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सुरक्षा

द बिग पिक्चर : लड़ाकू भूमिका में महिलाएँ

  • 20 Dec 2018
  • 15 min read

संदर्भ


15 दिसंबर को सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने कहा कि खनन और गैर-खनन परिचालन जैसे कामों में लगी महिलाएँ अधिकारी के रूप में भूमिका निभा रही हैं साथ ही वे वायु रक्षा प्रणाली का प्रबंधन भी कर रही हैं, लेकिन उन्हें फ्रंटलाइन लड़ाकू भूमिका निभाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि आर्मी में महिलाओं को लड़ाकू भूमिका (combat role) इसलिये नहीं दी जाती है क्योंकि उनके ऊपर बच्चों को पालने की ज़िम्मेदारी होती है। उन्होंने यह भी कहा कि  महिलाएँ अपने साथी जवानों पर ताक-झाँक करने का आरोप भी लगा सकती हैं इसलिये उन्हें कॉम्बैट रोल के लिये भर्ती नहीं किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि फ्रंटलाइन मुकाबले में अधिकारियों के मारे जाने का खतरा होता है। युद्ध में मारे गए शहीद जब ताबूत में वापस आते हैं, तो हमारा देश इसे देखने के लिये तैयार नहीं होता है।

पृष्ठभूमि

  • लंबे समय तक सशस्त्र बलों में महिलाओं की भूमिका चिकित्सीय पेशे जैसे डॉक्टर और नर्स तक ही सीमित थी।
  • 1992 में नॉन-मेडिकल जैसे-विमानन, रसद, कानून, इंजीनियरिंग और एक्जीक्यूटिव कैडर में नियमित अधिकारियों के रूप में महिलाओं के प्रवेश के दरवाज़े खुले।
  • भर्ती के लिये प्रकाशित विज्ञापनों के आधार पर हज़ारों उत्साही युवा महिलाओं ने आवेदन किया और यह भारतीय सेना के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था।
  • हाल के वर्षों में सेना में लड़ाकू पदों और टैंक इकाइयों में पनडुब्बियों पर सेवा के लिये प्रशिक्षण देकर महिलाओं को अधिक समावेशी बनाने के लिये कदम उठाए गए हैं।
  • फरवरी 2016 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने घोषणा की कि महिलाओं को भारतीय सशस्त्र बलों के सभी वर्गों में युद्ध की भूमिका निभाने की अनुमति दी जाएगी जो दुनिया के सबसे नर-वर्चस्व वाले सेना में लैंगिक समानता की दिशा में एक सार्थक कदम उठाने की ओर इशारा करता है।
  • कुछ महीने पहले रक्षा मंत्रालय के एकीकृत मुख्यालय ने सेना के सभी विंग से महिलाओं के लिये विभिन्न प्रकार की भूमिका पर सुझाव देने के लिये कहा है।
  • अक्तूबर 2015 में सरकार ने महिलाओं को लड़ाकू बलों में शामिल करने की ओर पहला कदम उठाया। जून 2017 से तीन सालों तक की प्रायोगिक अवधि में भारतीय वायु सेना की महिला पायलट युद्धक विमान उड़ाने के लिये हो जाएंगी।

भारतीय सेना में महिलाओं की भूमिका

  • अभी तक भारतीय सेना में महिलाओं की तैनाती चिकित्सा, शिक्षा, कानून, सिग्नल और इंजीनियरिंग जैसी इकाइयों में होती रही है।
  • अब भारतीय वायुसेना में महिला फाइटर पायलटों की नियुक्ति होनी शुरू हो गई है। 2016 में तीन महिलाओं को फायटर पायलट के रूप में तैनात किया गया था। इनकी नियुक्ति पायलट प्रोजेक्ट के रूप में की गई थी।
  • भारतीय नौसेना भी जंगी जहाज़ों पर महिलाओं को तैनात करने पर विचार कर रही है। भारतीय नौसेना में महिला अधिकारी कॉम्बैट तथा कॉम्बैट सपोर्ट की भूमिका में कार्यरत हैं।
  • पायलट और ऑब्जर्वर के रूप में क्षमता के अनुसार महिलाओं को मैरीटाइम सैनिक सर्वेक्षण विमानों पर लड़ाकू भूमिका में नियोजित किया जा रहा है।
  • भारतीय नौसेना में कानून एवं शिक्षा तथा नौसेना कन्स्ट्रक्टर्स शाखा में महिला अधिकारियों के लिये स्थायी कमीशन की व्यवस्था की नीति को अंतिम रूप दिया गया है।
  • सरकार ने भारतीय वायुसेना की कुछ शाखाओं में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिये भावी नीतियाँ जारी की थीं, जबकि भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने की नीति को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
  • भारतीय वायुसेना में अब पहले से कहीं अधिक महिला पायलट हैं। अभी तक महिलाओं को विशेषज्ञ बलों, जैसे- घातक, गरुड़, मार्कोस, पैरा कमांडो आदि में लड़ाकों के रूप में अनुमति नहीं दी गई है।
  • गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने मार्च 2017 में घोषणा की कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CRPF) और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) में 30 प्रतिशत तथा सीमा सुरक्षा बल (BSF), सशस्त्र सीमा बल (SSB) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में 15 प्रतिशत कॉन्स्टेबल रैंक के पदों पर महिलाओं को भर्ती किया जाएगा।
  • जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यू.एस., ब्रिटेन, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्राँस, नॉर्वे, स्वीडन और इज़राइल जैसे देशों ने महिलाओं को युद्ध में भूमिका निभाने की अनुमति दी है।
  • वायु रक्षा के क्षेत्र में महिलाएँ हमारी हथियार प्रणालियों का प्रबंधन कर रही हैं। लेकिन हमने महिलाओं को फ्रंटलाइन मुकाबले में नहीं रखा है। जिसके पीछे लॉजिस्टिक तथा ऑपरेशनल चिंताओं को मुख्य कारण माना जाता है।

