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विविध

मनरेगाः देश के समावेशी विकास में कितनी सफ़ल?

  • 22 Feb 2019
  • 7 min read

भूमिका

एक लोककल्याणकारी और लोकतांत्रिक राज्य की सफलता का आकलन इस आधार पर किया जा सकता है कि उसने सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को ऊपर चढ़ने में किस प्रकार राह दिखलाई है। मनरेगा को सच्चे अर्थों में ग्रामीण भारत के निर्धनतम और बेरोज़गार लोगों की सामाजिक-आर्थिक प्रगति के वाहक के रूप में देखा जा सकता है। मनरेगा की इस सोच को UNDP की ग्लोबल ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट, 2015से भी पहचान मिली है।

मनरेगा की विशेषताएँ

  • ग्रामीण भारत को ‘श्रम की गरिमा’ से परिचित कराने वाला मनरेगा रोज़गार की कानूनी स्तर पर गारंटी देने वाला विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक कल्याणकारी कार्यक्रम है, जो प्रत्येक परिवार के अकुशल श्रम करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों को 100 दिन के गारंटीयुक्त रोज़गार, दैनिक बेरोज़गारी भत्ता और परिवहन भत्ता (5 किमी. से अधिक दूरी की दशा में) का प्रावधान करता है।
  • ध्यातव्य है कि सूखाग्रस्त क्षेत्र और जनजातीय इलाकों में मनरेगा के तहत 150 दिनों के रोज़गार का प्रावधान है।
  • मनरेगा एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम है। वर्तमान में इस कार्यक्रम के दायरे से कुछ ऐसे चंद जिले ही बाहर हैं जो पूर्णरूप से शहरों की श्रेणी में आते हैं। इसके अंतर्गत मिलने वाली मजदूरी के निर्धारण का अधिकार केंद्र एवं राज्य सरकारों के पास है।गौरतलब है कि जनवरी 2009 से केंद्र सरकार सभी राज्यों के लिये अधिसूचित की गई मनरेगा मजदूरी दरों को प्रतिवर्ष संशोधित करती है।
  • प्रावधान के मुताबिक मनरेगा लाभार्थियों में एक-तिहाई महिलाओं का होना अनिवार्य है। साथ ही विकलांग एवं अकेली महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने का प्रावधान किया गया है।

मनरेगा की सफ़लता

  • इस समय मनरेगा के माध्यम से 13 करोड़ परिवारों के लगभग 28 करोड़ कामगारों के पास जॉब कार्ड उपलब्ध हैं। नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) की रिपोर्ट के मुताबिक मनरेगा शुरू होने से पहले 42% ग्रामीण जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे थी। मनरेगा की शुरुआत के बाद इसमें ग्रामीण गरीब जनसंख्या के 30% की भागीदारी रही है। रिपोर्ट की मानें तो गरीब व सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों, जैसे-मजदूर, आदिवासी, दलित एवं छोटे सीमांत कृषकों के बीच गरीबी कम करने में मनरेगा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
  • मनरेगा के चलते ग्रामीण श्रम बाजार में मजदूरी में वृद्धि हुई है तथा श्रमिकों द्वारा मोलभाव करने की क्षमता (Bargaining power) भी बढ़ी है। मनरेगा से जुड़े लोगों द्वारा संगठित क्षेत्र से ऋण लेने की दर में इजाफा हुआ है। जिससे साहूकारों पर निर्भरता काफी घटी है।

मनरेगा की सफ़लता पर सवाल

  • एक ओर सरकारी आँकड़े मनरेगा की सफलता को दिखा रहे हैं तो दूसरी ओर ऐसे तथ्य भी विद्यमान हैं जो इसके त्रुटिमुक्त न होने की गवाही दे रहे हैं। NCAER (national council of applied economic research) की रिपोर्ट के मुताबिक मनरेगा में ग्रामीण गरीबों की हिस्सेदारी 30% है अर्थात् अब तक 70% गरीब मनरेगा में सहभागिता से वंचित हैं। रिपोर्ट में इसके कारणों पर सवाल उठाया गया है। CAG की रिपोर्ट में भी मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का खुलासा किया गया है। इसके अतिरिक्त, भुगतान में विलंब, फर्जी हाजिरी रजिस्टर बनाने, फंड की निकासी में धांधली जैसे मामले भी प्रकाश में आए हैं। मनरेगा के कारण छोटे व सीमांत किसानों द्वारा खेती छोड़कर मनरेगा में मजदूरी करने के कारण कृषि उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

त्रुटियों को दूर करने के उपाय

  • मनरेगा व कृषि के मध्य बेहतर समन्वय बनाने का प्रयास किया जा रहा है। मनरेगा के माध्यम से प्रधानमंत्री सिंचाई योजना के तहत 5 लाख से अधिक कुओं व तालाबों की खुदाई का लक्ष्य रखा गया है। जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिये मनरेगा के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में वर्मीकंपोस्ट बनाने के लिये 10 लाख गड्ढे बनाने का प्रस्ताव है।
  • भुगतान में विलंब की समस्या को दूर करने के लिये अब राज्यों द्वारा कोष अंतरण आदेश (Fund Transfer Order) जेनरेट करने के 48 घंटों के भीतर ही ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा धनराशि ‘राज्य रोज़गार गारंटी कोष’ को निर्गत करने का प्रावधान किया गया है।
  • ‘प्रोजेक्ट लाइफ’ के अंतर्गत ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मनरेगा के माध्यम से दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के सहयोग से मनरेगा कामगारों का कौशल विकास करने की परियोजना की शुरुआत की है। इसके अतिरिक्त, मनरेगा के अंतर्गत विभिन्न पहलों के मध्य समन्वय, सभी कार्यकलापों की निगरानी और प्रभावी क्रियान्वयन के लिये वेब आधारित प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS) का विकास और सामाजिक लेखा परीक्षण (Social Audits) के क्षमता विकास के लिये भी प्रयास किये जा रहे हैं।

निष्कर्ष

मनरेगा ने गरीबी उन्मूलन, रोज़गार सृजन, ग्रामीण श्रम बाजार में मजदूरी में वृद्धि, श्रमिकों की सौदेबाजी क्षमता में वृद्धि को सुनिश्चित कर समावेशी विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस दिशा में सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास निश्चित ही सकारात्मक हैं। यदि इनका कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये ठोस कदम उठाए जाएँ तो मनरेगा महज एक कल्याणकारी योजना बनकर रह जाने के बजाय, ग्रामीण भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास का एक सशक्त माध्यम बन सकती है।

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