों पर नियुक्ति हमेशा योग्यता के आधार पर होनी चाहिये तथा यह महत्त्वपूर्ण है कि बोर्ड की समग्र संरचना प्रासंगिक कौशल का उपयुक्त मिश्रण हो और यह उचित पृष्ठभूमि का प्रतिनिधित्व करे। यह कार्यक्षेत्र के विनिर्देशों में स्पष्ट और सार्वजनिक रूप से निर्धारित होना चाहिये।

मंत्रियों को बोर्ड की नियुक्तियाँ करते रहना चाहिये परंतु सार्वजनिक नियुक्ति प्रक्रिया को नियमित करने, उसकी निगरानी करने और रिपोर्ट देने हेतु एक ‘स्वतंत्र लोक आयुक्त की नियुक्ति’ की जानी चाहिये।

उम्मीदवारों का औपचारिक और निष्पक्ष मूल्यांकन आवश्यक है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (NHS) में शामिल किया जा रहा सलाहकार पैनल सार्वभौमिक होने के साथ-ही-साथ मूलतः स्वतंत्र होना चाहिये। मंत्री नियुक्ति के लिये जिन सभी उम्मीदवारों पर विचार करते हैं उनको एक सलाहकार पैनल द्वारा उपयुक्त रूप से अनुमोदित किया जाना चाहिये।

सभी  गैर-विभागीय सार्वजनिक निकायों (NDPB) और NHS निकायों के पास आचार संहिता होनी चाहिये।

आचार संहिता के ये नियम सार्वजनिक निकायों के सभी कर्मचारी तथा बोर्ड सदस्यों पर लागू होंगे।

स्थानीय प्राधिकरण, NHS निकायों और NDPB निकायों में आचरण का मानक निर्धारित करने वाले वैधानिक ढाँचे में अंतर है। सरकार को इस क्षेत्र की समीक्षा करनी होगी तथा इस पर विचार करना होगा कि क्या इसमें अधिक निरंतरता हासिल की जा सकती है?

आंतरिक एवं बाह्य दोनों तरह से शिष्टता की सुरक्षा हेतु और भी कदम उठाने होंगे। आंतरिक रूप से शिष्टता तथा वित्तीय मामलों हेतु लेखा अधिकारी की ज़िम्मेदारी पर ज़ोर दिया जाना चाहिये। शिष्टता के विषय में कर्मचारी की जाँच करने हेतु बेहतर गोपनीय माध्यमों की आवश्यकता होती है।

बाह्य रूप से शिष्टता संबंधी मामलों में लेखापरीक्षक की भूमिका पर ज़ोर दिया जाना चाहिये। सभी निकायों पर सर्वोत्तम अभ्यास लागू हो यह सुनिश्चित करने हेतु लेखापरीक्षा की भूमिका की समीक्षा की जानी चाहिये।

सिफारिशे:

A. ऐसी सिफारिशें जिनको कम-से-कम समय में लागू किया जा सकता है;
B. वे सिफारिशें, जो हमारे विचार में कार्यान्वित की जा सकती हैं या जिन पर हम इस वर्ष के अंत तक कार्यान्वयन की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति की आशा कर सकते हैं ;
C. ऐसी सिफारिशें जिनको हम मान्यता देते हैं उन्हें लागू करने में अधिक समय लग सकता है परंतु उन सिफारिशों की प्रगति की जाँच अगले वर्ष की जाएगी

सांसद:

1. सांसदों  को संसदीय भूमिका से असंबंधित रोज़गार से जुड़ने की स्वतंत्रता होनी चाहिये। [A]

2. हाउस आफ काॅमन्स को वर्ष 1947 के उस प्रस्ताव को फिर से घोषित करना चाहिये जो सदस्यों के ऐसे अनुबंधों या समझौतों में शामिल होने पर पूर्णतः रोक लगाने का प्रावधान करता है जिसमें किसी भी प्रकार से इच्छानुसार कार्य करने और बोलने की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध हो या जिनमें लिये गए बाहरी निकायों के प्रतिनिधि के रूप में संसद में कार्य करना अपेक्षित हो। [A]

