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स्टार्स परियोजना: संभावनाएँ और चुनौतियाँ

  • 03 Nov 2020
  • 16 min read

संदर्भ:

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्टार्स परियोजना (Strengthening Teaching-Learning and Results for States- STARS Project) को अपनी मंज़ूरी दी है। इस परियोजना का उद्देश्य स्कूली शिक्षा का संचालन में सुधार के साथ राष्ट्रीय स्तर पर डेटा, मूल्यांकन और शिक्षण प्रणाली तथा सीखने के परिणाम में आवश्यक सुधार करना है। इस परियोजना को शुरूआती स्तर पर देश के 6 राज्यों में लागू किया जाएगा और इन राज्यों में योजना के क्रियान्वयन के अनुभवों के आधार पर इसे देश के अन्य राज्यों में विस्तारित किया जाएगा। 

प्रमुख बिंदु: 

  • केंद्रीय कैबिनेट द्वारा अगले पाँच वर्षों के दौरान देश की स्कूली शिक्षा में प्रणालीगत परिवर्तन लाने के लिये इस परियोजना को मंज़ूरी दी गई है।    
  • इस परियोजना के लिये कुल लागत की 15% वित्तीय सहायता विश्व बैंक द्वारा प्रदान की जाएगी, जबकि 53% लागत का वहन केंद्र सरकार द्वारा और शेष लागत का वहन राज्य सरकारों द्वारा किया जाएगा। 
  • स्टार्स परियोजना की कुल लागत 5,718 करोड़ रुपए बताई गई है, इसमें से लगभग 3700 करोड़ रुपए (500 मिलियन अमेरिकी डॉलर) विश्व बैंक (World Bank) द्वारा सहायता राशि के रूप प्रदान की जाएगी। 
  • इस योजना में सार्वजनिक निजी भागीदारी (Public–Private Partnership or PPP) के तहत गैर-सरकारी संस्थाओं को भी शामिल किया जाएगा।
  • इस परियोजना के तहत अध्यापकों के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाएगा जिससे अच्छे शिक्षक तैयार किये जा सकें।
  • साथ ही आकलन और मूल्यांकन की प्रणाली में भी बड़े सुधार किये जाएंगे।

राज्यों का चयन 

  • इस परियोजना को शुरूआती रूप में देश के 6 राज्यों में लागू किया जाएगा जिनका चुनाव केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय (पूर्व में मानव संसाधन विकास मंत्रालय) द्वारा ‘परफॉरमेंस ग्रेडिंग इंडेक्स’ (Performance Grading Index- PGI) पर उनके प्रदर्शन के आधार पर किया गया है।
    • इनमें से तीन राज्यों को लाइट हाउस राज्य (Lighthouse States) कहा जो अन्य राज्यों का मार्गदर्शन करेंगे, इस श्रेणी में केरल राजस्थान और हिमाचल प्रदेश को शामिल किया गया है।
    • साथ ही अन्य तीन राज्यों को लर्निंग राज्य (Learning States) कहा गया है और इन राज्यों से अपेक्षा की गई है कि ये लाइटहॉउस राज्यों का अनुशरण करेंगे, इस सूची में ओडिशा, मध्यप्रदेश तथा महाराष्ट्र को शामिल किया गया है। 
  • इन 6 राज्यों में इस परियोजना को पायलट बेसिस पर संचालित किया जाएगा, स्कूली शिक्षा के संदर्भ में इस पहल को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का लॉन्च वेहिकल (Launch Vehicle) भी कहा जा रहा है।  

आवश्यकता: 

  • वर्तमान में भारतीय स्कूली शिक्षा प्रणाली की चुनौतियों को बड़े पैमाने पर चार प्रमुख भागों में बाँटा जा  सकता है-
    • पहुँच (Access)
    • निष्पक्षता (Equity)
    • संचालन (Governance)
    • शिक्षा की गुणवत्ता (Quality of Education)  
  • शिक्षा की पहुँच के मामले में वर्ष 2001 के ‘सर्व शिक्षा अभियान(Sarva Shiksha Abhiyan- SSA)   और इसके बाद समग्र शिक्षा योजना के माध्यम से इस क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि देखने को मिली है।   
  • इसी प्रकार समाज के हर वर्ग के लिये शिक्षा की पहुँच में निष्पक्षता सुनिश्चित करने की दिशा में भी व्यापक सुधार देखने को मिला है।      
  • परंतु वर्तमान में भी देश में शिक्षा की गुणवत्ता और इसके संचालन एवं प्रबंधन के क्षेत्र में कई बड़े सुधारों की आवश्यकता है।
  • असर रिपोर्ट 2019 के अनुसार, देश के विभिन्न हिस्सों में एक ही कक्षा में नामांकित बच्चों की आयु में भारी अंतर के साथ कक्षा-3 तक के बच्चों में अक्षर ज्ञान की अनभिज्ञता देखी गई।    
  • ग़ौरतलब है कि ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ में भी भारत की स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता पर चिंता व्यक्त की गई है।

