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संपादक की कलम से

दृष्टि द विज़न

सफल व्यक्तित्व का आधार: आत्मविश्वास

  • 09 Dec 2019

क्योंकि ज़रूरत से कम या ज़्यादा आत्मविश्वास घातक होता है.......

प्रिय पाठकों,

आपने देखा होगा कि कुछ लोग कोई भी काम पूरे आत्मविश्वास से करते हैं। आप उन्हें कोई भी चुनौती देंगे तो वे खुश होकर उसे स्वीकार करेंगे। कठिन-से-कठिन परिस्थिति में भी उन्हें घबराहट नहीं होती। ऐसे लोगों की पूरे जमाने पर धाक होती है। कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि दुनिया का इतिहास और कुछ नहीं है, वह सिर्फ उन मुट्ठी भर लोगों की कहानी है जिन्हें खुद पर यकीन था। दूसरी तरफ, आपका सामना ऐसे लोगों से भी हुआ होगा जो हमेशा आत्मविश्वास के अभाव से जूझते नज़र आते हैं। वे चाहते हैं कि वे हमेशा बने-बनाए रास्तों पर चलते रहें और उनके जीवन में किसी भी तरह के जोखिम का स्थान न हो। ऐसे लोगों के नाम इतिहास में दर्ज नहीं होते। कोई नहीं चाहता कि उसका व्यक्तित्व इसी तरह का आत्मविश्वास-रहित व्यक्तित्व हो।

दरअसल आत्मविश्वास का संबंध ‘स्व’ या "सेल्फ" की अवधारणा से है। ‘सेल्फ’ की धारणा मनोविज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण प्रसंग है जिसका सरल अर्थ है कि व्यक्ति की स्वयं अपने बारे में क्या राय है? सीधा-सा नियम है कि अगर व्यक्ति की अपने बारे में राय अत्यंत सकारात्मक होगी तो वह आत्मविश्वास से भरपूर रहेगा और अगर खुद उसकी राय अपने बारे में सकारात्मक नहीं होगी तो वह आत्मविश्वास की कमी से जूझेगा। इसलिये किसी भी व्यक्ति के आत्मविश्वास के स्तर को समझना हो तो उसके ‘सेल्फ कंसेप्ट’ या ‘सेल्फ इमेज’ को समझने की कोशिश करनी चाहिये।

ज्यादा महत्त्वपूर्ण सवाल यही है कि व्यक्ति की ‘सेल्फ’ की धारणा कैसे बनती है? इस संबंध में एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री चार्ल्स हटन कूले का एक अत्यंत रोचक कथन है- “मैं वह नहीं हूँ जो मैं समझता हूँ कि मैं हूँ, मैं वह भी नहीं हूँ जो तुम समझते हो कि मैं हूँ, मैं वह हूँ जो मैं समझता हूँ कि तुम समझते हो कि मैं हूँ।” (I am not who you think I am; I am not who I think I am; I am who I think you think I am)। इस भूल-भुलैया जैसे कथन का सरल अर्थ यह है कि मेरी अपने बारे में छवि या धारणा इस बात से तय नहीं होती कि मैं अपने बारे में क्या सोचता हूँ। वह इस बात से भी तय नहीं होती कि बाकी लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं क्योंकि मैं वस्तुनिष्ठ रूप से यह जान ही नहीं सकता कि कोई दूसरा व्यक्ति मेरे बारे में क्या सोचता है। अपनी नज़र में मेरी छवि इस आधार पर बनती है कि मुझे दूसरों की निगाह में अपने प्रति कैसा भाव नज़र आता है? अगर मुझे लगता है कि अधिकांश लोग मेरा सम्मान करते हैं तो मेरी नज़रों में भी मेरा सम्मान बढ़ जाएगा और यदि मुझे लगा कि अधिकांश लोग मुझे महत्त्व नहीं देते हैं तो धीरे-धीरे मैं भी खुद को महत्त्वहीन समझने लगूंगा और अल्प-आत्मविश्वास का शिकार हो जाऊंगा।

