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भूगोल

‘भारत में मानसून पूर्वानुमान मानक एवं संबंधित मुद्दे’

  • 18 May 2020
  • 10 min read

भारत में मानसून संबंधी पूर्वानुमान भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा जारी किये जाते हैं। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग 18 अप्रैल को दक्षिण-पश्चिम मानसून का दीर्घावधि पूर्वानुमान जारी करता है। देश में मानसूनी सीज़न चार महीनों का होता है। मानसून जून में प्रारंभ होकर सितंबर तक रहता है, दीर्घावधि पूर्वानुमान के दौरान मौसम विभाग कई पैमानों का इस्तेमाल कर इन चार महीनों में होने वाली मानसूनी वर्षा की मात्रा को लेकर संभावना जारी करता है। इससे कृषि सहित अन्य क्षेत्रों को आवश्यक तैयारियाँ करने में मदद मिलती है।

मानसून क्या है?

  • गौरतलब है कि मानसून अरबी भाषा के शब्द मौसिम से निकला है, जिसका अर्थ है हवाओं में ऋतुवत परिवर्तन।
  • शीत ऋतु में हवाएँ उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है जिसे शीत ऋतु का मानसून कहा जाता है। वहीं ग्रीष्म ऋतु में हवाएँ इसके विपरीत दिशा में प्रवाहित होती है जिसे दक्षिण-पश्चिम मानसून या गर्मी का मानसून कहते है।
    • चूँकि प्राचीन काल में इन हवाओं से व्यापारियों को नौकायन में सहायता मिलती थी, इसलिये इन्हें व्यापारिक हवाएँ या ‘ट्रेड-विंड’ भी कहा जाता है।

मानसून का पूर्वानुमानः

  • वस्तुतः मानसून एक ऐसी अबूझ पहेली है जिसका अनुमान लगाना बेहद जटिल है। कारण यह है कि भारत में विभिन्न प्रकार के जलवायु ज़ोन एवं उप-ज़ोन हैं। भारत में 36 कृषि जलवायु संभाग तथा 127 उप-संभाग हैं।
  • भारतीय मानसून विभाग द्वारा अप्रैल के मध्य में मानसून को लेकर दीर्घावधि पूर्वानुमान जारी किया जाता है। इसके उपरांत मध्यम अवधि और लघु अवधि के पूर्वानुमान जारी किये जाते है। हालांकि हाल के कुछ वर्षों से ‘नाऊ कास्ट’ के माध्यम से मौसम विभाग ने अब कुछ घंटों पहले के मौसम की भविष्यवाणी करना आरंभ कर दिया है।
    • लघु अवधि – 24 घंटे पहले तक।
    • मध्यम अवधि – 1 दिन से 7 दिन तक।
    • दीर्घावधि – 7 दिन से 6 माह तक।
  • गौरतलब है कि मौसम विभाग की भविष्यवाणियों में हाल के वर्षों में सुधार देखा गया है अभी मध्यम अवधि की भविष्यवाणियों की सटीकता 70-80% तक रहती है।
  • लघु अवधि की भविष्यवाणियां लगभग 90 फीसदी तक सटीक रहती है, वही ‘नाउ-कास्ट’ की भविष्यवाणियाँ करीब-करीब 99% सटीक निकलती है।
  • भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की अवधि 1 जून से 30 सितंबर तक मानी जाती है।
  • भारतीय मौसम विभाग लगभग 16 पैरामीटरों/मानकों का सूक्ष्मता से अध्ययन कर मानसून की भविष्यवाणी करता है। 
  • इन पैरामीटरों को चार भागों में बाँटा गया है और इन्हीं पैरामीटरों को आधार बनाकर मानसून के पूर्वानुमान निकाले जाते हैं।

मानसून पूर्वानुमान की विधि/प्रक्रियाः

  • सर्वप्रथम तापमान, वायुदाब, वायु, आर्द्रता आदि के आँकड़ों का संग्रहण किया जाता है।
  • वस्तुत आँकड़ों के संग्रहण का कार्य विभिन्न स्टेशनों के मध्यम से किया जाता है यथा भूमि आधारित स्टेशन, समुद्र आधारित स्टेशन, वायुमंडल आधारित  स्टेशन तथा अंतरिक्ष स्टेशन जैसे सुदूर संवेदी उपग्रहों व इनसेट से प्राप्त आँकड़े।
  • आँकड़ों के संग्रहण के पश्चात् सुपरकंप्यूटरों की मदद से आँकड़ों की प्रोसेसिंग की जाती है एवं अधिक विश्वसनीय आँकड़ों को पुनः संग्रहित किया जाता है। वस्तुतः विभिन्न मॉडलों का प्रचालन एवं उसी मॉडल में अनुगामी प्रचालन किया जाता है।
  • इसके पश्चात् सांख्यिकीय पूर्वानुमान की प्रक्रिया के अंतर्गत विशेषज्ञों द्वारा सर्वोत्तम आँकड़ों का विश्लेषण एवं समग्र प्रचालन किया जाता है। 
  • तत्पश्चात् पूर्वानुमानकर्त्ता द्वारा अंतिम पूर्वानुमान जारी किये जाते हैं तथा निर्णय निर्माता द्वारा पूर्वानुमानों को क्रियाशील किया जाता है।
  • वस्तुतः भिन्न-भिन्न स्रोतों से प्राप्त विभिन्न पूर्वानुमान मार्गदर्शनों के विश्लेषण हेतु एक मानक प्रचालन प्रक्रिया (SOP) का अनुपालन किया जाता है।
  • वैज्ञानिक आधार वाले संकल्पनात्मक मॉडलों, गतिकीय एवं सांख्यिकीय मॉडलों, मौसम वैज्ञानिक, डेटा सेटों, एवं प्रौद्योगिकी को मिश्रित करके विश्लेषण, पूर्वानुमान एवं निर्णय निर्माण प्रक्रिया बनती है।

