लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19

भारतीय अर्थव्यवस्था

अध्याय: 7

  • 19 Nov 2019
  • 16 min read

वर्ष 2040 में भारत की जनसंख्याः 21वीं शताब्दी के लिये सरकारी प्रावधान की आयोजना

अवलोकन

इस अध्याय में भारत की जनसांख्यिकी का एक व्यावहारिक दृष्टिकोण दिया गया है और उन परिवर्तनों को प्रस्तुत किया गया है जो अगले दो दशकों में अपेक्षित हैं। इसने जनसांख्यिकीय परिवर्तनों की चुनौतियों से निपटने के लिये भविष्य की रणनीति भी तैयार की है।

प्रमुख बिंदु

Annual Population Growth Rate

  • भारत में अगले दो दशकों में जनसंख्या वृद्धि दर में तीव्र कमी देखने को मिलेगी।
  • भारत ने जनांकिकीय संक्रमण के अगले चरण में प्रवेश कर लिया है। साथ ही आगामी दो दशकों में स्पष्ट रूप से जनसंख्या वृद्धि कम होने वाली है और कामकाजी जनसंख्या बढ़ती जाएगी (इसलिये इसे ‘जनांकिकीय लाभांश’ चरण कहा गया है)। राज्यों में जन्म दर, मृत्यु दर, आयु-संरचना में महत्त्वपूर्ण विविधता है और कुछ राज्यों में वृद्धों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।
  • कुल प्रजनन दर (TFR) में वर्ष 1980 के मध्य से निरंतर गिरावट देखी गई है।
  • भारत की कार्यशील जनसंख्या में वर्ष 2021-31 तक प्रतिवर्ष लगभग 9.7 मिलियन की वृद्धि होगी तथा यह वर्ष 2031-41 तक 4.2 मिलियन और बढ़ जाएगी।
  • प्राथमिक विद्यालय जाने वाले बच्चों अर्थात् 5-14 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों के अनुपात में भारी कमी आने की संभावना है।

हाल के जनांकिकीय रुझान

  • पिछले कुछ समय से जनसंख्या वृद्धि दर धीमी पड़ी है। यह 1971-81 में 2.5 प्रतिशत वार्षिक से घटकर 2011-16 में 1.3 प्रतिशत रह गई है। इस अवधि के दौरान सभी प्रमुख राज्यों में जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आई है। यह कमी उन राज्यों में भी आई है जिनमें ऐतिहासिक दृष्टि से जनसंख्या वृद्धि दर काफी अधिक रही है जैसे कि बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा। दक्षिणी राज्यों के साथ-साथ पश्चिम बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र, ओडिशा, असम और हिमाचल प्रदेश में जनसंख्या 1 प्रतिशत की दर से भी कम पर बढ़ रही है |
  • 1980 के दशक से भारत में कुल गर्भधारण दर (TFR) में लगातार गिरावट आई है। यह 1984 के 4.5 से आधी होकर वर्ष 2016 में 2.3 हो गई थी।
  • दक्षिणी राज्य, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जनांकिकीय संक्रमण में पहले से इन स्थितियों में आगे है, (1) कुल गर्भधारण दर पहले ही प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है, जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण पूर्व गतिशीलता है, (2) 10 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या 60 वर्षीय या अधिक है, और (3) कुल एक-तिहाई जनसंख्या 20 वर्ष से कम आयु की है।
  • 22 प्रमुख राज्यों में से 13 राज्यों में कुल गर्भधारण दर कुल गर्भ धारण दर के प्रतिस्थापन स्तर से कम है वास्तव में दिल्ली,पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब और हिमाचल प्रदेश कुल गर्भधारण दर इतनी कम रही है कि यह 1-6-1-7 के बीच आ गई है। यहां तक कि उच्च प्रजनन क्षमता वाले राज्यों जैसे बिहार, झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी इन वर्षों में कुल गर्भ धारण दर में तेज़ी से कमी आई है।

TFR State in 2016

कुल प्रजनन दर: यह एक महिला के संपूर्ण जीवनकाल में प्रसव करने वाली उम्र की महिला से पैदा या पैदा होने वाले कुल बच्चों की संख्या को संदर्भित करता है। यह बिहार के बाद सबसे ज़्यादा यूपी में है और दिल्ली के लिये सबसे कम है।

प्रतिस्थापन स्तर प्रजनन: प्रति महिला 2.1 बच्चों के टीएफआर को प्रतिस्थापन स्तर प्रजनन कहा जाता है, प्रतिस्थापन स्तर (प्रजनन क्षमता, प्रजनन क्षमता का वह स्तर) जिस पर एक आबादी खुद को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में बदल देती है।

प्रभावी प्रतिस्थापन स्तर प्रजनन क्षमता: प्रतिस्थापन स्तर प्रजनन क्षमता विषम लिंगानुपात के लिये समायोजित की जाती है।

राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर जनसंख्या अनुमान

  • राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर वर्ष 2041 तक की जनसंख्या और उसकी आयु संरचना का अनुमान किया
  • गया है। ऐसा किये जाने का उद्देश्य 22 मुख्य राज्यों जिनमें वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या का 98.4 प्रतिशत निवास करता है, का विश्लेषण किया जाना है।

