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आर्थिक सर्वेक्षण Vol-II

भारतीय अर्थव्यवस्था

अध्याय-7 (Vol-2)

  • 26 Jun 2020
  • 24 min read

कृषि  एवं खाद्य प्रबंधन

प्रस्तावना: 

  • राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान वर्ष 2014-15 के 18.2% से गिरकर वर्ष 2019-20 में 16.5% हो गया है। 
  • यह प्रतिशत किसानों की आय को दोगुना करने के उद्देश्य को मूर्त रूप देने के लिये अपेक्षित है। 
  • लगभग 70% ग्रामीण जनता अपनी आजीविका के लिये मुख्यतः कृषि पर निर्भर रहती है, इसमें से 82% किसान लघु एवं सीमांत हैं। 
  • पिछले पाँच वर्षों में पशुधन क्षेत्र में लगभग 8% वार्षिक चक्र वृद्धि दर (CAGR) से वृद्धि हुई है, जिसके कारण इस क्षेत्र की आय, रोज़गार एवं पोषण संबंधी सुरक्षा में अहम भूमिका है। 
  • जुलाई 2013 से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के क्रियान्वयन से खाद्य सब्सिडी बिल वर्ष 2014-15 के 113171.2 करोड़ रुपए से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 171127.5 करोड़ रुपए हो गया है।

कृषि का सिहांवलोकन:

1. कृषि के सकल संवर्द्धित मूल्य में हिस्सा

  • देश में मौजूदा कीमतों पर सकल संवर्द्धित मूल्य में कृषि एवं सहायक क्षेत्रों का हिस्सा वर्ष वर्ष 2014-15 में 18.2% से गिरकर वर्ष 2019-20 में 16.5% हो गया है।
  • देश के कुल GVA में कृषि एवं सहायक क्षेत्रों का हिस्सा गैर-कृषि क्षेत्रों के अपेक्षाकृत उच्च विकास प्राप्ति के कारण कम हुआ है। 
  • यह विकास प्रक्रिया की प्राकृतिक उपलब्धि है जो अर्थव्यवस्था में होने वाले संरचनात्मक परिवर्तनों के फलस्वरूप गैर-कृषि क्षेत्रों में होने वाली त्वरित वृद्धि को बढ़ावा देती है।

2. कृषि एवं सहायक क्षेत्रों में वृद्धि-    

  • कृषि एवं सहायक क्षेत्रों की GVA के प्रदर्शन में उतार चढ़ाव देखे गए हैं।
  • कृषि, वानिकी एवं मत्स्य पालन क्षेत्र में वर्ष 2011-12 की स्थिर कीमतों पर वर्ष 2019-20 के GVA में वर्ष 2018-19 के 2.9% की तुलना में 2.8% वृद्धि का अनुमान है।

1. न्यूनतम समर्थन मूल्य:

  • सरकार द्वारा अधिक निवेश एवं उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये 22 आवश्यक फसलों के लिये ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (Minimum Support Prices (MSPs) तथा गन्ने के लिये उचित एवं मेहनताना मूल्य की घोषणा की है। 
  • केंद्रीय बजट 2018-19 में MSP को उत्पादन लागत से डेढ़ गुणा रखने के पूर्व निर्धारित सिद्धांत की घोषणा की गई है। 
  • इस घोषणा के अनुसार, सरकार द्वारा वर्ष 2018-19 सत्र के लिये संपूर्ण भारत में सभी आवश्यक खरीफ, रबी एवं अन्य वाणिज्यिक फसलों के लिये निर्धारित औसत लागत की डेढ़ गुणा आय के लिये MSP को बढ़ाया है।
  • इसके अतिरिक्त प्रत्यक्ष आय/निवेश समर्थित स्कीम आरंभ की गई है।

आय/निवेश समर्थित स्कीम:

