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भारत-विश्व

इनसाइट: अमेरिका-भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान (QUAD) और चीन का BRI प्रोजेक्ट

  • 23 Feb 2018
  • 18 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
चीन ने अपनी अति महत्त्वाकांक्षी वन बेल्ट-वन रोड (ओबोर-OBOR) परियोजना का नाम बदल कर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) कर दिया है। उसकी इस विस्तारवादी योजना के मद्देनज़र अमेरिका-भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान (क्वैड-QUAD) एक संयुक्त क्षेत्रीय बुनियादी ढाँचा योजना पर काम कर रहे हैं। 

'ऑस्ट्रेलियन फाइनेंशियल रिव्यू' अखबार के अनुसार यह तैयारी चीन की आक्रामक नीतियों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से की जा रही है। लेकिन यह अभी बेहद शुरुआती चरण में है और इसमें किसी प्रकार की परिपक्वता नहीं है। 

जापान के मुख्य कैबिनेट सचिव का कहना है कि उपरोक्त चारों देश उन मुद्दों पर बराबर चर्चा करते रहे हैं, जिनसे इनके सामूहिक हित जुड़े हैं। चीन की BRI परियोजना के जवाब में जापान अपनी फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक परियोजना को आगे बढ़ाना चाहता है और इसके लिये अपनी आधिकारिक विकास सहायता का इस्तेमाल करने को भी तैयार है। ऐसे में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को देखते हुए आने वाला समय सामरिक तौर पर महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।

अब क्यों आया चर्चा में?

  • ऑस्ट्रेलिया के अखबार ‘ऑस्ट्रेलियन फाइनेंशियल रिव्यू’ ने QUAD को लेकर जिस प्रमुखता से छापा है, उससे लगता है कि QUAD (चार देशों का गठबंधन) योजना को जल्द ही ज़मीन पर उतारा जा सकता है। 
  • अखबार में कहा गया है कि अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया-जापान-भारत एक संयुक्त क्षेत्रीय बुनियादी ढाँचा योजना बना रहे हैं, जो चीन के अरबों डॉलर के प्रोजेक्ट BRI का विकल्प होगी, लेकिन अभी इसका कोई स्पष्ट खाका सामने नहीं आया है। 
  • यह खबर एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी के हवाले से दी गई, जिसने स्वीकार किया कि ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल की अमेरिका यात्रा के दौरान दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों में इस मुद्दे पर 23 फरवरी को बात हुई। 
  • QUAD योजना को लेकर जापान के मुख्य कैबिनेट सचिव योशिहिदे सुगा का कहना है कि यह योजना चीन के BRI के विरोध में न होकर उसका एक विकल्प है। 
  • यदि अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया-जापान-भारत अपने साझा हितों पर नियमित रूप से चर्चा करते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि हम चीन के BRI का कोई जवाब तैयार कर रहे हैं। 

दूसरी ओर, चीन इस गठबंधन को नाटो का एशियाई संस्करण मानता है, जिसे उसके बढ़ते वैश्विक प्रभाव एवं महत्त्वाकांक्षा पर नियंत्रण लगाने के उद्देश्य से बनाया जा रहा है, जबकि चीन यह नहीं समझ पा रहा कि उसके अनियंत्रित विस्तारवाद को रोकने में सक्षम किसी वैकल्पिक शक्ति का अभाव भी इस तरह के गठबंधन के बनने का एक बड़ा कारण है।