महिलाओं को कॉम्बैट रोल देने में क्या हैं कठिनाइयाँ?


1. शारीरिक मुद्दे

  • महिला-पुरुष के बीच कद, ताकत और शारीरिक संरचना में प्राकृतिक विभिन्नता के कारण महिलाएँ चोटों और चिकित्सीय समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। यह समस्या विशेष रूप से गहन प्रशिक्षण के दौरान होती है।
  • इसके अलावा, महिलाओं में अधिक ऊँचाई, रेगिस्तानी इलाकों, क्लीयरेंस डाइविंग और हाईस्पीड एविएशन (G-forces) जैसे कठिन इलाकों में नॉन-कॉम्बैट चोटें भी प्रायः देखी जाती हैं।
  • मासिक धर्म और गर्भावस्था की प्राकृतिक प्रक्रियाएँ महिलाओं को विशेष रूप से युद्ध स्थितियों में कमज़ोर बनाती हैं।
  • लड़ाकू क्षेत्रों में मासिक धर्म के शमन की आवश्यकता और दीर्घकालिक स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव हमेशा बहस के मुद्दे रहे हैं।
  • कठिन युद्धों में लंबे समय तक तैनाती और महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य पर शारीरिक गतिविधियों के गंभीर प्रभाव को लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका में विशेष रूप से अध्ययन किया जा रहा है।

2. सामाजिक और मनोवैज्ञानिक मुद्दे

  • महिलाएँ अपने परिवार, विशेष रूप से अपने बच्चों से अधिक जुड़ी हुई होती हैं। वह परिवार से लंबे समय तक अलगाव के दौरान अधिक मानसिक तनाव में होती हैं जो कि सामाजिक समर्थन की आवश्यकता को इंगित करता है।
  • एकाकीपन भी एक बड़ा मुद्दा है, यह इस तथ्य के कारण है कि सेना में विशेष रूप से युद्ध क्षेत्रों में पुरुषों की संख्या महिलाओं से कहीं अधिक है।
  • मिलिट्री सेक्सुअल ट्रामा (MST) का मुद्दा और महिला लड़ाकों के शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव दिखाई देता है। कई देश अब इस समस्या को वास्तविक और ज़रूरी मान रहे हैं तथा इसे रोकने के लिये मज़बूत उपाय कर रहे हैं।
  • MST गंभीर तथा दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण बन सकता है, जिसमें पोस्टट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), अवसाद (depression) और वस्तुओं का दुरुपयोग शामिल है।

3. सांस्कृतिक मुद्दे

  • समाज में सांस्कृतिक बाधाएँ, विशेष रूप से भारत जैसे देश में युद्ध में महिलाओं को शामिल करने में सबसे बड़ी बाधा हो सकती है।
  • कुछ महिलाओं को पुरुष बाहुल्य वाले तंग आवासों, दुसह्य इलाकों तथा दुर्गम स्थानों पर तैनात करने के परिणाम का सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
  • अतः भारत जैसे देश में महिला लड़ाकों की तस्वीर बहुत उज्ज्वल प्रतीत नहीं होती है।