3. सदन को सांसदों के किसी भी रूप में उनकी भूमिका संबंधी अनुबंघों से रोकना चाहिये जैसे-सांसदों को सेवाएँ देने हेतु संसदीय सेवाएँ प्रदान करने वाले उन संगठनों से या ऐसी संसदीय सेवाएँ प्रदान करने वाली फर्मों या बड़ी फर्मों के साथ कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध बनाए रखने से।

4. सदन को बिना विलंब किये एवं वित्तीय और राजनीतिक परिवर्तन के निहितार्थ को ध्यान में रखते हुए कंसल्टेंसीज़ की योग्यता पर शीघ्रता से विचार-विमर्श करना चाहिये।

5. सदन को निम्नलिखित कार्य करने चाहिये:

  • सदन को संसदीय सेवाओं से संबंधित समझौतों और पारिश्रमिक को प्रकट करना, हित संघर्ष से बचने हेतु मार्गदर्शन का विस्तार करना;
  • सदस्यों के लिये नई आचार संहिता लागू करना;
  • मानकों के लिये एक संसदीय आयुक्त की नियुक्ति;
  • इस क्षेत्र में सदस्यों के बारे में शिकायत की जाँच करने और निर्णय लेने हेतु एक नई प्रक्रिया स्थापित करना। 

6. हित प्रकटीकरण पर सिफारिशे :

रजिस्टर व्यापक तौर पर वर्तमान रूप में जारी रहना चाहिये और इसका प्रकाशन वार्षिक रूप से किया जाना चाहिये।

हालाँकि विस्तृत प्रविष्टि आवश्यकताओं को प्रकृति और घोषित हितों के दायरे का स्पष्ट विवरण देने हेतु सुधार किया जाना चाहिये;

सदस्यों को हितों का पंजीकरण करने तथा प्रकटीकरण के उनके दायित्वों की बार-बार याद दिलाते रहना चाहिये।

7. सदस्यों को उनके स्वयं के हित में सलाह दी जानी चाहिये कि रोज़गार संबंधी ऐसे सभी समझौतों को प्रस्तुत करने की अवश्यकता है जिनमें शर्तें शामिल हों ताकि यह स्पष्ट हो सके कि इन रोज़गारों में संसद से संबंधित कोई भी गतिविधि शामिल नहीं है।

8. हितों के टकराव को रोकने हेतु नियम और दिशा-निर्देश का विस्तार संसद के समस्त कार्यों तक होना चाहिये जिसमें स्थायी समितियों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये। 

9. सदन को ऐसी आचार संहिता तैयार करनी चाहिये जिसमें सदस्यों के आचरण के लिये मार्गदर्शन देने वाले व्यापक सिद्धांत निर्धारित हों तथा प्रत्येक नए सदन में इनका पुनः वर्णन होना चाहिये।

10. सरकार को अब रिश्वतखोरी या किसी सांसद द्वारा रिश्वत की प्राप्ति से संबंधित कानून को स्पष्ट करने के लिये कदम उठाने चाहिये।

11. प्रक्रिया पर सिफारिशें:

सदन को स्वतंत्र पद पर मानकों के लिये संसदीय आयुक्त की नियुक्ति करनी चाहिये, जिसका कार्यकाल सीमित होना चाहिये और वह हाउस ऑफ कॉमन्स स्टाफ का स्थायी सदस्य न हो;

आयुक्त के पास निष्कर्षों की खोज एवं निष्कर्षों को सार्वजनिक करने की समान दक्षता होनी चाहिये जैसा कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक तथा प्रशासन के संसदीय आयुक्त को प्राप्त है;

आयुक्त के पास यह निर्णय लेने के लिये स्वतंत्र विवेकाधिकार होना चाहिये कि कोई भी शिकायत जाँच करने योग्य अथवा उसकी जाँच शुरू की जानी चाहिये या नहीं;

कार्यपालिका: मंत्री और सिविल सेवक-

12. मंत्रियों हेतु प्रक्रिया संबंधी प्रश्नों का प्रथम अनुच्छेद (QPM) संशोधित किया जाना चाहिये जिसके अनुसार,  ‘उच्च मानदंडों को बनाए रखने हेतु सर्वोत्तम कार्य कैसे किये जाएँ यह निर्णय प्रत्येक मंत्री को लेना होगा’। प्रधानमंत्री को यह निर्णय करना होगा कि उन्होंने किसी विशेष परिस्थिति में ऐसा किया है या नहीं।’