मानसून पूर्वानुमान का महत्वः

  • ध्यातव्य है कि मानसून समस्त कृषिगत- औद्योगिक आदि गतिविधियों को प्रभावित करता है।
  • भारतीय कृषि मानसून पर आधारित कृषि है। अतः मानसून पूर्वानुमान का सर्वाधिक महत्व कृषि क्षेत्र में है। वस्तुतः जुताई, बुवाई, सिंचाई, कटाई आदि का समय मानसून द्वारा प्रभावित/निधार्रित होता है।
  • मानूसन पूर्वानुमान के आधार पर न केवल फसल की बुवाई के समय में बदलाव किया जा सकता है बल्कि फसलों का चयन भी मानसून के अनुसार किया जा सकता है, जैसे- यदि मानसून के कमजोर रहने की संभावना हो तो कम पानी की मांग वाली फसलों को प्राथमिकता के आधार पर उगाया जा सकता है।
  • फिशिंग एवं वानिकी के लिये भी मानसून पूर्वानुमान का अपना विशेष महत्त्व है।
  • मानसून पूर्वानुमान पर्यटन, उद्ययन, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि गतिविधियों को भी प्रभावित करता है।

मानसून मिशन मॉडल (मानसून पूर्वानुमान संबंधी):

  • पहली बार भारत मौसम विज्ञान विभाग ने वर्ष 2017 में मानसूनी वर्षा संबंधी मौसमी पूर्वानुमान के लिये मानसून मिशन मॉडल का उपयोग किया।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने वर्ष 2012 में राष्ट्रीय मानसून मिशन लाॅन्च किया था जिसका उद्देश्य विभिन्न समयावधियों में मानसूनी वर्षा की पूर्वानुमान प्रणाली को विकसित करना था।
  • राष्ट्रीय मानसून मिशन के अंतर्गत मानसून भविष्यवाणी प्रणाली को उच्च क्षमता से जोड़ा गया तथा मौसम पूर्वानुमान के लिये उच्च क्षमता वाले वायुमंडलीय मॉडल की स्थापना की गई।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रलय ने तीन वर्षो के लिये (2017-2020) मानसून मिशन चरण–2 कार्यक्रम लाॅन्च किया। इसके अंतर्गत सामान्य से कम/अधिक वाले पूर्वानुमानों पर ज़ोर दिया जाएगा तथा अनुप्रयोगों आधारित मानसून पूर्वानुमान विकसित किये जाएंगे।
  • इस मॉडल का प्रमुख उद्देश्य देश के विभिन्न स्थानों पर मानसून, वर्षा और उसके पूर्वानुमान के लिये सर्वाधिक आदर्श और अत्याधुनिक गतिकीय मॉडल ढाँचे का विकास करना है।

मानसून पूर्वानुमान से संबंधित मुद्दे एवं समस्याएँ:

  • अभी भी पूर्वानुमान के सटीक मॉडल एवं सिद्धातों का अभाव है।
  • समुद्र और स्थल पर उचित एवं पर्याप्त स्टेशनों का अभाव है।
  • कर्मचारियों में कार्यशीलता एवं कुशलता की कमी के कारण आँकड़ा संग्रहण मे निरंतरता एवं प्रमाणिकता की कमी रह जाती है।
    •  सटीकता के अभाव में कृषकों को नुकसान उठाना पड़ता है।
  • मानसून पूर्वानुमान की भविष्यवाणी एवं वास्तविक परिस्थितियों में अंतर पाया जाता है।

उपर्युक्त मुद्दों एवं समस्याओं के समाधान हेतु किये गए उपाय:

  • यद्यपि पूर्वानुमान में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, परंतु अभी भी निर्णय निर्माण तथा चेतावनी प्रसार प्रणालियों में सहायक तकनीकी तथा आपदा प्रबंधकों की आवश्यकतानुसार अत्याधुनिक उपकरण जैसे आयामों पर सुधार की संभावनाएँ हैं। 
  • इसके लिये पृथ्वी एवं विज्ञान मंत्रालय (MOES) द्वारा निम्नलिखित पहले की जा रही हैं-
    • मौसम एवं जलवायु प्रेक्षण प्रणालियों का आधुनिकीकरण।
    • मौसम, जलवायु और पृथ्वी प्रणाली विज्ञान डेटा हेतु क्लाउड डेटा केंद्र की स्थापना।
    • दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान (भारी वर्षा, अचानक बाढ़, तड़ित झंझा आदि) और बहुसंकट चेतावनियों हेतु निर्णय निर्माण प्रणाली।
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