कुल गर्भधारण दर में गिरावट

राष्ट्रीय स्तर पर: वर्ष 2021-41 तक कुल गर्भधारण दर में अनुमानतः राष्ट्रीय स्तर पर लगातार गिरावट जारी रहेगी और यह वर्ष 2021 से ही प्रतिस्थापन स्तर से नीचे गिरकर 1.8 तक पहुँचेगी तथा अन्य देशों के जन्म दर पैटर्न जैसी, कुछ समय पश्चात कुल जन्म दर लगभग 1.7 के पास पहुंच कर स्थिर हो

राज्य स्तर पर: सभी राज्यों की प्रजनन क्षमता वर्ष 2031 तक प्रतिस्थापन स्तर से नीचे रहने की उम्मीद है।

  • पश्चिम बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश और दक्षिणी राज्य, जो पहले से ही प्रतिस्थापन स्तर से नीचे हैं, के 1.5 से 1.6 के निचले स्तर तक पहुँचने की उम्मीद है।

लिंग अनुपात:

  • जन्म के समय लिंग अनुपात राष्ट्रीय स्तर पर 22 प्रमुख राज्यों में 1.02-1.076 की सामान्य सीमा से अधिक है।
  • जन्म के समय लिंगानुपात का औसत मान लगभग 1.05 है, यानी प्रति 100 लड़कियों पर 105 लड़के जन्म लेते हैं, जिसका अर्थ है कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों की संख्या अधिक है।
  • इसका तात्पर्य यह है कि राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर आवश्यक प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता सामान्य मानदंड 2.1 से अधिक है, अर्थात विषम लिंगानुपात के कारण एक महिला को जनसंख्या का पुनः स्थापन के लिये 2.1 से अधिक बच्चों को जन्म देना होगा।
  • विषम लिंगानुपात को ध्यान में रखते हुए प्रभावी प्रतिस्थापन स्तर प्रजनन क्षमता भारत के लिये 1.11 के लिंगानुपात के साथ लगभग 2.15 से 2.2 हो सकती है।

प्रजनन क्षमता में गिरावट का कारण

  • महिला शिक्षा में वृद्धि
  • विवाह करने की बढ़ती आयु
  • परिवार नियोजन के तरीकों तक सुलभ पहुँच और
  • शिशु मृत्यु दर में निरंतर गिरावट
  • जनसंख्या वृद्धि प्रक्षेप पथ
    • राष्ट्रीय स्तर पर: जनांकिकीय प्रक्षेपण दर्शाते हैं कि भारत की जनसंख्या वृद्धि अगले दो दशकों में लगातार धीमी रहेगी, यह 2021-31 के बीच 1 प्रतिशत से कम और 2031-41 के बीच 0.5 प्रतिशत से कम गिरेगी। वास्तव में कुल गर्भधारण दर के 2021 तक प्रतिस्थापन स्तर से काफी नीचे गिरने के अनुमान सहित, अगले दो दशकों में सकारात्मक जनसंख्या वृद्धि, जनसंख्या के वेग के कारण और जीवन प्रत्याशा में लगातार वृद्धि के कारण होगी।
    • राज्य स्तर पर: कुल गर्भधारण दर के आरंभिक स्तर, मृत्यु दर और आयु संरचना पर राज्य स्तर पर भिन्नता को देखते हुए, जनसंख्या का प्रक्षेपवक्र और जनसंख्या वृद्धि, दोनों में राज्य स्तर पर अंतर जारी रहेगा। वे राज्य जो जनांकिकीय परिवर्तन में आगे हैं वहाँ जनसंख्या वृद्धि में लगातार कमी होगी और यह 2031.41 तक शून्य वृद्धि तक पहुँच जाएगी। वर्ष 2031 तक अधिकतम जनसंख्या के साथ ही यदि आंतरिक प्रयास में वृद्धि होतीं है तो वर्ष 2031-41 के दौरान तमिलनाडु की जनसंख्या वृद्धि दर कम होनी शुरू हो जाएगी| आंध्र.प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि दर शून्य के नज़दीक होगी, और कर्नाटक, केरल, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब एवं महाराष्ट्र में 0.1-0.2 प्रतिशत की न्यून वृद्धि होगी।
  • आयु संरचना में बदलाव
    • युवा जनसंख्या (0-19 वर्ष): जनसंख्या के इस हिस्से में पहले से ही कमी प्रारंभ हो गई है तथा यह 2011 के उच्चतम स्तर यानी 41 प्रतिशत से घटकर 2041 तक 25 प्रतिशत रह जाएगी |
    • बुजुर्ग जनसंख्या (60 वर्ष और उससे अधिक): यह लगातार बढ़ेगी और इसके 2011 के 8.6% से बढ़कर 2041 तक 16% होने की उम्मीद है |
  • भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश वर्ष 2041 तक लगभग अपने चरम पर होगा, जब कामकाजी-आयु यानी 20-59 वर्ष की जनसंख्या के 59% तक पहुँचने की संभावना है।
  • कामगार आयु वर्ग की जनसंख्या के निहितार्थ
    • 2021-31 के दौरान भारत की कार्यशील जनसंख्या में वृद्धि होती रहेगी तथा यह 2031-41 के दौरान चरम पर होगी।
    • एनएसएसओ आवधिक श्रम शक्ति सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, भारत में 15-59 वर्ष के आयु वर्ग की श्रम शक्ति भागीदारी दर लगभग 53 प्रतिशत है (जिसमें पुरुष 80% एवं महिलाएँ 25% हैं) और इसके बाद भारत को 2021-31 के दौरान 9.7 मिलियन प्रतिवर्ष तथा 2031-41 के दौरान 4.2 मिलियन प्रतिवर्ष की कार्यशील जनसंख्या हेतु अतिरिक्त रोज़गार सृजन की आवश्यकता होगी।
    • 2031-41 के दौरान 22 प्रमुख राज्यों में से 11 राज्यों में कार्यशील जनसंख्या में गिरावट आनी शुरू हो जाएगी, जिसमें दक्षिणी राज्य, पंजाब, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं।
    • जनसांख्यिकीय संक्रमण में पीछे रहने वाले राज्यों, विशेषकर बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में 2041 तक कार्यशील जनसंख्या में वृद्धि जारी रहेगी।

