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प्लैटिगोम्फस बेनरिटेरम

  • 04 Jun 2022
  • 4 min read

हाल ही में असम में खोजी गई ड्रैगनफ्लाई 'प्लैटिगोम्फस बेनरिटेरम' की एक नई प्रजाति का नाम पूर्वोत्तर में दो महिलाओं द्वारा किये गए अग्रणी कार्यों के लिये उनके नाम पर रखा गया है। 

  • इसका नाम नॉर्थ ईस्ट नेटवर्क (NEN) की संस्थापक सदस्य मोनिशा बहल और ग्रीन हब की संस्थापक रीता बनर्जी के नाम पर रखा गया है। 

Platygomphus-Benritarum

मुख्य बिंदु : 

  • यह प्रजाति, जो एक एकल नर है, जून 2020 में असम में ब्रह्मपुत्र के तट के पास दो शोधकर्त्ताओं द्वारा खोजी गई थी।  
  • खोजा गया नर अपने चमकदार पंखों और पेट के आधार पर अलग (नया) प्रजाति का प्रतीत होता है। 
  • इसकी नीली आँखें हैं और गहरे भूरे रंग का चेहरा किनारों पर बालों से ढका हुआ है, जो ब्रह्मपुत्र के तट से लगभग 5-6 मीटर की दूरी पर एक बड़े पेड़ पर आराम करते हुए पाया गया था। 
  • इसका निवास स्थान नदी तट के किनारे है जहाँ  घास, विरल पेड़, धान के खेत और दलदली भूमि का प्रभुत्व है, साथ ही कुछ वन पैच और वृक्षारोपण वाले क्षेत्र में भी है। 
  • ड्रैगनफ्लाईज़ और डेम्फ्लाईज़ कीड़ों के क्रम ओडोनाटा से संबंधित हैं। 
    • ऑर्डर ओडोनाटा ("दाँतेदार") में कुछ सबसे प्राचीन और सुंदर कीड़े शामिल हैं जो कभी पृथ्वी पर पाए जाते थे, साथ ही कुछ सबसे बड़े उड़ने वाले अकशेरूकीय भी शामिल हैं। 
    • ओडोनाटा में तीन समूह होते हैं: अनिसोप्टेरा (जिसमें ड्रैगनफ्लाई शामिल हैं), ज़ीगोप्टेरा (जिसमें डेम्फ्लाईज़ शामिल हैं) और एनिसोज़ीगोप्टेरा (केवल दो जीवित प्रजातियों द्वारा दर्शाया गया एक अवशेष समूह)। 

ड्रैगनफ्लाई:  

  • परिचय: 
    • यह एक हवाई शिकारी कीट है जो दुनिया भर में मीठे पानी वाले क्षेत्रों के पास सबसे अधिक पाया जाता है। 
    • इनके खास रंग इन्हें खूबसूरत बनाते हैं। जो उन्हें पारिस्थितिकी और कला दोनों के लिये कीटों के व्यवहार पर शोध हेतु महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान करते हैं। 
  • प्राकृतिक वास: 
    • ड्रैगनफ्लाई की अधिकांश प्रजातियाँ उष्णकटिबंध में और विशेष रूप से वर्षावनों में रहती हैं। 
  • महत्त्व:  
    • ड्रैगनफ्लाईज़ क्षेत्र के पारिस्थितिक स्वास्थ्य के महत्त्वपूर्ण जैव-संकेतक के रूप में कार्य करते हैं। वे मच्छरों और अन्य कीड़ों को खाते हैं जो मलेरिया तथा डेंगू जैसी जानलेवा बीमारियों के वाहक हैं। 
  • खतरे:  
    • उनके आवास का तेज़ी से विनाश उनके अस्तित्व के लिये एक सीधा खतरा बन गया है जिससे उनका संरक्षण ज़रूरी हो गया है। 

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स 

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