QUAD के संभावित लाभ 

  • वस्तुस्थिति यह है कि क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर पिछले कुछ समय में इन चारों देशों के बीच आपसी समझ लगातार बढ़ी है। 
  • चीन की आक्रामक नीतियों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से की जा रही यह साझेदारी अभी बेहद शुरुआती चरण में है और इसमें किसी प्रकार की परिपक्वता नहीं है। 
  • माना जाता है कि धरातल पर उतरने के चार देशों की यह साझेदारी वैश्विक शक्ति समीकरण पर गहरा असर डाल सकती है।
  • ये चारों देश एक-दूसरे के हितों की रक्षा के साथ-साथ परस्पर समृद्धि में भी अपना योगदान दे सकते हैं। 
  • चीन की विस्तारवादी नीति इन चारों को प्रभावित करती है, इसलिये इनका एकजुट होना समय की ज़रूरत है। 
  • भारत ने चीन के BRI प्रोजेक्ट से अपनी सुरक्षा प्रभावित होने की बात शुरू में ही उठाई थी। 
  • चीन भले ही कहे कि उसकी इस परियोजना से भारत सहित क्षेत्र के सभी देश लाभ उठा सकते हैं, पर चीन के इरादे अब दुनिया में संदेह से ही देखे जाते हैं। 
  • ऐसे में एक ऐसी परियोजना का आकार लेना ज़रूरी है जो मध्य एशिया के तेल और गैस के भंडारों और पूर्वी यूरोप के बाजारों तक हमारी आसान पहुँच सुनिश्चित करे। 
  • इसके लिये फिलहाल दो ही रास्ते दिखते हैं--एक पाकिस्तान होकर और दूसरा ईरान होकर। पाकिस्तान का रास्ता चीन के कब्ज़े में है और ईरान के रास्ते के आड़े अमेरिका के उसके साथ बिगड़ते हुए संबंध आते हैं। 
  • अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया-जापान-भारत का चतुष्कोणीय गठबंधन पूर्ववर्ती एशिया-प्रशांत संकल्पना के स्थान पर हिंद-प्रशांत संकल्पना की बात करता है और इसी को मज़बूती देने के उद्देश्य से इसकी परिकल्पना की गई है।

यह चतुष्कोणीय गठबंधन इस सामरिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य उपस्थिति के बीच उस पर नियंत्रण रखने में महत्त्वपूर्ण साबित होगा। लेकिन यह भी स्वीकार करना होगा कि चीन का उद्भव एक वास्तविकता है, जिससे भारत को निपटना है। कूटनीति एक ऐसी कला है जो सही संतुलन पर निर्भर करती है और भारत को वह संतुलन बनाकर चलना होगा।

(टीम दृष्टि इनपुट)

क्या है बेल्ट रोड इनिशिएटिव (BRI)?
इस परियोजना की परिकल्पना 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने की थी। हालाँकि, चीन इससे इनकार करता है, लेकिन इसका प्रमुख उद्देश्य चीन द्वारा वैश्विक स्तर पर अपना भू-राजनीतिक प्रभुत्व कायम करना है।

  • BRI को 'सिल्क रोड इकॉनमिक बेल्ट’ और 21वीं सदी की सामुद्रिक सिल्क रोड के रूप में भी जाना जाता है। 
  • BRI पहल चीन द्वारा प्रस्तावित एक महत्त्वाकांक्षी आधारभूत ढाँचा विकास एवं संपर्क परियोजना है जिसका लक्ष्य चीन को सड़क, रेल एवं जलमार्गों के माध्यम से यूरोप, अफ्रीका और एशिया से जोड़ना है। 
  • यह कनेक्टिविटी पर केंद्रित चीन की एक रणनीति है, जिसके माध्यम से सड़कों, रेल, बंदरगाह, पाइपलाइनों और अन्य बुनियादी सुविधाओं को ज़मीन एवं समुद्र से होते हुए एशिया, यूरोप और अफ्रीका से जोड़ने की कल्पना की गई है। 
  • विश्व की 70% जनसंख्या तथा 75% ज्ञात ऊर्जा भंडारों को समेटने वाली यह परियोजना चीन के उत्पादन केंद्रों को वैश्विक बाज़ारों एवं प्राकृतिक संसाधन केंद्रों से जोड़ेगी।
  • BRI के तहत पहला रूट चीन से शुरू होकर रूस और ईरान होते हुए इराक तक ले जाने की योजना है।
  • इस योजना के तहत दूसरा रूट पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से श्रीलंका और इंडोनेशिया होकर इराक तक ले जाया जाना है।
  • इस योजना का प्रमुख उद्देश्य चीन को सड़क मार्ग के ज़रिये पड़ोसी देशों के अलावा यूरोप से जोड़ना है, ताकि वैश्विक कारोबार को बढ़ाया जा सके।
  • चीन से लेकर तुर्की तक सड़क संपर्क कायम करने के साथ ही कई देशों के बंदरगाहों को आपस में जोड़ने का लक्ष्य भी इस योजना में रखा गया है।
  • BRI के गलियारे यूरेशिया में प्रमुख पुलों, चीन-मंगोलिया-रूस, चीन-मध्य एवं पश्चिम एशिया, चीन-भारत-चीन प्रायद्वीप, चीन-पाकिस्तान, बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार से गुज़रेंगे।
  • सामुद्रिक रेशम मार्ग बेल्ट के गलियारों का सामुद्रिक प्रतिरूप है और उसमें प्रस्तावित बंदरगाह तथा अन्य तटवर्ती बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का नेटवर्क है, जो दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया से पूर्वी अफ्रीका तथा उत्तरी भूमध्य सागर में बनाए जाएंगे।
  • BRI वास्तव में चीन द्वारा परियोजना निर्यात करने का माध्यम है जिसके ज़रिये वह अपने विशाल विदेशी मुद्रा भण्डार का प्रयोग बंदरगाहों के विकास, औद्योगिक केंद्रों एवं विशेष आर्थिक क्षेत्रों के विकास के लिये कर वैश्विक शक्ति के रूप में उभरना चाहता है।