वृद्धता संचार के नीतिगत निहितार्थ

  • प्राथमिक विद्यालय
    • भारत में स्कूल जाने वाले बच्चों (5-14 वर्ष) की संख्या 2021 और 2041 के बीच 18.4% तक घट जाएगी।
    • प्रति व्यक्ति स्कूलों की संख्या भारत में सभी प्रमुख राज्यों में उल्लेखनीय रूप से बढ़ेगी, भले ही अधिक स्कूलों का निर्माण न किया जाए।
    • राज्यों को नए स्कूलों के निर्माण के स्थान पर स्कूलों को समेकित करने पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है और राज्यों को शिक्षा में नीतिगत बदलाव लाकर मात्रा की जगह गुणवत्ता और दक्षता बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • स्वास्थ्य सेवा सुविधाएँ
    • भारत के सभी प्रमुख राज्यों में प्रति व्यक्ति अस्पताल बेड दर की उपलब्धता में तेजी से कमी आएगी। भारत की स्थिति पहले ही प्रति व्यक्ति अस्पताल बेड दर की उपलब्धता के मामले में अन्य उभरती और विकसित अर्थव्यवस्थाओं के सापेक्ष खराब है।
    • अधिक जनसंख्या वृद्धि वाले राज्यों में अस्पतालों की कम प्रति व्यक्ति उपलब्धता दर है। इसलिये, इन राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने की अति आवश्यकता है। उन राज्यों में जहाँ जनांकिकीय परिवर्तन उच्च स्तर पर है, आयु संरचना में जल्द परिवर्तन का मतलब यह होगा कि स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धजनों के लिये सुविधाओं का अत्याधिक प्रावधान रखना।
    • स्वास्थ्य सुविधाओं की योजना का प्रावधान करते हुए आवश्यक आँकड़ों की कमी खासकर निजी अस्पतालों के लिये, एक बड़ी समस्या है, यहाँ सरकारी अस्पतालों के उपलब्ध आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है परंतु सामान्य शोध से साफ हो गया है| कि ये देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की गुणात्मक एवं मात्रात्मक स्थिति को स्पष्ट नहीं करते हैं।
  • सेवानिवृत्ति की आयु
    • 60 वर्ष की स्वस्थ जीवन प्रत्याशा (इसमें एक व्यक्ति के 60 वर्ष तक पूर्णतः स्वस्थ रहने की उम्मीद है, बीमारियों और चोटों के प्रभाव को छोड़कर) पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिये पिछले वर्षों में लगातार बढ़ी है।
    • बढ़ती जीवन प्रत्याशा के साथ सेवानिवृत्त कार्यबल पेंशन का बोझ बढ़ा रहा है।
    • इसलिये, अन्य उभरते और विकसित देशों के अनुभव बताते हैं कि सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ने से पेंशन फंडिंग पर दबाव कम होगा।

महत्त्वपूर्ण तथ्य और रुझान

TFR in India

  • 1980 के बाद से भारत के TFR में लगातार गिरावट आई।
  • भारत की युवा (0-19 वर्ष) आबादी का हिस्सा पहले ही घटने लगा है और वर्ष 2011 में इसके 41 प्रतिशत से गिर` कर 2041 तक 25 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है।
  • प्राथमिक में विद्यालय जाने वाले बच्चे (5-14 आयु वर्ग) पहले ही भारत में और जम्मू और कश्मीर को छोड़कर सभी प्रमुख राज्यों में गिरावट आनी शुरू हो गई है |

मेन्स के लिये महत्त्वपूर्ण प्रश्न

Q.1 देश के आर्थिक परिदृश्‍य पर जनसांख्यिकीय परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ेगा ?

Q.2 भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश एक वरदान या अभिशाप हो सकता है। जनसांख्यिकीय लाभांश के लाभ को बढ़ाने के लिये आवश्यक नीतिगत उपायों पर चर्चा कीजिये |

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2