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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 जनवरी, 2021

  • 20 Jan 2021
  • 6 min read

गुच्छी मशरूम

जम्मू-कश्मीर स्थित एक गैर-सरकारी संगठन ने गुच्छी मशरूम के लिये ‘जीआई टैग’ (GI Tag) की मांग करते हुए आवेदन दाखिल किया है। ध्यातव्य है कि जम्मू-कश्मीर के डोडा ज़िले में उगने वाली ‘गुच्छी मशरूम’ दुनिया की सबसे महँगी मशरूमों में से एक है। गुच्छी मशरूम एक वन उपज है, जिसे प्रायः स्थानीय लोगों और आदिवासियों द्वारा जंगल से एकत्र किया जाता है और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में इसकी कीमत 20000 रुपए प्रति किलो है। डोडा ज़िले के समशीतोष्ण वनों में पाए जाने वाले इस खाद्य कवक में कई औषधीय गुण मौजूद होते हैं, इसलिये अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में इसकी कीमत काफी अधिक होती है। जम्मू-कश्मीर में गुच्छी मशरूम का वार्षिक उत्पादन लगभग 45 टन के आसपास है। यद्यपि यह जंगली मशरूम मुख्य तौर पर डोडा ज़िले के जंगलों और चरागाहों में पाई जाती है, किंतु यह कुपवाड़ा, पहलगाम, शोपियां, किश्तवाड़ और पुंछ के ऊँचाई वाले कुछ क्षेत्रों में भी पाई जाती है। विदित हो कि मशरूम को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन B का एक समृद्ध स्रोत भी माना जाता है। जीआई टैग मिलने से उन किसानों को काफी लाभ होगा जो गुच्छी मशरूम का संग्रहण करते हैं अथवा उसकी खेती करते हैं। बीते वर्ष जून माह में जम्मू-कश्मीर के केसर को ‘जीआई टैग’ प्रदान किया गया था। 

डॉ. वी. शांता

19 जनवरी, 2021 को भारत की सुविख्यात ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. वी. शांता का 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया। 11 मार्च, 1927 को जन्मी डॉ. शांता का संबंध वैज्ञानिकों और चिकित्सकों के परिवार से था। उन्होंने वर्ष 1949 में मद्रास मेडिकल कॉलेज से MBBS की डिग्री हासिल की, जिसके बाद उन्होंने वर्ष MD (आब्सटेट्रिक्स एंड गायनोकॉलोजी) की डिग्री प्राप्त की। डॉ. शांता वर्ष 1955 में अड्यार कैंसर संस्थान में शामिल हुई थीं तथा वर्ष 1980 और वर्ष 1997 के बीच वे इसकी निदेशक भी रहीं। डॉ. वी. शांता को मुख्य तौर पर कैंसर के क्षेत्र में किये गए उनके कार्य के लिये पहचाना जाता है। डॉ. शांता तमिलनाडु राज्य के योजना आयोग (स्वास्थ्य) की सदस्य थीं। इसके अलावा उन्होंने स्वास्थ्य पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की सलाहकार समिति में भी काम किया था। कैंसर और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए डॉ. शांता को पद्म विभूषण (वर्ष 2016), पद्म भूषण (वर्ष 2006), पद्म श्री (वर्ष 1986) और मैग्सेसे पुरस्कार (वर्ष 2005) से सम्मानित किया गया था।

पराक्रम दिवस

केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने हाल ही में घोषणा की है कि वर्ष 2021 से प्रतिवर्ष 23 जनवरी को सुभाष चंद्र बोस की जयंती को ‘पराक्रम दिवस’ ​​के रूप में मनाया जाएगा। इस संबंध में घोषणा करते हुए केंद्र संस्कृति मंत्रालय ने कहा कि केंद्र सरकार ने 23 जनवरी, 2021 से शुरू होने वाले नेताजी के 125वें जयंती वर्ष को ‘राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शानदार तरीके’ से मनाने का निर्णय लिया है। साथ ही इस दिवस को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी आयोजित किया जाएगा। सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। इंडियन सिविल सर्विस से इस्तीफा देने के पश्चात् वे स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए और वर्ष 1938 तथा 1939 में काॅन्ग्रेस के अध्यक्ष बने। 18 अगस्‍त, 1945 को हुए विमान हादसे में रहस्‍यमयी स्थिति में सुभाष चंद्र बोस की मौत हो गई थी, यह घटना लोगों के लिये पहेली बनी हुई है।

कोकबोरोक दिवस

19 जनवरी को त्रिपुरा में 43वें कोकबोरोक दिवस का आयोजन किया गया। एस अवसर पर पारंपरिक पोशाक में लोगों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। ‘कोकबोरोक’ त्रिपुरा की मूल भाषा है। इसमें ‘कोक’ का अर्थ है ‘भाषा’ और ‘बोरोक’ का अर्थ है ‘लोग’। ‘कोकबोरोक’ भाषा को लेकर 19 जनवरी, 1979 को त्रिपुरा विधानसभा में विधेयक पारित किया गया था, जिसमें ‘कोकबोरोक’ को राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी गई और तब से इसका उपयोग सरकारी कार्यालयों में किया जाता रहा है। कोकबोरोक भाषा में लेखन की शुरुआत तकरीबन 300 वर्ष पूर्व त्रिपुरा के राजा महेंद्र देबबर्मा के शासनकाल के दौरान हुई थी। वर्तमान में त्रिपुरा की आदिवासी आबादी का 70 से 75 फीसदी हिस्सा ‘कोकबोरोक’ भाषा बोलता है।

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