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भारतीय अर्थव्यवस्था

द बिग पिक्चर: बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं को लागू करने का रोडमैप

  • 27 Feb 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय बजट 2021-2022 में बुनियादी अवसंरचना क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया है। वित्त मंत्री ने विकास वित्त संस्थान की स्थापना की भी घोषणा की है, जिससे बड़े पैमाने पर संपत्ति का मौद्रीकरण संभव हो सकेगा।

  • बुनियादी अवसंरचना के विकास को बढ़ावा देने से न केवल महामारी के बाद भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा बल्कि नए रोज़गार के अवसर भी सृजित होने की उम्मीद है।

प्रमुख बिंदु

  • बजट आवंटन में वृद्धि: वित्त वर्ष 2020-21 की तुलना में बुनियादी अवसंरचना के लिये बजट आवंटन में 34.5% की वृद्धि की गई है।
  • सभी क्षेत्रों पर समान फोकस: सड़क एवं राजमार्ग, रेलवे, शहरी बुनियादी अवसंरचना, ऊर्जा, बंदरगाह, नौ-परिवहन व विमानन, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस सहित सभी भौतिक अवसंरचनाओं पर समान बल दिया गया है। राजमार्गों के निर्माण के लिये 1.08 लाख करोड़ रुपए का उच्चतम पूंजीगत व्यय आवंटित किया गया है।
  • संस्थागत स्थापना: सरकार ने विकासात्मक वित्तीय संस्थान की स्थापना एवं पूंजीकरण के लिये 20,000 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की है।
  • निगरानी एवं पारदर्शिता: अवसंरचना विकास में हुई प्रगति को ट्रैक करने हेतु डैशबोर्ड के साथ एक राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन शुरू की जाएगी, इससे निवेशक भी सबंधित कार्यों पर दृष्टि रख सकेंगे।

राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन

  • बजट 2021-22 में संभावित ब्राउनफील्ड परियोजनाओं के लिये राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन प्रस्तावित की गई है। परिसंपत्ति विमुद्रीकरण सार्वजनिक परिसंपत्तियों में किये गए निवेश जिनसे अब तक उचित अथवा संभावित रिटर्न प्राप्त नहीं हुआ है, को अनलॉक करने की प्रक्रिया होती  है।

ब्राउनफील्ड परियोजनाएँ

  • ब्राउनफील्ड निवेश तब होता है जब कोई कंपनी अथवा सरकारी संस्था एक नई उत्पादन गतिविधि शुरू करने के लिये मौजूदा उत्पादन सुविधाओं को खरीदता है अथवा पट्टे (lease) पर देता है। यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में उपयोग की जाने वाली एक रणनीति है।
  • इसका विकल्प एक ग्रीनफील्ड निवेश होता है, जिसमें एक नए संयंत्र का निर्माण किया जाता है।

बुनियादी अवसंरचना विकास के लिये फोकस क्षेत्र 

  • अवरोधों  को समाप्त करना: जो सड़कें एवं राजमार्ग बनाए जा रहे हैं उनके अतिरिक्त उन अवरोधों को दूर करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये जो राजमार्ग एवं शहरों को जोड़ते हैं।
  • कम लागत वाले आवास: बुनियादी अवसंरचना परियोजनाएँ ज़्यादातर टियर-1 टियर-2 शहरों तक ही सीमित हैं, महामारी के पश्चात् प्रवासी मज़दूर शहरों में लौटेंगे, इसलिये सरकार को कम लागत वाले आवासों पर काम करना होगा ताकि भविष्य में कोई मज़दूर को अस्थायी आवास की समस्या न हो।
  • शहरों को झुग्गियों से मुक्त करना तथा कम लागत वाले आवास भारत के लिये प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं जिन्हें ध्यान में रखकर कार्य करना होगा।
  • नदी पुनरुद्धार: भारत को नदी पुनरुद्धार अवसंरचना को बढ़ावा देना होगा क्योंकि लगभग प्रत्येक शहर में एक ऐसी नदी है जिसमें अपशिष्ट जल मिलता है।
    • यद्यपि प्रमुख नदियों के लिये प्रमुख कार्य योजनाएँ, जैसे- स्वच्छ गंगा हेतु राष्ट्रीय मिशन हैं, लेकिन ये पर्याप्त नहीं हैं, कई नाले एवं सहायक नदियाँ मुख्य नदी के प्रदूषण में योगदान दे रही हैं।
    • इसके अतिरिक्त इन नदियों के आसपास रहने वाले लोगों का सहयोग लेने की भी आवश्यकता है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): सरकार इन बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं में तब तक केवल अपने संसाधनों से पूर्ण निवेश नहीं कर सकती है, जब तक कि सरकार निजी क्षेत्र को शामिल नहीं करती है। सरकार निजी क्षेत्र के सहयोग से इन परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण कर सकती है।
    • अवसंरचना परियोजनाओं को पूर्ण करने में होने वाली देरी को कम करने के लिये सरकारें शुरू में परियोजनाओं का निर्माण कर सकती हैं और फिर संचालन एवं रखरखाव के लिये परियोजनाओं को निजी क्षेत्र को सौंप सकती हैं।