13. प्रधानमंत्री को QPM के नैतिक सिद्धांतों और नियमों से आरेखित एक दस्तावेज़ तैयार करने का अधिकार देना चाहिये, जिसमें एक स्वतंत्र आचार संहिता या एक नए QPM के अंदर एक अलग अनुभाग शामिल हो। [A/B] 

14. इस बात पर सावधानीपूर्वक विचार किया जाना चाहिये कि अनुचित व्यवहार करने वाले कथित मंत्रियों के मामलों की जाँच के लिये सबसे उपयुक्त साधनों का उपयोग किया गया है। [A]

15. सिविल सेवा नियुक्ति नियमों के समान एक प्रणाली मंत्रियों पर लागू होनी चाहिये। इस प्रणाली को एक सलाहकारी आधार पर संचालित किया जाना चाहिये और व्यावसायिक नियुक्तियों पर इसे मौजूदा सलाहकार समिति द्वारा प्रशासित किया जाना चाहिये। [A] 

16. स्थायी सचिवों के लिये सिविल सेवा व्यवस्था के समानांतर, पूर्व कैबिनेट मंत्रियों के लिये तीन महीने की स्वचालित प्रतीक्षा अवधि लागू होनी चाहिये, हालाँकि यह प्रावधान अन्य मंत्रियों या व्हिप के लिये नहीं होना चाहिये।  [A] 

17. सलाहकार समिति किसी आवेदक (सिविल सेवक या एक पूर्व मंत्री) को सलाह देने में सक्षम होनी चाहिये। यदि उन्हें ऐसा लगता है कि आवेदन उचित नहीं है और उसे अस्वीकृत कर दिया जाता है तो उस सलाह को सार्वजनिक करने में भी सक्षम होना चाहिये। [A] 

18. पूर्व मंत्रियों, जिन्हें सलाहकार समिति की सलाह मिली है, को प्रधानमंत्री से अपील करने का अधिकार होना चाहिये। इस अपील के जायज होने की स्थिति में प्रधानमंत्री प्रतीक्षा अवधि को कम करने या ऐसी किसी भी स्थिति को परिवर्तित करने में सक्षम होंगे। [A] 

19. मंत्रियों की निजी गोपनीयता की रक्षा करते हुए यह व्यवस्था यथासंभव खुली होनी चाहिये। [A]

20. सरकार को नए प्रबंधों के अंतर्गत सलाहकार समिति के कार्यभार की निगरानी करनी चाहिये और वहाँ कर्मचारियों की नियुक्ति हेतु आकस्मिक व्यवस्थाएँ करनी चाहिये, ताकि प्रशासन में किसी प्रकार के परिवर्तन के बाद की स्थिति का सामना किया जा सके।

21. विभागों को आधिकारिक रूप से मंत्रियों द्वारा स्वीकार किये जाने वाले आतिथ्य पत्रों का रख-रखाव करने के साथ-साथ उपहारों के रिकॉर्ड बनाए रखने चाहिये और मांगे जाने की स्थिति में उन्हें उपलब्ध भी कराया जाना चाहिये।

22. राजनीतिक निष्पक्षता को कमज़ोर किये बिना वरिष्ठ सिविल सेवकों के लिये नए कार्य प्रदर्शन आधारित भुगतान की व्यवस्था की जानी चाहिये।

23. सिविल सेवा संहिता के मसौदे में उन परिस्थितियों को शामिल करने हेतु संशोधित किया जाना चाहिये जिसमें सिविल सेवक किसी गलत काम या कुप्रबंधन के बारे में जानता हो जबकि वह व्यक्तिगत रूप से शामिल नहीं है।

24. संहिता के अंतर्गत अपील प्रणाली के संचालन को यथासंभव खुले तौर पर प्रसारित करना चाहिये और आयुक़्तों को संसद में सभी सफल अपीलों की सूचना देनी चाहिये।