अध्यापकों के लिए शिक्षा (Teacher Education- TE):

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भी भारत में शिक्षकों की शिक्षा और प्रशिक्षण में व्याप्त कमियों को रेखांकित किया गया है। 
  • अध्यापक शिक्षा के मुद्दे पर केंद्र सरकार द्वारा ‘अमिताभ कांत समिति’ (Amitabh Kant Comittee) का गठन किया गया है, देश में शिक्षकों के प्रशिक्षण पर यह समिति शीघ्र ही अपना अनुमोदन प्रस्तुत करेगी। अध्यापक शिक्षा के संदर्भ में समिति के अनुमोदन ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ में प्रस्तावित सुधारों के अनुरूप ही होगा।

‘अमिताभ कांत समिति’ (Amitabh Kant Committee): 

  • केंद्र सरकार द्वारा अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में आवश्यक सुधारों के क्रियान्वयन हेतु नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है।  
  • इस समिति में 6 से अधिक शिक्षाविदों के अतिरिक्त केंद्रीय स्कूल शिक्षा सचिव और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के अध्यक्ष भी शामिल हैं।  
  • इस समिति को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के साथ अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में पूर्व की समितियों के सुझावों को लागू करने में आने वाली प्रशासनिक चुनौतियों के समाधान के विकल्प प्रस्तुत करने का कार्य दिया गया है।  

मूल्यांकन:  

  • इस परियोजना के तहत ‘परख’ (Performance Assessment, Review, and Analysis of Knowledge for Holistic Development- PARAKH) नामक ‘राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र’ (National Assessment Centre) की स्थापना की जाएगी। 
  • हाल के वर्षों में कई उच्च शिक्षण संस्थानों के कुछ पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिये न्यूनतम 100% प्राप्तांक की सीमा के निर्धारण के बाद देश के विभिन्न संस्थानों में मूल्यांकन प्रणाली पर प्रश्न उठने लगे हैं।          

गौरतलब है कि इससे पहले वर्ष 1952-53 में बने माध्यमिक शिक्षा आयोग (मुदालियर आयोग) द्वारा देश के सभी राज्य से जुड़े शिक्षा बोर्डों को एक साथ लाकर ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ के समान ही स्कूल बोर्डों के लिये एक संविधिक निकाय की स्थापना करने का सुझाव दिया गया था, हालाँकि इस योजना पर कोई विशेष प्रगति नहीं हुई। 

प्रारंभिक शिक्षा: 

  • शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिये ‘प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा’ (Early Childhood Care and Education- ECCE) को मज़बूत करना बहुत ही आवश्यक है। 
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भी ECCE को मज़बूत करने की दिशा कई महत्त्वपूर्ण सुधार प्रास्तवित किये गए हैं और ‘स्टार्स परियोजना’ के तहत भी इसपर विशेष बल दिया गया है। 
  • पूर्व के अध्ययनों से पता चलता है कि यदि किसी बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा में 1 रुपए का निवेश किया जाता है तो आगे की कक्षाओं में उसमें इसका 10 गुना लाभ देखने को मिलता है।

कार्यान्वयन:

  • स्टार्स परियोजना को राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर दो घटकों में विभाजित किया गया है। 
    • राष्ट्रीय घटक: शिक्षण मूल्‍यांकन प्रणालियों को मजबूत बनाने, 'राज्‍य प्रोत्साहन अनुदान' (State Incentive Grants- SIG) के माध्यम से राज्‍यों के शासन सुधार एजेंडा को प्रोत्साहन देकर राज्‍यों के 'परफॉरमेंस ग्रेडिंग इंडेक्स' (PGI) स्कोर में सुधार लाने और राष्ट्रीय आकलन केंद्र (परख) की स्थापना में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की सहायता करना।
  • परख एक स्वायत्त निकाय होगा जो विभिन्न प्रकार के आकलन और मूल्यांकन का कार्य करेगा, इसके तहत स्कूल बोर्ड, राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS) आदि के कार्य संपन्न किये जाएंगे। 
    • इस परियोजना के राष्ट्रीय घटक के तहत एक आकस्मिकता आपातकालीन प्रतिक्रिया घटक (Contingency Emergency Response Component- CERC) को शामिल किया गया है, जो इस किसी प्राकृतिक, मानव निर्मित और स्‍वास्‍थ्‍य आपदा की स्थिति में अधिक उत्तरदायी बनाता है।  
    • राज्य स्तरीय घटक: राज्य स्तरीय घटक को पाँच भागों में विभाजित किया गया है, इसमें ECCE और मूलभूत शिक्षा को मज़बूत बनाने, शिक्षण आकलन प्रणालियों में सुधार, शिक्षक विकास और स्कूल नेतृत्व के माध्यम से कक्षा में निर्देश प्रणाली और उपशमन को मज़बूत करना आदि को शामिल किया गया है, साथ ही इसके तहत ग्राम शिक्षा समितियों, स्कूल प्रबंधन समितियों और स्कूल प्रबंधन समितियों, ज़िला शिक्षण प्रशिक्षण संस्थानों (DIET), राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (SCERT), ब्लॉक संसाधन समन्वयक (BRC) आदि को मज़बूत करने की बात कही गई है।
  •  इस परियोजना के तहत चयनित राज्यों पर ये घटक थोपे नहीं जाएंगे बल्कि उन्हें इनके निर्धारण में पर्याप्त स्वायत्तता दी जाएगी। 
  • इस परियोजना के तहत राष्ट्रीय और राज्य घटकों के समन्वय के लिये एक केंद्रीय शिक्षा सचिव की अध्यक्षता में एक संचालन समिति (Steering Committee) का भी गठन किया गया है। यह समिति वार्षिक और अर्द्धवार्षिक बैठकों के माध्यम से परियोजना के कार्यान्वयन की समीक्षा करेगी।  

चुनौतियाँ:     

  • गौरतलब है कि वर्तमान में भी देश में बड़ी संख्या में ऐसे स्वचालित संस्थान सक्रिय हैं जिन्हें उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्ष 2012 में गठित जस्टिस वर्मा आयोग द्वारा ‘डिग्री बेचने वाली दुकान’ की संज्ञा दी गई थी।   
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के तहत प्रस्तावित ‘परख’ की विशेषज्ञता के बारे में संशय बना हुआ है, उदाहरण के लिये क्या इस निकाय के पास मूल्यांकन की विशेषज्ञता होगी या इसके पास शिक्षा के वित्तीय प्रबंधन अथवा अध्यापक शिक्षा की विशेषज्ञता।    
  • स्टार्स परियोजना के तहत देश की शिक्षा प्रणाली में बड़े बदलावों की बात कही गई है परंतु वर्तमान में COVID-19 महामारी के कारण शिक्षा के साथ अन्य क्षेत्रों में हुई क्षति के बीच अगले पाँच वर्षों के दौरान इस सुधारों को सफलता से लागू कर पाना एक बड़ी चुनौती होगी।   
  • स्टार्स परियोजना और राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के समान लक्ष्य होने के बावज़ूद भी इनमें कुछ मतभेद देखने को मिलता है,
    • उदाहरण के लिये NEP-2020 के तहत वर्ष 2030 तक कक्षा-5 तक के बच्चों को  मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया है जबकि स्टार्स परियोजना के तहत इस कक्षा-3 तक ही सीमित रखा गया है। 

आगे की राह: 

  • देश में प्राथमिक शिक्षण प्रणाली में अपेक्षित सुधार के लिये स्टार्स परियोजना के लक्ष्य को अधिगम परिणाम पर अधिक केंद्रित होना बहुत ही आवश्यक है। 
  • इस परियोजना के तहत राष्ट्रीय और राज्य घटकों के समन्वय के लिये एक केंद्रीय शिक्षा सचिव की अध्यक्षता में एक संचालन समिति (Steering Committee) का भी गठन किया गया है। यह समिति वार्षिक और अर्द्धवार्षिक बैठकों के माध्यम से परियोजना के कार्यान्वयन की समीक्षा करेगी।                 

अभ्यास प्रश्न: स्टार्स परियोजना का संक्षिप्त परिचय देते हुए वर्तमान में भारतीय शिक्षा प्रणाली की प्रमुख चुनौतियों को रेखांकित कीजिये तथा इस चुनौतियों के निवारण में स्टार्स परियोजना की भूमिका की समीक्षा कीजिये।

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