संबंधित मुद्दे

  • स्थायी वित्त का अभाव: हालाँकि बुनियादी अवसंरचना के लिये बजट में का एक बड़ी राशि का आवंटन किया जाता है लेकिन यह तब तक पर्याप्त नहीं है जब तक कि इसे बाज़ार से पूरक संसाधनों जैसे- एफडीआई के साथ संवर्धित नहीं किया जाता है।
  • भूमि संबंधित मुद्दे: भूमि किसी भी बुनियादी अवसंरचना परियोजना के लिये बुनियादी आवश्यकता है। भारत में भूमि अधिग्रहण विवादास्पद है, अतः यह प्रक्रिया बहुत तीव्र नहीं होती है।
  • अप्रभावी विवाद समाधान तंत्र: बहुत सारी अवसंरचना परियोजनाएँ, क्रियान्वयन एजेंसियों जिन्हें परियोजनाएँ सुपुर्द की जाती हैं एवं प्राधिकरणों के मध्य मुकदमेबाज़ी में फँस जाती हैं।
    • विवाद समाधान तंत्र बहुत तीव्र एवं प्रभावी नहीं हैं, इसलिये मौजूदा निवेशकों को सफल होना मुश्किल लगता है और नए निवेशक भाग लेने में ज़्यादा सहज महसूस नहीं करते हैं।

आगे की राह

  • मानव संसाधन: बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के कार्यान्वयन एवं निगरानी के लिये गुणवत्ता युक्त मानव संसाधन के निवेश की आवश्यकता होगी।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश: उन क्षेत्रों में जहाँ भारत अनुसंधान एवं विकास में अभी भी वैश्विक स्तर पर नहीं है, FDI की अनुमति एवं FDI में वृद्धि की जानी चाहिये।
    • भारत में अधिक FDI लाने के लिये कानूनी ढाँचे को सुगम बनाना होगा एवं इसके लिये एक बेहतर अनुबंध प्रबंधन प्रणाली तथा एक विवाद समाधान तंत्र की आवश्यकता है।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना: सरकार स्वयं प्रयासों से निजी क्षेत्र की उद्यमिता क्षमताओं को सामने नहीं ला सकती है, यदि भारत को बुनियादी ढाँचा प्रदान करने के मामले में वैश्विक स्तर पर पकड़ बनानी है तो इसकी बहुत आवश्यकता है।

निष्कर्ष

  • PPP मॉडल के साथ बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं को लागू करने का एक रोडमैप बनाए जाने की आवश्यकता है एवं इससे सरकार की वित्तीय क्षमता पर बोझ कम होगा।
    • यद्यपि निजी क्षेत्र एक लाभ आधारित क्षेत्र है लेकिन इसे उपयुक्त तरीके से विनियमित किया जाए तो यह सरकार, निजी क्षेत्र के साथ-साथ राष्ट्र के लिये भी लाभदायक होगा।
    • इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन की घोषणा एक स्वागत योग्य कदम है जो न केवल सार्वजनिक निवेश से होने वाले रिटर्न में वृद्धि करेगा बल्कि संतुलित क्षेत्रीय विकास को भी बढ़ावा देगा।
  • यदि भारत का लक्ष्य विश्व स्तरीय बुनियादी अवसंरचना की स्थिति प्राप्त करना है, तो कई चीज़ें हैं जिन पर ध्यान देने और प्रोत्साहन दिये जाने की आवश्यकता है जैसे कि अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये उद्योग एवं शिक्षा साझेदारी को प्रोत्साहन दिया जाना।
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