25. विभागों और एजेंसियों को गोपनीय रूप से  कर्मचारियों की जाँच करने हेतु एक या अधिक अधिकारियों को नामित करना चाहिये।

26. नई सिविल सेवा संहिता का निर्माण कानून की प्रतीक्षा किये बिना तत्काल किया जाना चाहिये।

27. मंत्रिमंडल को आचरण के मानकों को बनाए रखने के संबंध में सर्वोत्तम आचरण का सर्वेक्षण और प्रसार करना जारी रखना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आचरण के बुनियादी सिद्धांतों का समुचित पालन किया जा रहा है।

28. विभागों में नियमित सर्वेक्षण होने चाहिये तथा कर्मचारियों में नैतिक मानकों का ज्ञान एवं बोध होना चाहिये। विशेष रूप से अतिरिक्त प्रशिक्षण के माध्यम से मार्गदर्शन को प्रबलित और प्रसारित किया जाना चाहिये।

29. नियुक्ति संबंधी किसी निर्णय की स्थिति में व्यावसायिक नियुक्तियों पर सलाहकार समिति उस मामले में निर्णय की वजहें बताती है।

30. सिविल सेवा व्यवसाय नियुक्ति नियमों के संचालन, पालन और उद्देश्यों की समीक्षा की जानी चाहिये।

31. विशेष सलाहकारों को व्यवसाय नियुक्ति नियमों के अधीन किया जाना चाहिये।

32. सभी विभागों और एजेंसियों में स्वीकृत आतिथ्य के निमंत्रण और प्रस्तावों का एक केंद्रीय या स्थानीय रिकॉर्ड रखा जाना चाहिये। उन परिस्थितियों को विनिर्दिष्ट करने वाले नियम स्पष्ट होने चाहिये जिनमें प्रबंधन से कर्मचारियों को निमंत्रण और आतिथ्य के प्रस्तावों को स्वीकार करने संबंधी सलाह लेने की आवश्यकता हो।

अर्द्ध-स्वायत्त गैर-सरकारी  

(कार्यकारी गैर-विभागीय सार्वजनिक निकाय और राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा निकाय)

नियुक्तियाँ 

33. नियुक्तियों की ज़िम्मेदारी पूर्णतः मंत्रियों की होनी चाहिये।

34. सभी सार्वजनिक नियुक्तियाँ योग्यता के अधिभावी सिद्धांत के अधीन होनी चाहिये।

35. योग्यता के आधार पर चयन में उन बोर्डों की आवश्यकताओं पर ध्यान देना चाहिये जिनमें कौशल और पृष्ठभूमि का संतुलन हो। सदस्यों की नियुक्ति का आधार और उनसे किस तरह की अपेक्षा की जाती है तथा  उनकी भूमिका भी स्पष्ट होनी चाहिये। जिन कौशल और पृष्ठभूमि की मांग की जाती है, उन्हें स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट किया जाना चाहिये।

36. कार्यकारी NDPBs या NHS निकायों की सभी नियुक्तियों को एक पैनल या समिति की सलाह के बाद किया जाना चाहिये, जिसमें एक स्वतंत्र सदस्य शामिल हो।

37. सार्वजनिक नियुक्ति हेतु एक नए स्वतंत्र आयुक्त की नियुक्ति की जानी चाहिये जो सिविल सेवा आयुक्तों में से एक हो सकता है।

38. लोक आयुक्त को विभागीय नियुक्ति प्रक्रिया की निगरानी, विनियमन और अनुमोदन करना चाहिये।

39. लोक आयुक्त को सार्वजनिक नियुक्ति प्रणाली के संचालन पर वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करनी चाहिये।

40. सार्वजनिक नियुक्ति इकाई को कैबिनेट के नियंत्रण से बाहर कर उसे लोक आयुक्त के नियंत्रण में रखा जाना चाहिये।

41. राज्य के सभी सचिवों को उनके विभागों द्वारा की गई सार्वजनिक नियुक्तियों पर वार्षिक रिपोर्ट देनी  चाहिये।