अमेरिका की मार्शल योजना से प्रेरित है QUAD
माना जाता है कि चार देशों की QUAD योजना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका द्वारा यूरोप के पुनर्निर्माण और विकास के लिये शुरू की गई मार्शल योजना से प्रेरित है। तब इस पहल का नाम अमेरिका के तत्कालीन राज्य सचिव जॉर्ज मार्शल के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना प्रमुख के रूप में सेवा दी थी।

  • यह योजना अमेरिका के गृह सचिव जॉर्ज मार्शल द्वारा जून 1947 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में दिये गए एक संबोधन के दौरान सामने आई थी, जिसे बाद में कांग्रेस ने यूरोपीय रिकवरी कार्यक्रम के रूप में मान्यता दे दी थी। 
  • मार्शल योजना द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप लगभग तबाह हो चुके यूरोपीय देशों की सहायता के लिये अमेरिका प्रायोजित कार्यक्रम के तौर पर लागू की गई थी। 
  • इस योजना का उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तबाह हो चुके अधिकांश यूरोप के पुनर्निर्माण में मदद करने के साथ पूरे यूरोप के लिये एक मज़बूत आर्थिक वातावरण बनाने में सहायता करना। 
  • इसके अलावा, तबाह हो चुके क्षेत्रों को फिर से बनाना, व्यापार अवरोधों को दूर करना, उद्योगों का आधुनिकीकरण करना, यूरोप को एक बार समृद्ध बनाना और साम्यवाद के प्रसार को रोकना भी मार्शल योजना के उद्देश्यों में शामिल था।
  • मार्शल योजना में अंतरराष्ट्रीय बाधाओं को कम करना, कई नियमों को समाप्त कर उत्पादकता, श्रमिक संघ सदस्यता में वृद्धि के साथ-साथ आधुनिक व्यावसायिक प्रक्रियाओं को अपनाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया था।
  • मार्शल योजना के तहत प्रमुख औद्योगिक शक्तियों को बड़ी राशि दी गई थी--यूरोपीय देशों के लिये 13 अरब डॉलर का सहयोग दिया गया, जिसने इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • धन का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता यूनाइटेड किंगडम था (26%), उसके बाद फ्राँस (18%) और पश्चिम जर्मनी (11%) का स्थान था। कुल 16 यूरोपीय देशों को योजना का लाभ प्राप्त हुआ।
  • मार्शल योजना के तहत सोवियत संघ को भी सहायता की पेशकश की गई थी, लेकिन उसने इसे लेने से इनकार कर दिया और पूर्वी ब्लॉक के पूर्वी जर्मनी, रोमानिया और पोलैंड जैसे देशों को मिलने वाले लाभ को भी अवरुद्ध कर दिया। 
  • अमेरिका ने एशिया में भी इसी प्रकार के समान सहायता कार्यक्रम चलाए, लेकिन वे मार्शल योजना का हिस्सा नहीं थे। 
  • तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने 3 अप्रैल, 1948 को मार्शल योजना पर हस्ताक्षर किये और यह उसी वर्ष 8 अप्रैल से चार वर्षों के लिये संचालन में रही तथा 1952 तक जारी रही।

