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देश-देशांतर: मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (अनुबंध कृषि) अधिनियम

  • 25 May 2018
  • 17 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि 

किसानों की आय बढ़ाने और उपज की बेहतर कीमत दिलाने के लिये केंद्र सरकार ने कांट्रैक्ट फार्मिंग पर मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग अधिनियम, 2018 को स्वीकृति दे दी है और इसका मसौदा जारी कर दिया है। 

  • इसमें केवल खेती ही नहीं बल्किडेयरी, पोल्ट्री और पशुपालन को भी शामिल किया गया है। 
  • इसके तहत किसान अपनी फसलों को बेचने के लिये निजी कंपनियों से अनुबंध कर सकेंगे। विवाद निपटारे के लिये व्यवस्था होगी और खेती का बीमा भी होगा।
  • इस मसौदे में जहाँ किसानों के हितों की रक्षा पर बल दिया गया है, वहीं कंपनियों के लिये भी नियम उदार बनाने पर ज़ोर दिया गया है। 
  • राज्यों को अपनी सुविधानुसार प्रावधानों में संशोधन करने की छूट दी गई है, लेकिन कानून में किसानों के हितों के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकेगा।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग क्या है?

  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग खरीदार और किसानों के मध्य हुआ एक ऐसा समझौता है, जिसमें इसके तहत किये जाने वाले कृषि उत्पादन की प्रमुख शर्तों को परिभाषित किया जाता है। 
  • इसमें कृषि उत्पादों के उत्पादन और विपणन के लिये कुछ मानक स्थापित किये जाते हैं। 
  • इसके तहत किसान किसी विशेष कृषि उत्पाद की उपयुक्त मात्रा खरीदारों को देने के लिये सहमति व्यक्त करते हैं और खरीदार उस उत्पाद को खरीदने के लिये अपनी स्वीकृति देता है। 
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत, खरीदार (जैसे-खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ और निर्यातक) और उत्पादक (किसान या किसान संगठन) के बीच हुए फसल-पूर्व समझौते के आधार पर कृषि उत्पादन (पशुधन और मुर्गीपालन सहित) किया जाता है। 

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की ज़रूरत क्यों?

  • प्रायः देखने में आता है कि पर्याप्त खरीदार न मिलने पर किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाता। इसका सबसे बड़ा कारण होता है किसान और बाज़ार के बीच तालमेल की कमी। 
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की ज़रूरत इसीलिये महसूस की गई, ताकि किसानों को भी उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिल सके।
  • फसल उत्पाद के लिये तयशुदा बाज़ार तैयार करना कॉन्ट्रैक्ट खेती का प्रमुख उद्देश्य है। 
  • कृषि के क्षेत्र में पूंजी निवेश को बढ़ावा देना भी कॉन्ट्रैक्ट खेती का उद्देश्य है। इससे कृषि उत्पाद के कारोबार में लगी कई कॉर्पोरेट कंपनियों को कृषि प्रणाली को सुविधाजनक बनाने में आसानी रहती है और उन्हें अपनी पसंद का कच्चा माल, तय समय और कम कीमत पर मिल जाता है।
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत किसानों को बीज, ऋण, उर्वरक, मशीनरी और तकनीकी सलाह सुलभ कराई जा सकती है, ताकि उनकी उपज कंपनियों की आवश्यकताओं के अनुरूप हो सके। 
  • इसमें कोई भी बिचौलिया शामिल नहीं होगा और किसानों को कंपनियों की ओर से पूर्व निर्धारित बिक्री मूल्य मिलेंगे। 
  • इस तरह के अनुबंध से किसानों के लिये बाजार में उनकी उपज की मांग एवं इसके मूल्यों में उतार-चढ़ाव का जोखिम कम हो जाता है और इसी तरह कंपनियों के लिये कच्चे माल की अनुपलब्धता का जोखिम घट जाता है।

अभी क्या है स्थिति?

  • वर्तमान में देश के अधिकांश राज्यों में एपीएमसी प्रणाली लागू है, जिसके तहत किसानों से सीधे फसल खरीदने के बजाय कंपनियों या व्यवसाइयों को कृषि या फल मंडी में आना पड़ता है। 
  • कांट्रैक्ट फार्मिंग भारत के लिये नई नहीं है, लेकिन यह देश के सीमित हिस्सों में ही प्रचलित रही है।
  • मॉडल एपीएमसी अधिनियम, 2003 के तहत राज्यों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से संबंधित कानूनों को लागू करने संबंधी अधिकार दिये जाते है।
  • 22 राज्यों ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को सह-विकल्प के रूप में अपनाया है। हालाँकि, इसके दायरे में आ सकने वाली उपज के प्रकार के साथ-साथ उन शर्तों के बारे में भी कोई एकरूपता या समरूपता नहीं है, जिनके तहत कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की अनुमति दी जानी चाहिये।

