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प्रीलिम्स फैक्ट्स: 29 जुलाई, 2020

  • 29 Jul 2020
  • 17 min read

विश्व हेपेटाइटिस दिवस-2020

World Hepatitis Day-2020

प्रत्येक वर्ष 28 जुलाई को विश्व हेपेटाइटिस दिवस (World Hepatitis Day) मनाया जाता है।   

World-Hepatitis-day

थीम: 

  • इस वर्ष विश्व हेपेटाइटिस दिवस की थीम ‘गुम हुए लाखों लोगों को खोजना’ (Find the Missing Millions) है।

उद्देश्य:

  • इस दिवस का उद्देश्य हेपेटाइटिस A, B, C, D, और E नामक संक्रामक रोगों के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाना तथा हेपेटाइटिस की रोकथाम, निदान एवं उपचार को प्रोत्साहित करना है। 

प्रमुख बिंदु:    

  • दुनिया भर में वायरल हेपेटाइटिस के कारण वार्षिक तौर पर लगभग 1.3 मिलियन मौतें होती हैं वहीँ 300 मिलियन लोग इस बीमारी के साथ जीवन जी रहे हैं किंतु वे अपने संक्रमण की स्थिति से अनजान हैं।
  • वर्ष 2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने ‘वर्ष 2030 तक हेपेटाइटिस को खत्म करना’ (Eliminate Hepatitis by 2030) नामक अभियान शुरू किया था।
  • स्क्रीनिंग एवं शुरुआती पहचान इस बीमारी से निपटने का एकमात्र तरीका है क्योंकि क्रोनिक वायरल हेपेटाइटिस में लीवर की क्षति तब तक होती है जब तक कि यह लाइलाज कैंसर या लीवर सिरोसिस के चरण तक नहीं पहुँच जाती है। हालाँकि हेपेटाइटिस A एवं B वायरस के लिये टीकाकरण उपलब्ध है।

हेपेटाइटिस:

  • हेपेटाइटिस’ शब्द लीवर की किसी भी तरह की सूजन को संदर्भित करता है अर्थात् किसी भी कारण से लीवर की कोशिकाओं में जलन या सूजन होना।
  • यह आमतौर पर वायरस के एक समूह के कारण होता है जिसे ‘हेपेटोट्रोपिक’ (Hepatotropic) वायरस के रूप में जाना जाता है जिसमें इस वायरस के विभिन्न प्रकार A, B, C, D और E शामिल हैं।
  • अन्य वायरस भी इसका कारण बन सकते हैं जैसे कि वे जो मोनोन्यूक्लिओसिस (एपस्टीन बार वायरस- Epstein Barr Virus) या चिकन पॉक्स (वैरीसेला वायरस- Varicella Virus) का कारण बनते हैं।
  • हेपेटाइटिस दवाओं एवं शराब के दुरुपयोग या वातावरण में विषाक्त पदार्थों के कारण लीवर की सूजन को भी संदर्भित करता है।
  • इसके अलावा लोगों में अन्य कारणों से हेपेटाइटिस की बीमारी विकसित हो सकती है जैसे- लीवर में सूजन आ जाना ‘फैटी लीवर हेपेटाइटिस’ (Fatty Liver Hepatitis) या एनएएसएच (नॉनअल्कोहलिक स्टीटोहेपेटाइटिस- Nonalcoholic Steatohepatitis) या एक ऑटोइम्यून प्रक्रिया जिसमें किसी व्यक्ति का शरीर लीवर पर हमला करने वाले एंटीबॉडी बनाता है (ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस)।

दूसरा एम्पैथी ई-कॉन्क्लेव (2nd Empathy e-Conclave): 

  • भारत में ‘विश्व हेपेटाइटिस दिवस’ ​​के अवसर पर दूसरे एम्पैथी ई-कॉन्क्लेव (2nd Empathy e-Conclave) का आयोजन किया गया।

थीम: 

  • इस ई-कॉन्क्लेव की थीम ‘COVID-19 के समय अपने लिवर को सुरक्षित रखना’ जो विशेष रूप से कड़ी परीक्षा की इस घड़ी में बहुत उपयुक्त एवं महत्त्वपूर्ण है। 

अन्य बिंदु:

  • भारत के संदर्भ में, वायरल B और C हेपेटाइटिस वाले व्यक्तियों में यकृत कैंसर एवं पुराने यकृत रोग का खतरा बढ़ जाता है फिर भी जटिल वायरल हेपेटाइटिस वाले अनुमानित 80% लोगों को यह नहीं पता होता है कि वे संक्रमित हैं। 

इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलीअरी साइंसेज़  (Institute of Liver and Biliary Sciences- ILBS):