  • उड़ीसा की आजीविका एवं आय बढ़ाने के लिये कृषक सहायता (KALIA): यह योजना उड़ीसा सरकार द्वारा वर्ष 2018-19 की रबी सत्र से राज्य में कृषि-संबंधी समृद्धता लाने एवं गरीबी उन्मूलन के लिये आरंभ की गई है।
  • झारखंड की मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना: इस योजना के अंतर्गत राज्य के सभी लघु एवं सीमांत किसानों जिनके पास अधिकतम 5 एकड़ कृषि योग्य भूमि है, को प्रति किसान प्रतिवर्ष 5000 रुपए की अनुदान सहायता दी जाएगी, जिससे उनकी ऋणों की निर्भरता में कमी आएगी।
  • तेलंगाना की रायथु बंधु योजना: तेलंगाना सरकार फसली सत्र से पूर्व प्रारंभिक निवेश के रूप में बीजों, खादों आदि जैसी विभिन्न आगतों की खरीद के लिये राज्य के सभी किसानों, पट्टेदारों को प्रति व्यक्ति प्रति एकड़ 4000 रुपए की दर से निवेश सहायता देने के लिये नई अवधारणा लेकर आई है। इस योजना को खरीफ वर्ष 2018 से क्रियान्वित किया जा रहा है।

कृषि का मशीनीकरण: 

  • मानव की कड़ी मज़दूरी एवं खेती की लागत को कम करने के अतिरिक्त अन्य आगतों एवं प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रयोग करके उत्पादकता में वृद्धि करने के लिये आधुनिक कृषि में कृषि मशीनीकरण आवश्यक आगत बनकर उभरी है।
  • कृषि विद्युत एवं कृषि उपज के बीच रेखीय संबंध होता है तथा सरकार ने कृषि विद्युत को 2.02 किलोवाट प्रति हेक्टेयर (2016-17) से बढ़ाकर वर्ष 2030 के अंत तक 4.0 किलोवाट प्रति हेक्टेयर करने का निर्णय लिया है ताकि खाद्यान्न की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके।
  • भारतीय ट्रेक्टर उघोग संसार का सबसे बड़ा उघोग है जो कुल वैश्विक उत्पादन का एक तिहाई है। पिछले चार दशकों में ट्रेक्टर उद्योग में 10% की वार्षिक चक्रवृद्धि दर से वृद्धि हुई है।
  • पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली संघ शासित क्षेत्रों में (2018-2019) फसल के इन-सीटू मैनेजमेंट के लिये किसी भूमिकरण को उन्नत्ति’ पर नई केंद्रीय क्षेत्र योजना के तहत व्यक्तिगत किसानों को 50% सब्सिडी के साथ कृषि मशीनों एवं उपकरण और कस्टम हाईरिंग केंद्रों की स्थापना के लिये 80% दी गई।

कृषि में फसलवार मशीनीकरण स्तर:

  • एक ही भूमि के टुकड़े से दूसरी फसल या बहु-फसल उगाकर, फसलों की गहनता में सुधार हुआ है जिसके चलते कृषि भूमि वाणिज्यिक दृष्टि से अधिक व्यवहार्य हुई है।
  • भारत में समग्र कृषि मशीनीकरण अमेरिका (95%) ब्राजील (75%) एवं चीन (57%) की तुलना में कम (40-45%) रहा है। 
  • भारत में ट्रैक्टर उत्पादन के महत्त्वपूर्ण हिस्से का भी निर्यात किया जाता है। भारत में औसत हर वर्ष 79000 ट्रेक्टरों का निर्यात किया जाता है। 
  • कृषि मशीनीकरण पर वर्ष 2018 में नाबार्ड के अध्ययन में यह पाया गया है कि छोटी जोतों, विद्युत अभिगम उधार लागत एवं प्रक्रिया, अबीमित बाज़ार एवं निम्न जागरुकता के कारण प्रचालन की किफायत भारत में कृषि कम मशीनीकरण की निम्न दर के महत्त्वपूर्ण कारण हैं।

सूक्ष्म सिंचाई:

  • सतत् कृषि व्यवहार को सुनिश्चित करने के लिये परिशुद्ध या सूक्ष्म सिंचाई (टपक एवं छिड़काव सिंचाई) के माध्यम से कृषि स्तर पर जल प्रयोग की दक्षता पर बल देना अनिवार्य हो गया है। 
  • 1 जुलाई, 2015 से जल आपूर्ति शृंखला अर्थात् जल स्रोत, वितरण नेटवर्क एवं कृषि स्तरीय अनुप्रयोग में अंतिम समाधान प्रदान करने के लिये ‘हर खेत को पानी’ के उद्देश्य के साथ ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना’ (PMKSY) प्रारंभ की गई। 
  • कृषि क्षेत्र में जल प्रयोग दक्षता पर बल देने के लिये देश में PMKSY के प्रति बूँद अधिक फसल संघटक वर्ष 2015-16 से कार्य कर रहे हैं।
  • सूक्ष्म सिंचाई में सरकारी एवं निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये नाबार्ड द्वारा 5000 करोड़ रुपए की प्रारंभिक आधारभूत निधि के अनुमोदन के साथ समर्पित सूक्ष्म सिंचाई निधि (MIF) सृजित की है।

कृषि ऋण: 

DAC-FW

  • वर्ष 2019-20 के लिये कृषि ऋण प्रवाह लक्ष्य 13,50,000 करोड़ रुपए निर्धारित किया गया है तथा 30 नवंबर, 2019 तक 9,07843.37 करोड़ रुपए का संवितरण हो चुका है। भारत में कृषि उधार का क्षेत्रीय वितरण अत्यंत विषम है।
  • पूर्वोत्तर एवं पूर्वी राज्यों में यह ऋण अत्यंत निम्न लगभग 1% से भी कम है। 

कृषि में जोखिम कम करना: फसल बीमा

  • देश में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना खरीफ वर्ष 2016 सत्र से क्रियान्वित हो चुकी है। जो प्राकृतिक अपरिहार्य जोखिमों के विरूद्ध बुवाई पूर्व से लेकर कटाई के बाद जोखिमों के प्रति व्यापक सुरक्षा प्रदान करती है।
  • इसमें किसानों द्वारा बहुत कम शेयर (खरीफ एवं रबी फसलों के बीमित राशि क्रमशः 2% एवं 1.5%) तथा वाणिज्यिक/बागवानी फसलों के लिये 5% अदा किया जाता है शेष प्रीमियम को केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा बराबर रूप में बाँटा जाता है।

कृषि व्यापार: 

  • विश्व कृषि व्यापार में भारत का योगदान लगभग 2.15% है। भारतीय कृषि निर्यात के मुख्य भागीदारों में संयुक्त राज्य अमेरिका, सऊदी अरब, ईरान, नेपाल और बांग्लादेश शामिल हैं। 
  • वर्ष 1991 से आर्थिक सुधारों की शुरुआत से भारत कृषि उत्पादों के निर्यात को निरंतर बनाए हुए है जिसने निर्यात द्वारा 2.7 लाख करोड़ रुपए के आँकड़े को प्राप्त कर लिया है तथा वर्ष 2018-19 में 1.37 लाख करोड़ रुपए का आयात किया है। 

