भारतीय राजव्यवस्था
वोट का आधार ‘आधार’
- 22 Aug 2019
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संदर्भ
केंद्रीय चुनाव आयोग ने फर्ज़ी वोटर आई.डी. और एक से अधिक जगहों पर पंजीकृत मतदाताओं की संख्या पर लगाम लगाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार से आधार कार्ड को वोटर आई.डी. कार्ड से जोड़ने की मांग की है। चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय को पत्र लिखकर जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन की मांग की है। कानून में बदलाव के बाद चुनाव आयोग को नए और पुराने वोटर आई.डी. कार्ड धारकों के आधार नंबर को वैधानिक तौर पर हासिल करने की स्वीकृति मिल जाएगी। इससे पहले अगस्त 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के आधार कार्ड डिटेल लेने की योजना पर रोक लगा दी थी।
आधार को वोटर आई.डी. से जोड़ने की आवश्यकता क्यों?
कहा जाता है कि भारत चुनावों का देश है। हर समय देश के किसी-न-किसी स्थान पर कोई न कोई चुनाव होता रहता है। चुनाव में एक प्रमुख समस्या फर्ज़ी मतदान की है। कई बार कई स्थानों से बूथ कैप्चरिंग से लेकर फर्ज़ी मतदान तक की रिपोर्ट्स आती रहती हैं। इन्हीं समस्याओं को देखते हुए निर्वाचन आयोग ने विधि और न्याय मंत्रालय को चिट्ठी लिखी है इसमें आधार कार्ड को वोटर आई.डी. से जोड़ने हेतु कानून बनाने की बात कही गयी है। जिससे फर्ज़ी मतदाताओं पर लगाम लगाई जा सकेगी।
इसमें जनप्रतिनिधि अधिनियम,1951 में संशोधन की मांग भी की गई है। आयोग ने कहा है कि वह नए आवेदकों और मौजूदा मतदाताओं की आधार संख्या एकत्र करना चाहता है जिससे वोटर लिस्ट में दर्ज नाम की जाँच-पड़ताल की जा सके।
निर्वाचन आयोग ने फर्ज़ी मतदान को रोकने के लिये वर्ष 2015 में नेशनल इलेक्टोरल रोल वेरिफिकेशन प्रोग्राम चलाया था जिसके अंतर्गत वोटर आई.डी. को आधार कार्ड से जोड़ने का काम शुरु किया गया था। किंतु चुनाव आयोग के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। हालाँकि यह कार्य मतदाताओं की स्वेच्छा से किया जा रहा था और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पहले चुनाव आयोग 38 लाख वोटर आई.डी. को आधार से लिंक कर चुका था।
इस अभियान को आगे बढ़ाते हुए चुनाव आयोग ने विधि और न्याय मंत्रालय को जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम,1951 में संशोधन करने हेतु प्रस्ताव दिया है। इसके तहत वोटर आई. डी. को आधार कार्ड से जोड़ना अनिवार्य हो जाएगा। इससे फर्ज़ी वोटर आई.डी. की पहचान करना भी आसान हो जाएगा। साथ ही आधार कार्ड से जुड़ने पर ये भी पता चल जाएगा कि कोई वोटर कितने मतदान केंद्रों पर वोटिंग कर रहा है। इस तरह से मतों के दोहराव की समस्या से निपटा जा सकेगा।
जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम,1951
संविधान के अनुच्छेद 327 के तहत इस अधिनियम को संसद द्वारा पारित किया गया था। यह संसद और राज्य विधानसभाओं के लिये चुनाव का संचालन करता है। यह उक्त सदनों का सदस्य बनने के लिये योग्यता और अयोग्यता के बारे में भी बताता है।
ज्ञातव्य है कि भाजपा नेता और सर्वोच्च न्यायालय में कार्यरत वकील अश्विनी उपाध्याय ने वोटर आई.डी. को आधार से जोड़कर मतदान करवाने हेतु सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की थी।
कठिनाइयाँ
आधार को मतदान की प्रक्रिया से जोड़ने में सबसे बड़ी कठिनाई सर्वोच्च न्यायालय के 9 न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ द्वारा अगस्त 2017 में दिया गया फैसला है, जिसमें निजता के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार माना गया। मौलिक अधिकार होने के कारण इससे समझौता नहीं किया जा सकता है।
हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने इसे निरपेक्ष अधिकार नहीं माना है और राष्ट्रीय सुरक्षा, अपराधों पर नियंत्रण, सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में आधार की जानकारी मांगी जा सकती है।
निर्वाचन आयोग के पास स्वंतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिये पर्याप्त शक्तियाँ हैं किंतु सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त फैसला जिसमें निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया है, के पश्चात् केवल कार्यकारी आदेश द्वारा नहीं बल्कि विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया द्वारा ही आधार को वोटर आई.डी. से जोड़ा जा सकता है।
इसके अलावा आधार के ज़रिये एकत्र किये गए आँकड़ों की सुरक्षा का प्रश्न भी उठता रहा है। सरकारी मशीनरी आँकड़े लीक होने एवं उनके दुरुपयोग पर क्या कदम उठाएगी इस बारे में रणनीति भी स्पष्ट नहीं है।
सकारात्मक पक्ष
- आधार को वोटर आई.डी. से जोड़ने के पश्चात् मतदाताओं का सत्यापन करना आसान हो जाएगा।
- फर्जी मतदान एवं मतों के दोहराव की समस्या कम हो जाएगी।
- मतदान की नई प्रक्रियाओं जैसे-रिमोट वोटिंग, e- वोटिंग इत्यादि में आधार का उपयोग करके किसी भी स्थान से मतदान किया जा सकता है।
- मतदान प्रतिशत में वृद्धि होगी।
अभ्यास प्रश्न: आधार आधारित मतदान से होने वाले फायदे एवं इसमें आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।