यहाँ दो और अवधारणाओं को समझने की ज़रूरत है जिन्हें ‘सिग्निफिकेंट अदर्स’ तथा ‘जनरलाइज़्ड अदर्स’ कहते हैं। इनसे पता चलता है कि व्यक्ति की ‘सेल्फ इमेज’ बनाने में किसी व्यक्ति का कितना योगदान होता है। गौरतलब है कि किसी भी व्यक्ति की निगाह में सभी संबंधित व्यक्तियों का बराबर महत्त्व नहीं होता। कुछ लोग उसके लिये बेहद खास होते हैं जिनकी नज़रों में गिरना वह बर्दाश्त नहीं कर सकता_ जिनकी नज़रों में उठने के लिये वह एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाने को तैयार रहता है। इन व्यक्तियों को ‘सिग्निफिकेंट अदर्स’ कहा जाता है। दूसरी ओर, तमाम ऐसे लोग भी हमारी जिंदगी का हिस्सा होते हैं जिनकी राय हमारे लिये महत्त्व नहीं रखती। हमें इस बात से फर्क ही नहीं पड़ता कि वे हमारे बारे में अच्छा सोचते हैं या बुरा। इन व्यक्तियों को ‘जनरलाइज़्ड अदर्स’ कहते हैं। कहने की ज़रूरत नहीं कि व्यक्ति के आत्मविश्वास का स्तर मोटे तौर पर इस बात से तय होता है कि ‘सिग्निफिकेंट अदर्स’ की उसके बारे में क्या धारणा है?

हमें दो प्रयास निरंतर करने चाहिये- पहला तो यह कि हम अपनी ‘सेल्फ इमेज’ को न बिगड़ने दें ताकि अति-आत्मविश्वास या अल्प-आत्मविश्वास हम पर हावी न हो और दूसरा यह कि जब कभी विकृत ‘सेल्फ इमेज’ से जूझ रहे व्यक्ति को देखें तो अपने स्तर पर थोड़ी-बहुत ऐसी कोशिश ज़रूर करें जिससे वह विकृति समाप्त या कम हो जाए। अल्प-आत्मविश्वास से जूझ रहे व्यक्ति की बार-बार प्रशंसा करें ताकि आपकी आँखों में अपना सम्मान देखकर उसे खुद पर भरोसा जमने लगे और अति-आत्मविश्वास से युक्त व्यक्ति को चोट पहुँचाए बिना थोड़ा-बहुत उन चुनौतियों का अहसास कराएँ जिनसे अभी तक उसका सामना नहीं हुआ है और इसी वजह से वह हवा में उड़ रहा है।

अपने आत्मविश्वास को सही स्तर पर बनाए रखना भी ज़रूरी है क्योंकि बिना आत्मविश्वास के कोई बड़ा काम संभव नहीं है। बस यह ध्यान रहे कि आत्मविश्वास ज़रूरत से ज्यादा न हो। इसका उपाय यह है कि कभी-कभी अपने से श्रेष्ठ व्यक्तियों से मिलते रहें, कुछ महान लोगों की जीवनियाँ पढ़ते रहें ताकि उनकी महानता की तुलना में अपनी लघुता का अहसास बना रहे। कभी-कभी अपने से कमतर व्यक्तियों के साथ भी तुलना करते रहना चाहिये (उन्हें बताए बिना) ताकि अपनी क्षमताओं पर भरोसा भी बना रहे। एक अच्छा उपाय यह भी है कि व्यक्ति ईमानदारी से अपनी डायरी लिखे जिसमें वह सहज होकर खुद से बात कर सके- अपनी कमज़ोरियाँ स्वीकार कर सके और अपनी उपलब्धियों पर इतरा भी सके।

एक छोटी-सी पर महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि व्यक्ति का आत्मविश्वास सभी क्षेत्रों में बराबर विभाजित नहीं होता। बहुत संभव है कि छोटे समूह में अपनी धाक जमाने वाला व्यक्ति बड़े समूह के सामने घबराहट का शिकार हो जाए या किसी खेल का चैम्पियन मानवीय संबंधों की दुनिया समझने के मामले में धूल चाटने लगे। किसी को किसी खास विषय पर आत्मविश्वास से भरा देखकर डरना नहीं चाहिये क्योंकि हो सकता है कि जिस क्षेत्र में आपके पास आत्मविश्वास है, उस क्षेत्र में वह आपके सामने पिद्दी साबित हो।

शुभकामनाओं सहित,

(डॉ विकास दिव्यकीर्ति)

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