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हरियाणा में पराली जलाने का संकट

  • 15 Oct 2024
  • 3 min read

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में एक रिपोर्ट में बताया गया है कि हरियाणा में पराली जलाने के 84% मामले सिर्फ सात ज़िलों में केंद्रित हैं, जिससे वायु प्रदूषण और पर्यावरण संबंधी चिंताएँ बढ़ रही हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • पराली जलाना:
    • हरियाणा में पराली जलाने की 84 प्रतिशत घटनाएँ सात ज़िलों से आती हैं।
    • सर्वाधिक योगदानकर्त्ता फतेहाबाद, कैथल, करनाल, जींद, कुरूक्षेत्र, अंबाला और यमुनानगर हैं।
    • चालू सीज़न में दर्ज कुल 1,595 खेतों में आग लगने की घटनाओं में से 1,343 घटनाएँ इन सात ज़िलों में हुई हैं।
  • पर्यावरणीय प्रभाव:
    • हरियाणा और दिल्ली-NCR क्षेत्र में वायु प्रदूषण में पराली जलाने का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
    • इन आग से निकलने वाला धुआँ स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को बढ़ा देता है तथा सर्दियों के महीनों के दौरान पहले से ही खराब हो रही वायु गुणवत्ता को और खराब कर देता है।
  • सरकारी प्रयास:
    • हरियाणा सरकार ने पराली जलाने को हतोत्साहित करने के लिये विभिन्न पहल की हैं, जिनमें फसल अवशेष प्रबंधन उपकरण जैसे विकल्पों को बढ़ावा देना भी शामिल है।
    • किसानों को फसल अवशेष के निपटान के लिये पर्यावरण अनुकूल तरीके अपनाने हेतु प्रेरित करने हेतु जुर्माना और प्रोत्साहन लागू किये गए हैं।
  • किसानों के समक्ष चुनौतियाँ:
    • वैकल्पिक तरीकों की उच्च लागत और मशीनरी की सीमित उपलब्धता के कारण कई किसान पराली जलाना जारी रखते हैं।
    • कटाई और अगली फसल की बुवाई के बीच का छोटा समय किसानों पर दबाव डालता है, जिससे वे त्वरित समाधान, अर्थात पराली जलाने का विकल्प चुनते हैं।
  • नीति और प्रवर्तन:
    • उल्लंघनकर्त्ताओं के लिये दंड का प्रावधान होने के बावजूद, पराली विरोधी कानूनों का प्रवर्तन एक चुनौती बना हुआ है।
    • सरकार ने हैप्पी सीडर मशीनों के उपयोग को प्रोत्साहित किया है, लेकिन उनका उपयोग धीमी गति से हो रहा है।


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