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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 23 दिसंबर, 2023

  • 23 Dec 2023
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क्राफ्ट प्रक्रिया

एक ऐसी प्रक्रिया जिसका उपयोग लकड़ी के काफी छोटे टुकड़े से सेलूलोज़ फाइबर का उत्पादन करने के लिये किया जाता है, क्राफ्ट प्रक्रिया कहलाता है। इसका उपयोग कागज़ एवं रोजमर्रा की अन्य सामग्री बनाने के लिये किया जाता है।

  • इस प्रक्रिया में लकड़ी के काफी छोटे टुकड़े को उच्च तापमान पर जल, सोडियम हाइड्रॉक्साइड तथा सोडियम सल्फाइड के साथ रासायनिक रूप से उपचारित किया जाता है।
  • सोडियम हाइड्रॉक्साइड और सोडियम सल्फाइड के मिश्रण से सफेद तरल पदार्थ का निर्माण होता है, जो लकड़ी के काफी छोटे टुकड़ों में मौजूद लिग्निन, हेमिकेलुलोज़ और सेलूलोज़ के बीच के आबंधन (बाँडिंग) को विच्छेदित कर देता है।
  • इस प्रक्रिया द्वारा उत्पादित सबसे मज़बूत कागज़, जो कागज़ बनाने की सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली विधि है, की पहचान इसकी सल्फाइडिटी से की जाती है, जो इसकी सापेक्ष सल्फर सांद्रता को इंगित करता है।
  • इस प्रक्रिया द्वारा जल में लिग्निन, घुले कार्बन, अल्कोहल आयन और भारी धातुएँ जैसे पदार्थ निष्काषित हो जाते हैं, जिससे यह प्रक्रिया पर्यावरण के लिये प्रतिकूल हो जाती है।

NHRC ने दिये सलवा जुडूम पीड़ितों की जाँच के निर्देश

  • एक याचिका के जवाब में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission- NHRC) ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और छह राज्य सरकारों को सलवा जुडूम से प्रभावित पीड़ितों के बारे में जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया है।
  • इसके पीछे दिया गया तर्क है कि कई राज्यों में वन क्षेत्रों में रहने वाले विस्थापित लोगों को बुनियादी कल्याण कार्यक्रमों, जैसे वन अधिकार अधिनियम के तहत प्रदत्त अधिकार, जनजाति का दर्जा, भूमि अधिकार और सामाजिक कल्याण लाभ तक पहुँच से वंचित कर दिया गया है।
  • सलवा जुडूम गैरकानूनी सशस्त्र नक्सलियों के विरुद्ध प्रतिरोध के लिये संगठित जनजातीय लोगों का एक समूह है। कथित तौर पर इस समूह को छत्तीसगढ़ में सरकारी तंत्र द्वारा समर्थन प्राप्त था।
    • वर्ष 2011 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकों को इस तरह से हथियार मुहैया कराने के विरुद्ध फैसला सुनाया और सलवा-जुडूम पर प्रतिबंध लगा दिया तथा छत्तीसगढ़ सरकार को माओवादी गुरिल्लाओं से निपटने हेतु किसी भी स्थापित सहायक बल को भंग करने का भी निर्देश दिया।

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मिलेट क्वीन

ओडिशा के कोरापुट ज़िले में रहने वाली जनजातीय किसान रायमती घुरिया ने कदन्न की 30 किस्मों को संरक्षित किया है, साथ ही उन्होंने सैकड़ों महिलाओं को दुर्लभ कदन्न की खेती में प्रशिक्षण भी प्रदान किया है।

  • 'अंतर्राष्ट्रीय कदन्न वर्ष' के उपलक्ष्य में उन्हें आयोजित G20 शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था।
    • उन्होंने धान की 72 पारंपरिक किस्मों और कुंद्रा बाटी मंडिया, जसरा, जुआना तथा जामकोली सहित कदन्न की कम से कम 30 किस्मों का संरक्षण कर कृषि क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • G20 शिखर सम्मेलन में उन्हें 'मिलेट क्वीन' की संज्ञा/उपाधि दी गई। उन्हें स्वदेशी बीजों के संरक्षण में अग्रणी माना गया है।
  • कदन्न सूखा प्रतिरोधी फसल है, इसके विकसित होने के लिये कम मात्रा में जल की आवश्यकता होती है और वे कम गुणवत्ता वाले मृदा में भी उग सकते है।
    • कदन्न फाइबर, प्रोटीन, विटामिन और खनिजों का अच्छा स्रोत है।
  • यह प्राकृतिक रूप से ग्लूटेन-मुक्त होता है, साथ ही सीलिएक रोग अथवा ग्लूटेन असहिष्णुता लोगों के लिये सेवन हेतु काफी उपयुक्त होता है।

टचस्क्रीन की कार्यप्रणाली

टचस्क्रीन एक डिवाइस है जो किसी प्रकार का इनपुट प्राप्त करने (जैसे– किसी एप पर टैप किये जाने के माध्यम से) और आउटपुट प्रदर्शित करने (एप को शुरू करने के रूप में) के संयोजन का कार्य करता है।

  • टचस्क्रीन सामान्यतः दो प्रकार के होते हैं– कैपेसिटिव और रेसिस्टिव
    • कैपेसिटिव टचस्क्रीन का उपयोग अधिकांशतः स्मार्टफोन और टैबलेट में किया जाता है। जब हम उंगली से स्क्रीन को छूते हैं तब यह मानव शरीर के विद्युत गुणों को महसूस करते हुए प्रतिक्रिया देकर कार्य करता है।
      • इस प्रकार की टचस्क्रीन में कैपेसिटर के ग्रिड की एक सतह होती है। कैपेसिटर विद्युत आवेशों को संग्रहीत करता है तथा उंगली से स्क्रीन को छुए जाने के बाद इसमें लगे सेंसर किसी भी प्रकार की डिसटाॅशन का पता लगाते हैं और स्पर्श/टच स्थान निर्धारित करने के लिये जानकारी एकत्रित करते हैं।
    • रेसिस्टिव टचस्क्रीन दबाव के प्रति संवेदनशील होते हैं और स्क्रीन पर लागू दबाव को महसूस करके कार्य करते हैं।
      • रेसिस्टिव टचस्क्रीन का निर्माण किफायती होता है और इसे संचालित करने के लिये कम विद्युत की आवश्यकता होती है।
      • रेसिस्टिव टचस्क्रीन प्रतिरोध का उपयोग करती है। यानी इसमें विद्युतचालक की दो शीट/परतें होती हैं, इनके बीच काफी कम दूरी होती है। जब हम उंगली से उस एक शीट/परत को छूते हैं, तब यह नीचे के शीट/परत के स्पर्श में आती है जिससे वहाँ विद्युतधारा/करंट का प्रवाह हो जाता है।
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