कृषि-संबद्ध क्षेत्रः पशुपालन, डेयरी उघोग एवं मत्स्यपालन

  • कृषि के साथ पशुपालन, डेयरी उघोग एवं मत्स्य पालन मानव जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग बना हुआ है।
  • पिछले 5 वर्षों के दौरान पशुधन क्षेत्र 7.9% के चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है। भारत सरकार ने पाँच वर्षों 2019-2024 से 13,343 करोड़ रुपए के वित्तीय परिव्यय के साथ खुर एवं मुख रोग (FMD) और ब्रुसेलोसिस के नियंत्रण के लिये एक नई केंद्रीय योजना ‘राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम’ (NADCP) लाॅन्च की। यह योजना वर्ष 2025 तक टीकाकरण के साथ FMD पर पूर्ण नियंत्रण और वर्ष 2030 तक संभावित रूप से समाप्त करने की परिकल्पना करती है।
  • भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। वर्ष 2018-19 में दूध का कुल उत्पादन 187.7 मिलियन टन रहा जो पिछले वर्ष की तुलना में 6.5% अधिक है।
  • रोज़गार एवं बेरोज़गारी के संबंध में NSSO द्वारा किये गए 66वें राउंड के सर्वेक्षण (जुलाई 2009-जून 2010) के आधार पर 15.60 मिलियन कामगार पशुपालन, मिश्रित खेती तथा मछली पकड़ने संलग्न रहे हैं।

मत्स्यपालन क्षेत्र:

  • भारत में मत्स्यपालन खाद्य, पौष्टिकता, रोज़गार और आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
  • यह क्षेत्र आरंभिक स्तर पर लगभग 16 मिलियन मछुआरों एवं मत्स्यपालकों तथा इसकी मूल्य श्रृंखला में इसके लगभग दोगुने लोगों को आजीविका प्रदान करता है।
  • इस क्षेत्र की महत्ता को देखते हुए फरवरी- 2019 में एक अलग विभाग ‘मत्स्यपालन विभाग’ स्थापित किया गया है।
  • हाल के वर्षों में भारत में मछली उत्पादन की औसत वार्षिक वृद्धि दर 7% से अधिक देखी गई है। विश्व में भारत के अग्रणी समुद्री भोजन निर्यातक देशों में से एक बनने के साथ ही यह क्षेत्र विदेशी मुद्रा आय में योगदान करने वाला एक प्रमुख कारक बन चुका है।
  • वर्ष 2018-19 के दौरान समुद्री उत्पाद का निर्यात 13,92,559 मीट्रिक टन था और इसका मूल्य 46,589 करोड़ रुपए था। संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया क्रमशः 34.81% और 22.67% की हिस्सेदारी के साथ भारत के समुद्री भोजन उत्पाद के प्रमुख निर्यात बाज़ार हैं। 

मत्स्य एवं एक्वाकल्चर की आधारभूत संरचना के लिये विकास निधि (FIDF):

  • मत्स्य पालन के बुनियादी ढाँचे के अंतर को दूर करने के लिये भारत सरकार ने 7522.48 करोड़ रुपए की कुल निधि से वर्ष 2018-19 के दौरान ‘मत्स्य और एक्वाकल्चर की आधारभूत संरचना के लिये विकास निधि’ (FIDF) स्थापित की है।
  • FIDF द्वारा प्रदान की गई बुनियादी ढाँचागत सुविधाओं के विकास के लिये राज्य सरकार/संघ राज्य क्षेत्र और राज्य इकाइयों सहित पात्र इकाइयों के लिये रियायती वित्त/ऋण उपलब्ध करवाया जाता है।
  • FIDF के तहत यह रियायती वित्त नोडल ऋण प्रदाता इकाइयों नामतः 1. नाबार्ड, 2. राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) 3. सभी अनुसूचित बैंक के माध्यम से उपलब्ध करवाया जाता है। 

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र: 

  • उच्च स्तर के प्रसंस्करण के साथ भली-भाँति विकसित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र अपशिष्ट में कमी करता है, बेहतर मूल्य संवर्द्धन में सहायता करता है, किसानों को उत्तम लाभ सुनिश्चित करता है साथ ही निर्यात से आयात में बढ़ोत्तरी सुनिश्चित करता है।
  • वर्ष 2017-18 में समाप्त होने वाले पिछले 6 वर्षों के दौरान खाद्य प्रसंस्करण उद्योग क्षेत्र में लगभग 5.6% की औसत वार्षिक दर से वृद्धि हुई है। इस क्षेत्र में वर्ष 2011-12 की तुलना में वर्ष 2017-18 में विनिर्माण एवं कृषि क्षेत्रों में क्रमशः GAV का प्रतिशत 8.83% और 10.66% तक बना रहा।
  • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में वृद्धि से कृषि-मूल्य शृंखला में प्रबल संबंध रखने वाले भागीदारों के लिये अवसर सृजित होने की संभावना है।
  • NSSO के 73वें दौर के अनुसार, गैर-पंजीकृत खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र 51.11 लाख कामगारों को रोज़गार प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है और गैर-पंजीकृत विनिर्माण क्षेत्र में यह 14.18 % रोज़गार उपलब्ध करवाता है।

