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हरियाणा

हरियाणा दलित उप-कोटा पारित करने वाला पहला राज्य बना

  • 24 Oct 2024
  • 6 min read

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में हरियाणा अनुसूचित जाति (SC) आरक्षण के भीतर उप-कोटा को मंजूरी देने वाला भारत का पहला राज्य बन गया , जो सकारात्मक कार्यवाही नीतियों में एक महत्त्वपूर्ण विकास है। 

प्रमुख बिंदु 

  • दलित उपकोटा अनुमोदन: हरियाणा सरकार ने 20% अनुसूचित जाति आरक्षण को दो भागों में विभाजित करने को मंजूरी दी: 50% "वंचित" अनुसूचित जाति के लिये और 50% अन्य अनुसूचित जाति के लिये।
    • हरियाणा सरकार ने वर्ष 2020 में हरियाणा अनुसूचित जाति (शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम पारित किया था , जिसके तहत राज्य के उच्च शिक्षा संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये आरक्षित 20% सीटों में से 50% सीटें एक नई श्रेणी, वंचित अनुसूचित जातियों के लिये आरक्षित की गई थीं।
    • इस कदम का लक्ष्य समूह के भीतर आर्थिक असमानताओं को पहचानते हुए अनुसूचित जाति के बीच लाभों का समान वितरण सुनिश्चित करना है।
    • “वंचित” जातियों की पहचान करने के लिये न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एच.एस. भल्ला की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया गया था।
  • हरियाणा में अनुसूचित जातियों की जनसंख्या काफी अधिक है (20% से अधिक), आंतरिक असमानता लंबे समय से एक मुद्दा रहा है।
  • कानूनी और संवैधानिक आधार: राज्य सरकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 पर निर्भर करती है, जो अनुसूचित जातियों के वर्गीकरण की अनुमति देता है।
  • अनुच्छेद 341(1) और 342(1) के अनुसार, भारत के राष्ट्रपति, राज्यपाल के परामर्श के बाद, जातियों, मूलवंशों, जनजातियों अथवा जातियों या मूलवंशों के भीतर समूहों के हिस्सों को निर्दिष्ट कर सकते हैं, जिन्हें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति माना जाएगा।
  • आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में भी अनुसूचित जाति के लिये उप-कोटा लागू करने के ऐसे ही प्रयास किये गए हैं, लेकिन हरियाणा का कदम औपचारिक रूप से मंजूरी पाने वाला पहला कदम है।

SC और ST के उप-वर्गीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

  • उप-वर्गीकरण की अनुमति: न्यायालय ने निर्णय दिया कि राज्यों को संवैधानिक रूप से पिछड़ेपन के विभिन्न स्तरों के आधार पर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को उप-वर्गीकृत करने की अनुमति है। 
    • सात न्यायाधीशों की पीठ ने निर्णय सुनाया कि राज्य अब सबसे वंचित समूहों को बेहतर सहायता प्रदान करने के लिये 15% आरक्षण कोटे के भीतर अनुसूचित जातियों को उप-वर्गीकृत कर सकते हैं।
    • भारत के मुख्य न्यायाधीश ने "उप-वर्गीकरण" और "उप-श्रेणीकरण" के बीच अंतर पर ज़ोर दिया, तथा इन वर्गीकरणों का उपयोग वास्तविक उत्थान के बजाय राजनीतिक तुष्टिकरण के लिये करने के प्रति आगाह किया। 
      • न्यायालय ने कहा कि उप-वर्गीकरण मनमाने या राजनीतिक कारणों के बजाय अनुभवजन्य आँकड़ों और प्रणालीगत भेदभाव के ऐतिहासिक साक्ष्य पर आधारित होना चाहिये।
    • निष्पक्षता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिये राज्यों को अपने उप-वर्गीकरण को अनुभवजन्य साक्ष्य पर आधारित करना चाहिये।
    • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किसी भी उप-वर्ग के लिये 100% आरक्षण स्वीकार्य नहीं है। उप-वर्गीकरण पर राज्य के निर्णय राजनीतिक दुरुपयोग को रोकने के लिये न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि 'क्रीमी लेयर' सिद्धांत, जो पहले केवल अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) पर लागू होता था (जैसा कि इंद्रा साहनी वाद में परिलक्षित हुआ था ), अब SC और ST पर भी लागू होना चाहिये। 
      • इसका मतलब है कि राज्यों को SC और ST के भीतर क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिये और उसे आरक्षण के लाभ से बाहर करना चाहिये। यह निर्णय आरक्षण के लिये अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रतिक्रिया करता है, यह सुनिश्चित करता है कि लाभ उन लोगों तक प्राप्त हो जो वास्तव में वंचित हैं।
    • न्यायालय ने कहा कि आरक्षण केवल पहली पीढ़ी तक ही सीमित होना चाहिये। 
    • यदि परिवार में किसी पीढ़ी ने आरक्षण का लाभ लिया है और उच्च दर्जा प्राप्त किया है, तो आरक्षण का लाभ तार्किक रूप से दूसरी पीढ़ी को उपलब्ध नहीं होगा।
    • निर्णय का औचित्य: न्यायालय ने माना कि प्रणालीगत भेदभाव अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कुछ सदस्यों को आगे बढ़ने से रोकता है, और इसलिये, संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत उप-वर्गीकरण इन असमानताओं को दूर करने में मदद कर सकता है
    • यह दृष्टिकोण राज्यों को इन समूहों के सबसे वंचित लोगों को अधिक प्रभावी ढंग से सहायता प्रदान करने के लिये आरक्षण नीतियों को तैयार करने की अनुमति देता है।


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