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29 May 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस- 1: मथुरा और गांधार कला शैलियों की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिये, उनकी विशेषताओं और भिन्नताओं पर प्रकाश डालिये। (100 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- एक संक्षिप्त परिचय देते हुए आरंभ कीजिये जो मथुरा और गांधार शैलियों का संदर्भ प्रस्तुत करता है।
- मुख्य भाग में प्रत्येक शैली की विशेषताओं का उल्लेख कीजिये, जिसमें सामग्री, धार्मिक विषय और प्रभाव शामिल हों।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
कुषाण और शक द्वारा संरक्षण प्राप्त मथुरा और गांधार कला शैली वर्तमान उत्तर प्रदेश व पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में विकसित हुई। इन शैलियों ने प्रारंभिक शताब्दियों के दौरान भारतीय कला के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके योगदान में स्वदेशी और विदेशी प्रभावों का मिश्रण है।
मुख्य भाग:
मथुरा कला शैली:
- सामग्री: मूर्तियाँ मुख्य रूप से स्थानीय रूप से प्राप्त लाल बलुआ पत्थर से बनाई गई थीं।
- धार्मिक विविधता: इस शैली ने बौद्ध धर्म, जैन धर्म एवं ब्राह्मण धर्मों के लिये कला का निर्माण किया, जो धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाता है।
- विषय: कलाकृतियों में बुद्ध, जैन तीर्थंकरों और विष्णु, शिव व दुर्गा जैसे हिंदू देवताओं को दर्शाया गया है। इसमें दैनिक जीवन और प्रकृति के दृश्य भी शामिल हैं।
- शैली: मूर्तियाँ जीवंत और त्रि-आयामी थीं, जिनमें गोल, यथार्थवादी आकृतियाँ थीं। बुद्ध की मूर्तियाँ बैठी हुई (पद्मासन) और खड़ी मुद्राओं में देखी गईं।
- शासक चित्रण: कनिष्क जैसे राजाओं के चित्र प्राप्त हुए हैं, जिनकी पोशाक मध्य एशियाई शैली से प्रभावित है।
गांधार कला शैली:
- सामग्री: प्रारंभ में इसे नीले-भूरे रंग के शिस्ट पत्थर से तैयार किया गया था, बाद में प्लास्टर का उपयोग किया गया।
- हेलेनिस्टिक प्रभाव: इस शैली में ग्रीक और रोमन कला की झलक मिलती है, जो बुद्ध की आकृतियों में लिपटे वस्त्रों, घुंघराले बालों एवं शारीरिक संरचना में स्पष्ट दिखाई देती है।
- बौद्ध विषयवस्तु: इसमें बुद्ध और बोधिसत्त्व की मूर्तियों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिनमें अक्सर बुद्ध के जीवन के दृश्यों को दर्शाया गया।
- विस्तृत विवरण: मूर्तियों में जटिल विवरणों ने मानव शरीर रचना और चेहरे के भावों पर ज़ोर दिया।
मथुरा और गांधार कला के बीच अंतर:
पहलू
मथुरा कला
गांधार कला
क्षेत्र
मथुरा और उत्तर प्रदेश में फला-फूला
अफगानिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत में विकसित
समय सीमा
पहली शताब्दी ई.पू. से 12वीं शताब्दी ई.
पहली शताब्दी ई.पू. से पांचवीं शताब्दी ई. तक
प्रभाव
स्वदेशी, कोई बाहरी प्रभाव नहीं
ग्रीक और संभवतः मैसेडोनियन कला का प्रबल प्रभाव
धार्मिक प्रभाव
हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म
मुख्यतः बौद्ध
सामग्री
लाल बलुआ पत्थर
नीला-भूरा बलुआ पत्थर
अभिव्यक्ति
बुद्ध को प्रसन्न भाव और अभयमुद्रा जैसे हस्त संकेतों के साथ दर्शाया गया है
बुद्ध को शांति मुद्रा से दर्शाया गया
निष्कर्ष:
दोनों शैलियों ने भारतीय मूर्तिकला को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया, मथुरा ने स्वदेशी और विविध धार्मिक अभिव्यक्तियों पर ज़ोर दिया तथा गांधार ने हेलेनिस्टिक प्रभावों को पेश किया। साथ में, उन्होंने भारत की कलात्मक विरासत को समृद्ध किया, भारतीय धार्मिक प्रतिमा विज्ञान और मूर्तिकला के विकास में योगदान दिया।