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प्रेस्टन वक्र

  • 05 Jun 2024
  • 2 min read

स्रोत: द हिंदू

प्रेस्टन वक्र किसी देश में जीवन प्रत्याशा और प्रतिव्यक्ति आय के बीच अनुभवजन्य संबंध (empirical relationship) को संदर्भित करता है, जिसे 1975 में अमेरिकी समाजशास्त्री सैमुअल एच. प्रेस्टन द्वारा प्रस्तावित किया गया था।

  • वक्र से स्पष्ट है कि अमीर देशों के लोगों का जीवन काल आमतौर पर गरीब देशों के लोगों की तुलना में लंबा होता है, जो संभवतः स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, पोषण आदि तक बेहतर पहुँच के कारण होता है।
  • जब किसी गरीब देश की प्रतिव्यक्ति आय बढ़ती है, तो उसकी जीवन प्रत्याशा में शुरुआत में काफी वृद्धि होती है।
    • उदाहरण के लिये, भारत की प्रतिव्यक्ति आय 1947 में 9,000 से बढ़कर 2011 में 55,000 रुपए हो गई, जबकि जीवन प्रत्याशा 32 से बढ़कर 66 वर्ष हो गई।
  • हालाँकि, प्रतिव्यक्ति आय और जीवन प्रत्याशा के बीच सकारात्मक संबंध एक निश्चित बिंदु के बाद समाप्त होने लगता है, क्योंकि मानव जीवनकाल को अनिश्चित काल तक नहीं बढ़ाया जा सकता है।
  • प्रेस्टन वक्र (Preston Curve) द्वारा दर्शाया गया सकारात्मक संबंध अन्य विकास संकेतकों जैसे शिशु/मातृ मृत्यु दर, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल आदि पर भी लागू किया जा सकता है।

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