प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY):

  • वर्ष 2016-20 की अवधि के लिये 6000 करोड़ रुपए के वित्तीय आवंटन के साथ, प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना पूरे मूल्य/आपूर्ति शृंखला के साथ मज़बूत आधुनिक बुनियादी ढाँचा तैयार करने के लिये अनुदान आधारित सहायता प्रदान कर रही है।
  • इसके माध्यम से कृषि उत्पाद के अपशिष्ट को कम करने, प्रसंस्करण स्तर में वृद्धि करने, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के निर्यात में बढ़ोत्तरी करने, किफायती मूल्य पर उपभोक्ताओं को स्वच्छ एवं पौष्टिक खाद्य पदार्थ उपलब्ध करवाने की उम्मीद की जाती है।

उर्वरक: 

  • उर्वरक विभाग द्वारा 25 मई, 2015 को ‘नई यूरिया नीति-2015’ अधिसूचित की गई। इसका उद्देश्य स्वदेशी यूरिया का उत्पादन बढ़ाना, यूरिया उत्पादन के क्षेत्र में ऊर्जा क्षमता का बढ़ावा देना और सरकार पर सब्सिडी के बोझ को युक्ति संगत बनाना है।
  • वर्ष 2015-16 के दौरान यूरिया का उत्पादन 244.75 लाख मीट्रिक टन रहा जो देश में अब तक के यूरिया उत्पादन से सबसे अधिक था।

उर्वरकोें में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) प्रणाली: 

  • भारत सरकार द्वारा अक्तूबर, 2016 से उर्वरकों में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) प्रणाली प्रारंभ की गयी है। 
  • उर्वरक प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) प्रणाली के अधीन विभिन्न उर्वरक श्रेणियों पर 100% सब्सिडी फुटकर व्यापारियों द्वारा लाभार्थियों के लिये की गई वास्तविक बिक्री मूल्य के आधार पर जारी की जाती है।

खाद्य प्रबंधन: 

  • खाद्य प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य किसानों से लाभकारी मूल्य पर खाघान्न प्राप्त करना, उपभोक्ताओं, विशेषकर समाज के कमज़ोर तबके के उपभोक्ताओं को सस्ते मूल्य पर खाघान्न वितरण और खाद्य सुरक्षा एवं मूल्य स्थिरता के लिये अधिक मात्रा में खाघान्न भंडार रखना है। 
  • खाघान्न प्राप्त करके भंडारण करने वाली नोडल एजेंसी भारतीय खाघ निगम (FCI) है।
  • खाघान्नों का वितरण मुख्यतः राष्ट्रीय खाघ सुरक्षा अधिनियम, 2013 और सरकार की अन्य कल्याणकारी योजनाओं के अधीन है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, जुलाई 2013 से लागू है जिसमें 75% तक ग्रामीण जनसंख्या और 50% तक शहरी जनसंख्या को ‘लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ के अधीन खाद्यान्न प्राप्त करने के लिये शामिल करने की व्यवस्था है ताकि देश की लगभग दो तिहाई जनसंख्या के प्रति कि.ग्रा क्रमशः 1/2/3 रु. की दर से पौष्टिक अनाज/गेहूँ/चावल प्राप्त हो सके।