(टीम दृष्टि इनपुट)

भारत की चिंता है BRI का चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा

  • चीन चाहता है कि भारत भी BRI का हिस्सा बने, लेकिन भारत इसे लेकर सावधानी बरत रहा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से गुज़रने वाला चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) भी BRI का ही हिस्सा है।
  • BRI में सीपीईसी को शामिल किये जाने के कारण भारत ने इसमें शामिल होने की सहमति नहीं दी। चूँकि सीपीईसी पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुज़र रहा है जिसे भारत अपना हिस्सा मानता है। 
  • ऐसे में BRI में शामिल होने का मतलब है कि भारत द्वारा इस क्षेत्र पर पाकिस्तान के अधिकार को सहमति प्रदान करना ।
  • 1962 के बाद से ही भारत-चीन संबंधों में प्रतिस्पर्द्धा की स्थिति रही है एवं चीन ने भारत को कमज़ोर करने एवं घेरने का हरसंभव प्रयास किया है। अतः चीन की अगुवाई में निर्मित इस परियोजना में शामिल होने के प्रति भारत आशंकित है। 
  • दूसरी ओर, इस परियोजना के खतरे को लेकर पाकिस्तान के एक अखबार का मानना है कि इसने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के अधिकांश क्षेत्रों पर अपना प्रभाव जमा लिया है तथा चीनी उद्यमों और संस्कृति की उसके समाज में गहराई तक पैठ बन गई है। 

निष्कर्ष: चीन के BRI का विकल्प मानी जा रही QUAD योजना अभी केवल वैचारिक स्तर पर है। चीन का BRI भी कोई बहुपक्षीय परियोजना नहीं है और न ही यह कोई बहुराष्ट्रीय फ्रेमवर्क या संस्थागत व्यवस्था है, बल्कि यह प्रस्तावित परियोजनाओं की एक श्रृंखला है। निस्संदेह यह चीन के विस्तारवादी रुख का प्रतीक है, जिसके तहत वह वैश्विक कारोबार पर अपना नियंत्रण स्थापित कर अपने भू-राजनीतिक प्रभाव को और बढ़ाना चाहता है। ऐसे में भारत का चिंतित होना स्वाभाविक है, क्योंकि उसके साथ भू-सीमा विवाद तो हैं ही, साथ में चीन ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ता जिसे भारत को परेशानी न होती हो। 

ऐसे में भारत को चीन के लिये एक नई रणनीति बनाने की आवश्यकता है, जिसमें न केवल आर्थिक रूपरेखा हो बल्कि पड़ोसी देशों के साथ संबंध बेहतर करने की भी रणनीति हो। भारत को अपनी क्षेत्रीय रणनीति पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है, साथ ही पड़ोस पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इसका लाभ भारत सार्क, बिम्सटेक, आसियान, एससीओ जैसे क्षेत्रीय संगठनों की मदद से उठा सकता है। इसके अलावा, भारत को उपमहाद्वीप में क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने के प्रयास करने चाहिये। बांग्लादेश, वियतनाम, इंडोनेशिया, फिलिपींस जैसे देश जो चीन के साथ बहुत सहज महसूस नहीं करते, उनके साथ मिलकर भारत को क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं का विकास करना चाहिये। ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान के साथ BRI के विकल्प पर मिलकर भारत का आगे बढ़ना चीन को यह संदेश पहुँचाने का एक सार्थक प्रयास है कि नए रास्तों की तलाश करना वह भी जानता है।

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