राजस्थान
आना सागर झील के निकट वेटलैंड्स को मंजूरी
- 27 May 2025
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चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने अजमेर के निकट दो नए आद्रभूमि विकसित करने के राजस्थान सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसका उद्देश्य आनासागर झील के आसपास सतत् शहरी विकास सुनिश्चित करते हुए पारिस्थितिक संतुलन बहाल करना है।
आना सागर झील
- अजमेर में स्थित यह एक कृत्रिम झील है, जिसका निर्माण पृथ्वीराज चौहान के पिता अरुणोराज या आणाजी चौहान ने बारहवीं शताब्दी के मध्य (1135-1150 ईस्वी) करवाया था।
- आणाजी द्वारा निर्मित कराए जाने के कारण ही इस झील का नाम आणा सागर या आना सागर पड़ा।
- आना सागर झील का विस्तार लगभग 13 किमी. की परिधि में फैला हुआ है।
- बाद में, मुगल शासक जहाँगीर ने झील के प्रांगण में दौलत बाग का निर्माण कराया,जिसे सुभाष उद्यान के नाम से भी जाना जाता है।
- शाहजहाँ ने 1637 ईस्वी में इसके आसपास संगमरमर की बारादरी (पवेलियन) का निर्माण कराया, जो झील की सुंदरता को और बढ़ाता है।
मुख्य बिंदु
- पृष्ठभूमि:
- आना सागर झील, जो अजमेर की एक महत्त्वपूर्ण शहरी जल निकाय है, अनियंत्रित विकास और इसके आसपास की मानव गतिविधियों के कारण पर्यावरणीय क्षरण का सामना कर रही है।
- इससे पहले राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने झील की हरित परिधि में बने कई अवैध निर्माणों, जिनमें सेवन वंडर्स की प्रतिकृति भी शामिल है, को हटाने का निर्देश दिया था, ताकि झील की पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा की जा सके।
- प्रस्तावित आर्द्रभूमि के स्थान:
- आना सागर के जलग्रहण क्षेत्र के बाहर दो आर्द्रभूमि का निर्माण किया जाएगा: हाथी-खेड़ा के पास फॉय सागर (वरुण सागर) एक्सटेंशन में 12 हेक्टेयर आर्द्रभूमि और तबीजी-1 में 10 हेक्टेयर आर्द्रभूमि।
- इन आर्द्रभूमियों का उद्देश्य क्षेत्र में जल संरक्षण क्षमता, जैवविविधता और पर्यावरणीय स्वास्थ्य में सुधार करना है।
- वैज्ञानिक समीक्षा और पर्यावरण मूल्यांकन:
- अजमेर नगर निगम द्वारा नियुक्त राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने एक व्यापक पर्यावरणीय मूल्यांकन किया।
- नीरी, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के अंतर्गत एक प्रमुख अनुसंधान संस्थान है, जो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन कार्य करती है।
- यह अनुसंधान एवं विकास, नीति विकास और प्रौद्योगिकी नवाचार के माध्यम से पर्यावरण प्रबंधन, प्रदूषण नियंत्रण और सतत् विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- अजमेर नगर निगम द्वारा नियुक्त राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने एक व्यापक पर्यावरणीय मूल्यांकन किया।
आर्द्रभूमि
- आर्द्रभूमि को दलदल, दलदली भूमि, पीटलैंड या जल (प्राकृतिक या कृत्रिम) के क्षेत्रों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें पानी स्थिर या बहता रहता है, जिसमें छह मीटर से अधिक गहराई वाले समुद्री क्षेत्र भी शामिल हैं।
- आर्द्रभूमियाँ इकोटोन होती हैं, जिनमें स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच संक्रमणकालीन भूमि होती है।
- आर्द्रभूमि का महत्त्व:
- प्राकृतिक जल शुद्धिकर्ता: आर्द्रभूमियाँ (wetlands) प्राकृतिक जल फिल्टर के रूप में कार्य करती हैं, जो गाद को रोकती हैं, प्रदूषकों को विघटित करती हैं और अतिरिक्त पोषक तत्त्वों को अवशोषित करती हैं।
- बाढ़ नियंत्रण: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अनुसार आर्द्रभूमियाँ अतिरिक्त जल को अवशोषित और संगृहीत करती हैं, जिससे बाढ़ के जोखिम में लगभग 60% तक कमी आती है और घरों व बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा होती है।
- वन्यजीवों का आवास: स्पेस एप्लीकेशंस सेंटर (SAC) के अनुसार आर्द्रभूमियाँ पृथ्वी की सतह का केवल 6% हिस्सा घेरती हैं, फिर भी ये वैश्विक स्तर पर 40% से अधिक प्रजातियों, जिनमें सरस क्रेन जैसी संकटग्रस्त प्रजातियाँ भी शामिल हैं, को संरक्षण प्रदान करती हैं।
- कार्बन अवशोषण (Carbon Sequestration): आर्द्रभूमियों की मिट्टी और वनस्पति में महत्त्वपूर्ण मात्रा में कार्बन संगृहीत होता है। भारतीय जलवायु परिवर्तन मूल्यांकन नेटवर्क (INCCA) के अनुसार, आर्द्रभूमियों का पुनरुद्धार भारत के जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है, जो कार्बन अवशोषण, स्वच्छ जल और बाढ़ जोखिम में कमी को संभव बनाता है।
संरक्षित क्षेत्र |
आर्द्रभूमि |
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शेरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य |
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