सक्षम हैं महिलाएँ

  • महिलाओं को युद्ध की भूमिका की अनुमति देना लैंगिक समानता की दिशा में उठाया गया एक कदम के रूप में देखा जा सकता है।
  • यह प्रगतिशील कदम महिलाओं को उनकी उचित स्थिति और अधिकार देने में मदद करेगा, जो आखिरकार सामाजिक पदानुक्रम में उनकी स्थिति को बढ़ाने में मददगार होगा।
  • मनोवैज्ञानिक रूप से महिलाएँ इसके लिये तैयार हैं, उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण और समुचित वातावरण प्रदान किये जाने की आवश्यकता है।
  • जहाँ तक मुकाबला का संबंध है तो यह पूरी तरह से शारीरिक शक्ति से संबंधित नहीं है। शक्ति के मापदंड पर महिलाओं को कमतर नहीं आँका जा सकता। आवश्यकता है उचित पोषण और प्रशिक्षण के साथ उनकी शारीरिक क्षमता को पोषित करने की।
  • वास्तव में आज की दुनिया में युद्ध, हथियार और रणनीति में अद्भुद खोज और नवाचारों के साथ कौशल की एक नई प्रवृत्ति को प्राथमिकता दी गई है।
  • यह अनुकूलता, चपलता, अनुशासन, त्वरित सोच, निपुणता, टीमवर्क और नेतृत्व जैसे गुणों की मांग करता है, जिसे पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा समान रूप से हासिल किया जा सकता है।
  • ऐसे कई देश जैसे- कनाडा, अमेरिका, जर्मनी, फ्राँस, इज़राइल आदि ने महिलाओं को पहले से ही युद्ध की भूमिका में शामिल करने की अनुमति दी है।
  • आज महिलाओं की टेक्निकल आर्म (Electronic and Mechanical Engineering-EME) में भूमिका बढ़ रही है लेकिन यह चिंता का विषय है कि महिला अफसरों की संख्या 5 प्रतिशत से भी कम है।
  • महिलाएँ इससे जुड़े खतरे और चुनौतियों से वाकिफ हैं। यदि महिलाएँ सोचती हैं कि वे ऐसा कर सकती हैं तो उन्हें निश्चित रूप से मौका दिया जाना चाहिये।

सामाजिक स्वीकार्यता के लिये अध्ययन की ज़रूरत

  • हमें सबसे पहले एक विस्तृत अध्ययन करने की ज़रूरत है कि क्या हमारा समाज महिला बॉडी बैग (ताबूत) स्वीकार करने के लिये तैयार है? क्योंकि हमारा देश एक भावनात्मक देश है। जब हम पुरुष बॉडी बैग को स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं हैं तो कैसे हम महिला बॉडी बैग को स्वीकार कर पाएंगे।
  • क्या हमारा समाज बिन माँ के बच्चे को स्वीकार करने के लिये तैयार होगा जिसकी 30 वर्षीय माँ आर्मी ऑपरेशन में शहीद हो चुकी होती है। इसका जवाब भारतीय सेना नहीं बल्कि समाज ही दे सकता है।
  • भारतीय सेना में महिलाओं की भूमिका को कैसे बढ़ाया जा सकता है इस पर भी विस्तृत अध्ययन किये जाने की ज़रूरत है।
  • इसमें कोई संदेह नहीं कि महिलाएँ सेना में बहुत से कार्य बेहतर ढंग से कर रही हैं लेकिन हमें यह भी देखने की ज़रूरत है कि इनके कार्यक्षेत्र को किस प्रकार बढ़ाया जा सकता है।
  • अध्ययन का हिस्सा यह भी होना चाहिये कि सेना में अधिकतर जवान ग्रामीण पृष्ठभूमि से होते हैं क्या वे अपने ऊपर महिला नेतृत्व को स्वीकार कर पाएंगे?
  • सरकार महिलाओं की भूमिका साइबर सिक्यूरिटी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तथा ऑडिट एंड अकाउंट में बढ़ा रही है। जहाँ तक कॉम्बैट आर्मी का सवाल है तो हम इसमें भी धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं लेकिन इसमें समय लगेगा।
  • महिलाएँ सिग्नल, इंजीनियरिंग तथा EME में अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं लेकिन एयर फ़ोर्स में इनके प्रवेश में अभी थोड़ा वक्त लगेगा। ज़रूरत एक कारगर नीति बनाने की है जिसका हम लंबे समय से इंतज़ार कर रहे हैं।
  • अगर यह कहा जाए की सशस्त्र सेनाओं में महिलाओं की स्थिति कुछ स्तरों पर उपेक्षित है, तो गलत नहीं होगा। इसका कारण विस्तृत सरकारी नीति का अभाव है। हमारे नीति निर्माताओं को इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है।

निष्कर्ष


आज महिलाएँ पूरी दुनिया में सैन्य क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। भारत भी लड़ाकू भूमिकाओं में महिलाओं को शामिल करने की ओर तेज़ी से कदम बढ़ा रहा है। महिला लड़ाकों के स्वास्थ्य मुद्दों के अलावा सामाजिक-आर्थिक पहलुओं को समझने के लिये एक समेकित अध्ययन करने की ज़रूरत है जिसमें नागरिक समाज के अलावा स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास तथा एचआरडी मंत्रालय को शामिल किया जाना चाहिये ताकि हम निकट भविष्य में इस क्षेत्र में अपेक्षित चुनौतियों का सामना करने और उनसे निपटने में सक्षम हो सकें।

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