केंद्रीय पूल के लिये खाघान्नों को स्टॉक करने संबंधी मानकः

  • भारत सरकार ने बफर/स्टॉक संबंधी मानकों को जनवरी, 2015 से संशोधित कर दिया गया है। बफर संबंधी मानकों का नाम बदलकर ‘खाघान्न स्टॉकिंग संबंधी मानक’ कर दिया गया है। 
  • इसका मुख्य उद्देश्य खाद्य सुरक्षा के लिये विहित न्यूनतम स्टॉक संबंधी मानकों को पूरा करना है।

एक राष्ट्र-एक राशन कार्ड:

  • खाद्य एवं लोक वितरण विभाग सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के सहयोग से वर्ष 2018-19 और 2019-20 के दौरान ‘लोक वितरण प्रणाली का समेकित प्रबंधन’ नाम से एक योजना का कार्यान्वयन कर रहा है। 
  • इस योजना का मुख्य उद्देश्य नया राशन कार्ड प्राप्त करने की ज़रूरत के बिना देश में किसी भी उचित मूल्य की दुकान (FPS) से उनके खाघान्नों की पात्रता बढ़ाने हेतु ‘एक राष्ट्र-एक राशन कार्ड’ प्रणाली के माध्यम से NFSA के तहत राशन कार्ड धारकों की राष्ट्रव्यापी पोर्टेबिलिटी का शुभारंभ करना है।

राष्ट्रीय खाघ सुरक्षा अधिनियम/लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TDPS) के अंतर्गत खाघान्नों का आवंटन:

  • सभी राज्यों/संघ शासित प्रदेशों मेें खाघ सुरक्षा अधिनियम का कार्यान्वयन किया गया है।
  • चंडीगढ़, पुदूचेरी और दादरा एवं नागर हवेली के शहरी क्षेत्रों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम नकदी अंतरण स्वरूप में लागू किया जा रहा है। 
  • राष्ट्रीय खाघ सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत खाद्यान सब्सिडी (आर्थिक सहायिकी) को लाभार्थियों के बैंक खाते में अंतरित किया जा रहा है ताकि उनके पास खाघान्नों को मुक्त बाज़ार से खरीदने का विकल्प मौज़ूद रहे।
  • वर्ष 2019-20 में 31 दिसम्बर, 2019 तक भारत सरकार ने अब तक राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम एवं अन्य कल्याणकारी स्कीमों के अंतर्गत 603.88 लाख टन खाद्यान्नों का आवंटन किया है।

भंडारण: 

  • केंद्रीय पूल से लिये गए खाद्यानों के भंडारण हेतु भारतीय खाद्य निगम के पास उपलब्ध भंडारण क्षमता, केंद्रीय वेयरहाउसिंग निगम (CWC) और राज्य वेयरहाउसिंग निगम (SWC) के पास उपलब्ध वेयरहाउसिंग क्षमता के हिस्से एवं निजी क्षेत्र से धन के एवज में लिये गए स्थान का उपयोग किया जाता है।
  • 30 नवंबर, 2019 तक की स्थिति के अनुसार खाद्यान्नों के भंडारण के लिये भारतीय खाद्य निगम और राज्य एजेंसियों के पास उपलब्ध कुल क्षमता 750 लाख मीट्रिक टन थी जिसमें 617.60 लाख मीट्रिक टन के कवर किये गए गोदाम और 132.40 लाख मीट्रिक टन की कवर और CAP सुविधाएँ शामिल हैं। 

भावी परिदृश्य:

  • वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य की पूर्ति के लिये कृषि तथा संबद्ध क्षेत्रों की कुछ मूलभूत चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। 
  • कृषि में निवेश, जल संरक्षण, बेहतर कृषि पद्धतियों के ज़रिये उत्पादन में वृद्धि, उत्पादों की बाज़ार तक पहुँच, संस्थागत ऋण की उपलब्धता, कृषि एवं गैर-कृषि क्षेत्रों के बीच संपर्क बढ़ाना आदि और पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्य पालन जैसे संबद्ध क्षेत्रों को विशेष रूप से छोटे एवं सीमांत किसानों के लिये नियोजन का आश्वस्त गौण स्त्रोत उपलब्ध कराने के लिये बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है।
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