पंजाब में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर अलग से एक कानून बनाया गया है, वहाँ 2013 में द पंजाब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट बनाया गया था। इस कानून के आधार पर कृषि आधारित उत्पाद तैयार करने वाली कंपनियाँ सीधे किसानों से अपने लिये फसल उत्पादन करने का समझौता कर सकती हैं। किसानों द्वारा उपजाई गई फसल को कंपनियाँ सीधे खरीद सकती हैं। पंजाब में पिछले 15 वर्षों से भी अधिक समय से कॉर्पोरेट कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग हो रही है और वहाँ टमाटर, आलू, मूंगफली एवं मिर्च के मामले में पेप्सिको इंडिया से किस्सनों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिल रहा है। इसी प्रकार मध्य प्रदेश में कुसुम, आंध्र प्रदेश में पाम ऑयल एवं संकर बीज के लिये किसानों बेहतर मूल्य प्राप्त हो रहा है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

प्रतावित कानून के प्रमुख बिंदु

सका मुख्य उद्देश्य फलों और सब्जियों का उत्पादन करने वाले किसानों को कृषि प्रसंस्करण इकाइयों से सीधे तौर पर (बिचौलियों के बिना) एकीकृत करना है, ताकि उन्हें बेहतर मूल्य मिल सकें और इसके साथ ही फसल की कटाई के बाद होने वाले नुकसान को भी कम किया जा सके।

  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के उत्पादों के मूल्य निर्धारण में पूर्व, वर्तमान और आगामी उपज को करार में शामिल किया जाएगा।
  • किसान और संबंधित कंपनी के बीच होने वाले करार में प्रशासन तीसरा पक्ष होगा। 
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में भूमि पर कोई स्थायी निर्माण करना संभव नहीं होगा। 
  • छोटे व सीमांत किसानों को एकजुट करने को किसान उत्पादक संगठनों, कंपनियों को प्रोत्साहित किया जाएगा।
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से संबंधित विवादों के त्वरित निपटान के लिये सुगम और सामान्य विवाद निपटान तंत्र का गठन किया जाएगा। 
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के उत्पादों पर फसल बीमा के प्रावधान लागू किये जाएंगे। 
  • उत्पादन में सुधार हेतु सहायता करने के बहाने खरीदार उत्पादक की भूमि पर किसी भी प्रकार की स्थायी संरचना का निर्माण नहीं कर सकेगा। 
  • यह प्रस्तावित कानून किसानों के लिये कुशल बाजार संरचना तैयार करने और विपणन दक्षता बढ़ाने में मदद करेगा तथा उत्पादन में विविधता से जुड़े जोखिम को भी कम करेगा।
  • यह सभी वस्तुओं के लिये मूल्य श्रृंखला (Value Chain) का निर्माण करने में भी सहायक होगा।
  • नीति आयोग द्वारा तैयार किये गए इस प्रस्तावित कानून में सभी कृषि जिंसों को शामिल किया जाएगा। 

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से क्या होंगे लाभ?

  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में कृषि उत्पाद और खाद्य प्रसंस्करण फर्मों से उत्पादक को होने वाले लाभ को देखा जाता है। 
  • यह छोटे स्तर के किसानों को प्रतिस्पर्धी बना देता है। इसमें आने वाली लागत को कम करने के लिये छोटे किसान तकनीकी, ऋण, विज्ञापन चैनलों और सूचना प्रणालियों की सहायता लेते हैं।
  • इस प्रकार उनके उत्पाद के लिये उन्हें आसानी से बाज़ार मिल जाता है, जिससे बाज़ार में जाकर किये जाने वाले लेन-देनों और अनावश्यक खर्चों में कमी आती है।
  • इससे उनकी उपज की गुणवत्ता बनी रहती है।
  • कृषि प्रसंस्करण स्तरों के मामले में यह कृषि उत्पाद की निरंतर आपूर्ति को सुनिश्चित करता है और इसकी लागत भी कम होती है।
  • कृषि उत्पाद के लिये मूल्य का निर्धारण उत्पादक और फर्मों के मध्य वार्ता द्वारा किया जाता है।
  • किसान नियमों और शर्तों के तहत निर्धारित मूल्यों के साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में प्रवेश करते हैं।
  • अनुबंध में वर्णित शर्तों एवं प्रावधानों के अनुसार, उत्पादक द्वारा एक विशिष्ट कीमत पर कृषि उत्पादों को भविष्य में कभी भी खरीदार को बेचा जा सकता है। 
  • उत्पादक बाज़ार मूल्य और मांग में उतार-चढ़ाव के जोखिम को कम कर सकने में सक्षम होते हैं|
  • खरीदार भी गुणवत्तायुक्त उत्पादन की अनुपलब्धता के जोखिम को कम कर सकने की स्थिति में होते हैं।
  • उत्पादन करने वाला इनपुट (जैसे-प्रौद्योगिकी, फसल-पूर्व और फसल-पश्चात् के बुनियादी ढाँचे के रूप में) के माध्यम से उत्पादन में सुधार के लिये खरीदार से सहायता प्राप्त कर सकता है। 

क्या हो सकती हैं संभावित चुनौतियाँ?