  • ILBS नई दिल्ली में स्थित यकृत एवं पित्त रोगों के लिये एक मोनो-सुपरस्पेशलिटी अस्पताल है।
  • इसे एक स्वायत्त संस्थान के रूप में ‘सोसायटी पंजीकरण अधिनियम-1860’ के तहत स्थापित किया गया है। 
  • ILBS विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (WHO) का एक सहयोगी केंद्र भी है। 
  • इसने ‘राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस कार्यक्रम’ (National Viral Hepatitis Program) के विकास में मदद की है जिसे 28 जुलाई, 2018 को लॉन्च किया गया था। 
  • यह दुनिया में हेपेटाइटिस B एवं C के निदान और उपचार के लिये सबसे बड़ा कार्यक्रम है।
  • उल्लेखनीय है कि हाल ही में ILBS में भारत के पहले प्लाज्मा बैंक ने कार्य करना शुरू किया है।

UK-PCS


ब्लू पॉपी

Blue Poppy

ब्लू पॉपी (Blue Poppy) जो हिमालयी क्षेत्र में कुमाऊँ (उत्तराखंड) से कश्मीर तक 3000 से 5000 मीटर की ऊँचाई पर पाया जाता है, को हिमालयी ‘फूलों की रानी’ (Queen of Himalayan Flowers) कहा जाता है।

Blue-Poppy

प्रमुख बिंदु:

  • ब्लू पॉपी (Blue Poppy) का वैज्ञानिक नाम ‘मेकॉनोप्सिस एकुलेआटा’ (Meconopsis Aculeata) है।

जलवायु परिवर्तन और ब्लू पॉपी जैसी अन्य प्रजातियों के लिये संकट:  

  • हाल ही के एक अध्ययन पर आधारित ‘बोटैनिकल सर्वे ऑफ इंडिया’ (BSI) के एक प्रकाशन: ‘पश्चिमी हिमालयी विविधता की पेरीग्लेशियल वनस्पति और जलवायु परिवर्तन भेद्यता’ (Periglacial Flora of Western Himalayas Diversity And Climate Change Vulnerability) में कमज़ोर पेरीग्लेशियल (Periglacial) प्रजातियों एवं उनके जीवित रहने की रणनीतियों का विवरण दर्ज किया गया है। 
    • इस प्रकाशन में 243 ऐसे पौधों को सूचीबद्ध किया गया है जो बहुत ऊँचाई पर संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाते हैं।
  • हालाँकि विभिन्न ऊँचाई पर अल्पाइन मोराइंस (Alpine Moraines) में विभिन्न पौधों की प्रजातियों की प्रचुरता के हाल के तुलनात्मक अध्ययन से पता चला कि यह प्रजाति (ब्लू पॉपी) कम ऊँचाई एवं चट्टानी मोराइंस में धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है।  

मोराइन (Moraine):

  • मोराइन किसी भी ग्लेशियल रूप से अनियोजित ग्लेशियल मलबे (रेज़ोलिथ एवं रॉक) का संचय है जो वर्तमान में एवं पूर्व में भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से पृथ्वी पर ग्लेशियेटेड क्षेत्रों (Glaciated Regions) में होता है।
  • उच्च अल्पाइन चट्टानी स्क्रीस (छोटे, ढीले पत्थर एवं चट्टान के टुकड़े) और पार्श्व पेरिग्लैसिअल मोराइन (Lateral Periglacial Moraine) इन प्रजातियों का मुख्य अधिग्रहण क्षेत्र हो गया है।
  • न केवल ब्लू पॉपी बल्कि कई अन्य फूलों के पौधे जो बहुत अधिक ऊँचाई पर पाए जाते हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण ‘ऊँचाई की तरफ बढ़ो या मरो’ की स्थिति का सामना कर रहे हैं।
    • सौस्सुरेआ (Saussurea) जीनस से संबंधित पौधे जैसे- लुप्तप्राय हिमकमल, सौस्सुरेआ ओब्वालाटा (Saussurea Obvallata) और सौस्सुरेआ ग्नैफ्लोइड्स (Saussurea Gnaphaloides) भी निवास स्थान के नुकसान एवं संख्या की कमी से जूझ रहे हैं।
  • शोधकर्त्ताओं ने यह भी दर्ज किया कि एक उच्च तुंगता वाला फूलों का पौधा ‘सोल्मस-लौबाचिया हिमालायेंसिस’ (Solms-Laubachia Himalayensis) अब 6,000 मीटर से अधिक ऊँचाई पर पाया जाता है।
  • शोधकर्त्ताओं ने अत्यंत संवेदनशील पेरिग्लेशियल स्थानिक प्रजातियों की भी सूची दी है जो कमी के विभिन्न स्तरों को दर्शाती है। जिसमें कोरीडालिस विओलासिया (Corydalis Violacea), कोरीडालिस मेईफोलिआ (Corydalis Meifolia), वाल्ढ़ेमिया वेस्टिटा (Waldheimia Vestita) शामिल हैं।
  • इस BSI प्रकाशन में न केवल प्रमुख असुरक्षित प्रजातियों को सूचीबद्ध किया गया है बल्कि हिमालयन सॉरेल (रुमेक्स नेप्लेन्सिस- Rumex Nepalensis) जैसी जलवायु अनुकूल एवं प्रभुत्त्वशाली प्रजातियों को भी दर्ज किया गया है।


