मुख्य परीक्षा
महात्मा गांधी
- 05 Dec 2018
- 6 min read
केवल ईश्वर ही निरपेक्ष सत्य को जानता है, इसीलिये मैंने प्रायः कहा है कि सत्य ही ईश्वर है। इसका अर्थ हुआ कि मनुष्य, जो कि सीमित क्षमता वाला प्राणी है, निरपेक्ष सत्य को नहीं जान सकता!
मेरा निश्चित मत है कि निष्क्रिय प्रतिरोध कठोर-से-कठोर हृदय को भी पिघला सकता है। यह एक उत्तम और बड़ा ही कारगर उपचार है। यह परम शुद्ध शस्त्र है। यह दुर्बल मनुष्य का शस्त्र नहीं है। शारीरिक प्रतिरोध करने वाले की अपेक्षा निष्क्रिय प्रतिरोध करने वाले में कहीं ज्यादा साहस होना चाहिये!
मनुष्य सर्वशक्तिमान प्राणी नहीं है, इसलिये वह अपने पड़ोसी की सेवा करने में जगत की सेवा करता है। इस भावना का नाम स्वदेशी है। जो अपने निकट के लोगों की सेवा छोड़कर दूरवालों की सेवा करने या लेने को दौड़ता है, वह स्वदेशी का भंग करता है!
                    
                                        
                    
                      
                    
                 
             
     
                  
                 
  