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भगत सिंह

  • 04 Dec 2018
  • 1 min read
मैं इस बात पर जोर देता हूँ कि मैं महत्त्वाकांक्षा, आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूँ, पर मैं जरूरत पड़ने पर ये सब त्याग सकता हूँ, और यही सच्चा बलिदान है---
अहिंसा को आत्म-बल के सिद्धांत का समर्थन प्राप्त है जिसमें अंततः प्रतिद्वंद्वी पर जीत की आशा में कष्ट सहा जाता है, लेकिन तब क्या हो जब ये प्रयास अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असफल हो जाएं? तभी हमें आत्म-बल को शारीरिक बल से जोड़ने की जरूरत पड़ती है ताकि हम अत्याचारी और क्रूर दुश्मन के रहमोकरम पर निर्भर न रहें।

क्रांति की तलवार तो सिर्फ विचारों की शान पर ही तेज होती है!

जो भी व्यक्ति विकास के लिए खड़ा होगा उसे हर एक रुढि़वादी चीज को चुनौती देनी होगी तथा उसमें अविश्वास करना होगा!

मेरी कलम मेरी भावनाओं से इस कदर रूबरू है कि मैं जब भी इश्क लिखना चाहूँ तो हमेशा इन्कलाब लिखा जाता है!

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