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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 02 दिसंबर, 2021

  • 02 Dec 2021
  • 8 min read

चेरी ब्लॉसम फेस्टिवल

मेघालय का प्रसिद्ध ‘चेरी ब्लॉसम फेस्टिवल’ शिलांग में 25 नवंबर से 27 नवंबर, 2021 तक आयोजित किया गया। ‘इंटरनेशनल चेरी ब्लॉसम फेस्टिवल’ प्रतिवर्ष नवंबर माह में शिलांग, मेघालय में आयोजित किया जाता है। इस फेस्टिवल के दौरान लाइव संगीत और अन्य गतिविधियाँ जैसे- पेजेंट, नृत्य प्रतियोगिताएँ, व्यंजन, कला एवं शिल्प आदि के माध्यम से अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले कई स्टाल शामिल होते हैं। जापान जैसे देशों में चेरी ब्लॉसम बसंत में दिखाई देते हैं। चेरी ब्लॉसम जीनस ‘प्रूनस’ वृक्ष का फूल है, जिसे जापानी चेरी ब्लॉसम के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर-पूर्वी भारत मुख्यतः शिलांग में चेरी ब्लॉसम का वैज्ञानिक नाम ‘प्रूनस सेरासोइड्स’ (Prunus Cerasoides) है। इसे ‘जंगली हिमालयी चेरी ब्लॉसम इन ऑटम’ (Wild Himalayan Cherry and Blossoms in Autumn) के नाम से भी जाना जाता है। इसके फल खाने योग्य होते हैं, ब्लॉसम के मौसम में ये पेड़ हल्के गुलाबी और सफेद रंग के फूलों से भर जाते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, चेरी ब्लॉसम के पौधे जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं तथा यह देखा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ब्लॉसम देरी से आते हैं।

'जगन्ना विद्या दीवेना' योजना 

आंध्र प्रदेश सरकार ने हाल ही में 'जगन्ना विद्या दीवेना' शिक्षा सहायता योजना की तीसरी किश्त के रूप में 686 करोड़ रुपए जारी किये हैं। योजना के मुताबिक, यह राशि 11.03 लाख छात्रों की 9.87 लाख माताओं के खातों में जमा की गई है। इस संबंध में घोषणा करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने वर्ष 2019 से ‘विद्या दीवेना योजना’ के माध्यम से 21.48 लाख छात्रों को लाभान्वित किया है और अब तक कुल 6,259 करोड़ रुपए खर्च किये गए हैं। इस योजना के माध्यम से सरकार का लक्ष्य राज्य में 100 प्रतिशत साक्षरता दर के साथ-साथ 100 प्रतिशत स्नातक दर सुनिश्चित करना है। इस योजना को राज्य में गरीब छात्रों के लिये शिक्षा को सुलभ बनाने और उनके परिवारों पर आर्थिक बोझ डाले बिना छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिये शुरू किया गया है। यह एक फीस प्रतिपूर्ति योजना है यानी इसके तहत छात्र शिक्षण संस्थानों को भुगतान करते हैं और इसके बदले सरकार छात्रों को भुगतान करती है। वहीं इस योजना के तहत पूर्ण प्रतिपूर्ति नहीं की जाती है। पूर्ण प्रतिपूर्ति में कॉलेज की फीस, छात्रावास की फीस, मेस की फीस शामिल है। यह योजना केवल कॉलेज फीस की प्रतिपूर्ति करती है।

राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस

भारत में प्रत्येक वर्ष 2 दिसंबर को ‘राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का प्राथमिक उद्देश्य औद्योगिक आपदाओं के प्रबंधन और नियंत्रण को लेकर जागरूकता फैलाना और औद्योगिक अथवा मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को रोकने की दिशा में प्रयासों को बढ़ावा देना है। यह दिवस उन लोगों की याद में मनाया जाता है, जिन्होंने 2-3 दिसंबर, 1984 की रात को भोपाल गैस त्रासदी में अपनी जान गँवा दी थी। दरअसल 2 दिसंबर, 1984 की रात को अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (मौजूदा नाम-डाउ केमिकल्स) के प्लांट से ‘मिथाइल आइसोसाइनाइट’ (Methyl Isocyanate) गैस का रिसाव हुआ था, जिसने भोपाल शहर को एक विशाल गैस चैंबर में परिवर्तित कर दिया था। कम-से-कम 30 टन मिथाइल आइसोसाइनाइट गैस के रिसाव के कारण तकरीबन 15,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई थी और लाखों लोग इस भयावह त्रासदी से प्रभावित हुए थे। यही कारण है कि भोपाल गैस त्रासदी को विश्व में सबसे बड़ी औद्योगिक प्रदूषण आपदाओं में से एक माना जाता है। भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल के मुताबिक, वायु प्रदूषण के कारण प्रत्येक वर्ष विश्व स्तर पर लगभग 7 मिलियन से अधिक लोगों की मृत्यु होती है, जिनमें से तकरीबन 4 मिलियन लोगों की मौत घरेलू वायु प्रदूषण के कारण होती है। 

चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम: उत्तराखंड 

उत्तराखंड सरकार ने हाल ही में ‘चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम’ को वापस लेने की घोषणा की है। इस निर्णय के पश्चात् ‘उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड’ समाप्त हो जाएगा। दिसंबर 2019 में उत्तराखंड सरकार ने राज्य विधानसभा में ‘उत्तराखंड चारधाम तीर्थ प्रबंधन विधेयक’ पेश किया था। जनवरी 2020 में यह अधिनियम बन गया, जिसके तहत ‘उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम बोर्ड’ का गठन किया गया। मुख्यमंत्री इस बोर्ड का अध्यक्ष होता है, जबकि राज्य के धार्मिक मामलों का मंत्री बोर्ड का उपाध्यक्ष होता है। इस बोर्ड के तहत कुल 53 मंदिर शामिल हैं, जिनमें चारधाम मंदिर- बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इन मंदिरों के आसपास स्थित अन्य मंदिर हैं। इस बोर्ड का गठन मंदिरों के प्रबंधन के लिये एक सर्वोच्च शासी निकाय के रूप में किया गया था, जिसे नीतियाँ बनाने, अधिनियम के प्रावधानों को निष्पादित करने, बजट तैयार करने और व्यय को मंज़ूरी देने संबंधी शक्तियाँ प्राप्त थीं। इस बोर्ड को दी गई विभिन्न शक्तियों के कारण इन मदिरों से संलग्न विभिन्न समुदायों द्वारा इस बोर्ड का विरोध किया जा रहा था, जिसके कारण सरकार ने इसे समाप्त करने का निर्णय लिया है।

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