42. उम्मीदवारों (नियुक्ति हेतु) द्वारा पिछले पाँच वर्षों में किये गए किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधियों (पद-धारण, लोगों के बीच भाषण/संबोधन और चुनाव में उम्मीदवारी) की घोषणा की जानी चाहिये।

43. लोक आयुक्त को सार्वजनिक नियुक्ति प्रक्रियाओं हेतु एक आचार संहिता तैयार करनी चाहिये। समानता के आधार पर संहिता से विचलन के कारणों को प्रलेखित और उसकी समीक्षा करने में सक्षम होना चाहिये।

शिष्टता:

44. सरकार द्वारा कार्यकारी NDPBs, NHS निकायों और स्थानीय सरकार सहित सार्वजनिक निकायों में शिष्टता और जवाबदेही से संबंधित सुसंगत कानूनी ढाँचे का निर्माण करने की दृष्टि से समीक्षा की जानी चाहिये।

45. प्रत्येक कार्यकारी NDPB और NHS निकायों के बोर्ड के सदस्यों के लिये आचार संहिता को अपनाना अनिवार्य किया जाना चाहिये।

46. प्रत्येक NDPB और NHS निकाय के बोर्ड हेतु यह अनिवार्य होना चाहिये कि वे अपने कर्मचारियों के लिये आचार संहिता लागू करें।

47. प्रायोजित विभागों को NDPB और NHS निकायों के बोर्ड के सदस्यों के लिये स्पष्ट अनुशासनात्मक प्रक्रियाओं को विकसित करना चाहिये ताकि आचार संहिता का पालन करने में विफल रहने पर उचित दंड दिया जा सके।

48. शिष्टता के सभी पहलुओं हेतु औपचारिक जवाबदेही पर जोर देने के लिये NDPB और NHS लेखा अधिकारियों की भूमिका को पुनःपरिभाषित किया जाना चाहिये।

49. लेखापरीक्षा आयोग को अपने विवेक से NHS निकायों पर लोकहित में रिपोर्ट प्रकाशित करने हेतु अधिकृत किया जाना चाहिये।

50. ट्रेज़री को सबके लिये सर्वोत्तम कार्यप्रणाली का उपयोग करने की दृष्टि से लोक निकायों की बाह्य लेखापरीक्षा की व्यवस्था की समीक्षा करनी चाहिये।

51. NDPB और NHS निकाय के प्रत्येक कार्यकारी को इन निकायों में एक अधिकारी या बोर्ड सदस्य नामित करना चाहिये जिसका दायित्व गोपनीय रूप से कर्मचारियों की जाँच करना हो। कर्मचारी प्रबंधन में प्रवेश किये बिना शिकायत करने में सक्षम होने चाहियें और उनकी गुमनामी की गारंटी भी दी जानी चाहिये। यदि वे असंतुष्ट रहते हैं, तो कर्मचारियों के पास प्रायोजक विभाग के साथ शिष्टता संबंधी  चिंताओं को उठाने हेतु एक स्पष्ट मार्ग उपलब्ध होना चाहिये। 

52. NDPB को उनके प्रायोजित विभागों द्वारा समर्थित, स्वयं प्राकट्य संहिता को विकसित करने, सरकारी संहिता का निर्माण करने तथा इस रिपोर्ट में सुझाए गए बिंदुओं पर सर्वोतम कार्य-प्रणाली विकसित करनी चाहिये, साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिये कि जनता अपने संहिता के प्रावधानों से अवगत हो।

प्रायोजित विभागों को कार्यकारी निकायों को सर्वोत्तम कार्य-प्रणाली का अनुसरण करने तथा समान निकायों के बीच समानता बनाए रखने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिये ताकि वे सभी मानकों को उच्च स्तर तक  लाने हेतु कार्य कर सकें।

कैबिनेट कार्यालय को NDPB और NHS निकायों में सर्वोत्तम कार्य-प्रणाली में प्राकट्य हेतु समय-समय पर दिशा-निर्देश और उन्हें अद्यतन करना चाहिये।

53. नए बोर्ड सदस्यों की नियुक्ति पर प्रेरण प्रशिक्षण देना चाहिये जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के मूल्यों के बारे में जागरूकता तथा सत्यनिष्ठा और जवाबदेही के मानक शामिल हों।

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