  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की आलोचना प्रायः यह कहकर की जाती है कि यह फर्मों और बड़े किसानों के पक्ष में होती है और छोटे किसानों की क्षमता को नज़रंदाज़ कर देती है।
  • इसके लिये किये गए समझौते अक्सर अनौपचारिक होते हैं, यहाँ तक कि लिखित अनुबंधों को भी अदालतों में लंबे समय तक खींचा जाता है। 
  • इसमें खरीदार एक होता है, जबकि विक्रेता अनेक।
  • पुरुषों की तुलना में महिलाओं की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में भागीदारी अपेक्षाकृत कम है, जो समावेशी विकास के सिद्धांत के प्रतिकूल है।
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में किसानों के समक्ष समय पर भुगतान की समस्या, कंपनियों और किसानों के बीच विवाद, किसानों का शोषण आदि जैसी चुनौतियाँ भी देखने को मिल सकती हैं। 
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से प्राकृतिक संसाधनों के अतिदोहन की आशंका बनी रहती है। 
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग समवर्ती सूची का विषय है, जबकि कृषि राज्य सूची का विषय। ऐसी स्थिति में राजस्व की हानि के भय से सभी राज्यों को इसके लिये सहमत कर पाना भी एक बड़ी चुनौती हो सकती है।

शिकायत निवारण तंत्र की व्यवस्था 

वर्तमान में मौजूद कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की संरचना के साथ विभिन्न प्रकार की समस्याएँ हैं, जिनके विषय में विशेष रुप से ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। इस प्रस्तावित अधिनियम में इन समस्याओं के निराकरण के व्यापक प्रावधान किये गए हैं| ऐसी किसी भी स्थिति का सामना करने के लिये ब्लॉक, ज़िला या क्षेत्रीय स्तर पर विवाद निवारण तंत्र की स्थापना की जा सकती है। राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट विवाद निपटान अधिकारी के पास विवाद निपटारे के लिये जा सकते हैं। विवाद निपटान अधिकारी के फैसले से संतुष्ट नहीं होने पर प्रत्येक राज्य में स्थापित अनुबंध कृषि (संवर्द्धन और सुविधा) प्राधिकरण [Contract Farming (Promotion and Facilitation) Authority] से अपील कर सकते हैं।

(टीम दृष्टि इनपुट)

भारतीय किसानों के लिये कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का महत्त्व

  • भारत में 80% किसान छोटे व सीमांत हैं अर्थात् उनके पास एक एकड़ से भी कम भूमि है। लिहाजा जोत का आकार छोटा होने के कारण उत्पादन लागत बढ़ जाती है और उन्हें फसल का समुचित मूल्य नहीं मिल पाता है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में छोटे-छोटे किसान मिलकर काम करते हैं, जिससे जोत का आकार काफी बढ़ जाता है।
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में किसानों और निजी खरीदारों के बीच उत्पादन की खरीद, प्राप्ति और शर्तें पहले से ही सुनिश्चित होती हैं, जिससे किसानों को उनकी उपज का समुचित मूल्य प्राप्त होता है।
  • कृषि के क्षेत्र में निजी भागीदारी बढ़ती है, जिससे कृषि में निवेश बढ़ता है, अवसरंचना विकास को गति मिलती है और नवोन्मेषी तकनीकों का प्रयोग बढ़ता है।
  • किसानों की आय बढ़ने से ग्रामीण बेरोज़गारी की दर में भी कमी आएगी, विशेषकर मौसमी बेरोज़गारी दूर होगी क्योंकि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में वैज्ञानिक तरीकों से किसानों को सालभर फसल लेने को प्रोत्साहित किया जाएगा।
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कृषकों को निर्यात के माध्यम से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला से जोड़ती है।
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में उत्पादकों व क्रेताओं के बीच से बिचौलियों का उन्मूलन हो जाता है, विनियमन ढीला हो जाता है और विनियमन दक्षता में वृद्धि हो जाती है। इसका सम्मिलित परिणाम उपभोक्ता को लाभ के रूप में प्राप्त होता है।

निष्कर्ष: केंद्र सरकार का लक्ष्य 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करना है। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए विपणन और अन्य क्षेत्रों में सुधार किये जा रहे हैं। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग भी उन कई उपायों में से एक है, जो किसानों की आय बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं| भारत के किसानों की समस्याओं के निदान के लिये कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग सहायक हो सकती है। किसानों को उनकी पैदावार का न्यायसंगत मूल्य दिलाने व कृषि को लाभकारी व्यवसाय बनाने के लिये जहाँ सरकार को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग जैसे तरीकों का सधे हुए कदमों से प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है, तो वहीं ऐसी समुचित निगरानी व्यवस्था भी स्थापित करनी चाहिये जिससे किसानों के शोषण को रोका जा सके। इसीलिये कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को सुव्यवस्थित करने तथा इसे समस्त राज्यों में एक समान बनाने के लिये एक कानून का होना बेहद आवश्यक है। आशा की जा सकती है कि यह प्रस्तावित कानून इस दिशा में सकारात्मक और अच्छा कदम साबित होगा। लेकिन यह सावधानी बरतना भी उतना ही आवश्यक होगा कि हर हाल में कृषि किसानों के ही हाथों में रहनी चाहिये, को कॉर्पोरेट हाथों में नहीं। 

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