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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 16 जून, 2022

  • 16 Jun 2022
  • 6 min read

डिस्प्ले फैब्रिकेशन यूनिट

हाल ही में तेलंगाना सरकार ने हैदराबाद में भारत की पहली डिस्प्ले फैब्रिकेशन यूनिट (Display Fabrication Unit) स्थापित करने हेतु बेंगलुरु बेस्ड Elest के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये है। यह डिस्प्ले फैब्रिकेशन यूनिट 24,000 करोड़ रुपए के निवेश से स्थापित की जाएगी जिसे इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन प्रोग्राम (India Semiconductor Mission Programme) के तहत स्थापित किया जाएगा। तेलंगाना में डिस्प्ले फैब स्थापित करने से भारत अमेरिका, चीन और जापान जैसे देशों के साथ वैश्विक मानचित्र पर आ जाएगा। सरकार को विश्वास है कि तेलंगाना में एक डिस्प्ले फैब होने से राज्य में इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी पारिस्थितिकी तंत्र और इसकी सहायक कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा। जब से भारत सेमीकंडक्टर मिशन की घोषणा की गई है, तब से तेलंगाना सरकार राज्य में फैब्रिकेशन यूनिट स्थापित करने के लिये मिशन मोड पर कार्य कर रही है।

मंकीपॉक्स

मंकीपॉक्स वायरस अब तक 29 देशों में फैल चुका है। इसके साथ ही 1000 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वायरस के बढ़ते खतरे को देखते हुए चेतावनी जारी की है। यह एक वायरल ज़ूनोटिक रोग (Zoonotic Disease- जानवरों से मनुष्यों में संचरण होने वाला रोग) है और बंदरों में चेचक के समान बीमारी के रूप में पहचाना जाता है, इसलिये इसे मंकीपॉक्स नाम दिया गया है। यह नाइजीरिया की स्थानिक बीमारी है। मंकीपॉक्स वायरस के स्रोत के रूप में पहचाने जाने वाले जानवरों में बंदर और वानर, विभिन्न प्रकार के कृतंक (चूहों, गिलहरियों तथा प्रैरी कुत्तों सहित) एवं खरगोश शामिल हैं। यह रोग मंकीपॉक्स वायरस के कारण होता है, जो पॉक्सविरिडे फैमिली (Poxviridae Family) में ऑर्थोपॉक्सवायरस जीनस (Orthopoxvirus Genus) का सदस्य है। मंकीपॉक्स का संक्रमण पहली बार वर्ष 1958 में अनुसंधान के लिये रखे गए बंदरों के समूहों में चेचक जैसी बीमारी के दो प्रकोपों के बाद खोजा गया जिसे 'मंकीपॉक्स' नाम दिया गया। पहला मानव संचरण का मामला वर्ष 1970 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) में चेचक को खत्म करने के तीव्र प्रयास के दौरान दर्ज किया गया था। मंकीपॉक्स के लिये रोगोद्भवन अवधि (संक्रमण से लक्षणों तक का समय) आमतौर पर 7-14 दिनों की होती है लेकिन यह अवधि 5-21 दिनों तक भी हो सकती है।

अंतर्राष्ट्रीय पारिवारिक प्रेषण दिवस

संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा प्रतिवर्ष 16 जून को अंतर्राष्ट्रीय पारिवारिक प्रेषण दिवस (IDFR) का आयोजन किया जाता है। इस दिवस के आयोजन की घोषणा वर्ष 2015 में की गई थी। ‘अंतर्राष्ट्रीय पारिवारिक प्रेषण दिवस’ उन दो सौ मिलियन प्रवासी श्रमिकों को मान्यता प्रदान करता है, जो अपने प्रियजनों को धन हस्तांतरित करते हैं। प्रेषित धन वह धन है जो किसी अन्य पार्टी (सामान्यत: एक देश से दूसरे देश में) को भेजा जाता है। प्रेषक आमतौर पर एक अप्रवासी होता है और प्राप्तकर्त्ता एक समुदाय/परिवार से संबंधित होता है। दूसरे शब्दों में रेमिटेंस या प्रेषण से आशय प्रवासी कामगारों द्वारा धन अथवा वस्तु के रूप में अपने मूल समुदाय/परिवार को भेजी जाने वाली आय से है। ज्ञात हो कि विश्व में प्रेषित धन या रेमिटेंस का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता भारत है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, ‘प्रेषण’ प्रवासी श्रमिकों को उनके परिवारों से आर्थिक रूप से जोड़ता है। यह दिवस इस तथ्य को रेखांकित करता है कि ‘प्रेषण’ दुनिया भर में परिवारों की कई बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करता है।

एनोकोवैक्स

हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री ने जानवरों के लिये देश में कोरोना की पहली स्वदेशी वैक्सीन एनोकोवैक्स लॉन्च की। इसे हरियाणा स्थित आइसीएआर-नेशनल रिसर्च सेंटर आन इक्विंस द्वारा विकसित किया गया है। एनोकोवैक्स जानवरों के लिये एक निष्क्रिय सार्स-कोव-2 डेल्टा (कोरोना) वैक्सीन है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार यह वैक्सीन कोरोना के डेल्टा और ओमिक्रोन वेरिएंट से बचाती है। यह श्वानों, शेरों, तेंदुओं, चूहों और खरगोशों के लिये सुरक्षित है। इसके साथ ही कुत्ते में सार्स-कोव-2 के खिलाफ एंटीबाडी का पता लगाने के लिये कैन-कोव-2 एलिसा किट भी लॉन्च की। यह विशिष्ट न्यूक्लियोकैप्सिड प्रोटीन आधारित अप्रत्यक्ष एलिसा किट है। यह किट भारत में बनाई गई है।

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