मोबाइल एप ‘मौसम’

Mobile App ‘Mausam’

27 जुलाई, 2020 को केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री (Union Minister for Earth Sciences) ने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) के लिये MoES-नालेज रिसोर्स सेंटर नेटवर्क (Knowledge Resource Centre Network- KRCNet) और मोबाइल एप ‘मौसम’ (Mausam) लॉन्च किया।

MAUSAM

प्रमुख बिंदु:

  • इस मोबाइल एप को ‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT), ‘भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), पुणे और ‘भारतीय मौसम विज्ञान विभाग’ (IMD) द्वारा संयुक्त रूप से डिज़ाइन एवं विकसित किया गया है।
  • यह मोबाइल एप 200 शहरों के लिये तापमान, आर्द्रता, हवा की गति एवं दिशा सहित वर्तमान मौसम की जानकारी प्रदान करेगा। और यह जानकारी दिन में आठ बार अपडेट की जाएगी।
  • यह लगभग 800 स्टेशनों एवं ज़िलों के लिये स्थानीय मौसम की घटनाओं एवं उनकी तीव्रता के लिये अब तीन-तीन  घंटे की चेतावनी भी जारी करेगा।
  • यह एप भारत के लगभग 450 शहरों के लिये अगले सात दिनों का मौसम पूर्वानुमान प्रदान करेगा। पिछले 24 घंटों की मौसम संबंधित जानकारी भी इस एप पर उपलब्ध होगी।

MoES-नालेज रिसोर्स सेंटर नेटवर्क

(Knowledge Resource Centre Network- KRCNet):

KRCNet

  • KRCNet भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) की एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जिसके माध्यम से MoES एवं उसके विभिन्न संस्थानों में विकसित MoES-ज्ञान उत्पादों को एक केंद्रीकृत पोर्टल के माध्यम से एक्सेस करने के लिये विकसित किया गया है।
  • उल्लेखनीय है कि भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) का उद्देश्य विश्व स्तरीय ज्ञान संसाधन केंद्र नेटवर्क (Knowledge Resource Centre Network- KRCNet) विकसित करना है। 
  • इसके तहत, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के पारंपरिक पुस्तकालयों को एक विशिष्ट नॉलेज रिसोर्स सेंटरों (Knowledge Resource Centres- KRCs) में अपग्रेड किया जाएगा। 
    • सभी KRCs को एक दूसरे के साथ जोड़ा जाएगा और KRCNet पोर्टल में एकीकृत किया जाएगा।


नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व

Nagarjunasagar-Srisailam Tiger Reserve

28 जुलाई, 2020  को भारत सरकार द्वारा जारी 'भारत में बाघ, सह-शिकारी एवं शिकार की स्थिति' (Status of Tigers, Co-predators and Prey in India) पर नवीनतम रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व (Nagarjunasagar-Srisailam Tiger Reserve- NSTR) में बाघों के स्वास्थ्य एवं विकास के लिये शिकार की कमी है।

Nagarjunasagar-Srisailam

प्रमुख बिंदु:

  • रिपोर्ट में बताया गया है कि नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व आंध्र प्रदेश में एकमात्र बाघ अभयारण्य है जिसके दक्षिणी भाग में ‘गुंडला ब्रह्मेश्वरम अभयारण्य’ (Gundla Brahmeswaram Sanctuary) और उत्तरी भाग में दोरनाला (Dornala) एवं श्रीशैलम (Srisailam) पर्वतमाला में बाघों का घनत्व सबसे अधिक है। 
    • गौरतलब है कि ‘गुंडला ब्रह्मेश्वरम अभयारण्य’ (Gundla Brahmeswaram Sanctuary) और दोरनाला (Dornala) एवं श्रीशैलम (Srisailam) पर्वतमाला,  नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व के ही अंतर्गत स्थित हैं।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि जब तक मानव दबाव कम नहीं होता नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व में शिकार एवं बाघों की स्थिति में सुधार की संभावना नहीं है। 
    • सह-शिकारियों के संबंध में, इस बाघ रिज़र्व में जंगली कुत्ते, जंगली बिल्लियाँ, चित्तीदार बिल्लियाँ एवं तेंदुए विभिन्न क्षेत्रों में बहुतायत में हैं। रिज़र्व में बाघों के शिकार के लिये चूहे, हिरण, काला हिरण एवं चौसिंगा हैं।
  • गौरतलब है कि इस बाघ रिज़र्व से होकर जाने वाले राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्ग रिज़र्व के अंदर बाघों के गलियारे को प्रभावित करते हैं जिससे बाघों को शिकार को देखने एवं पकड़ने में बाधा उत्पन्न होती है। 

नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व (NSTR):

NSTR

  • NSTR भारत का सबसे बड़ा टाइगर रिज़र्व है।
  • NSTR को वर्ष 1978 में अधिसूचित किया गया था तथा वर्ष 1983 में इसे प्रोजेक्ट टाइगर के तहत शामिल किया गया।
  • वर्ष 1992 में इसका नाम परिवर्तित कर राजीव गांधी वन्यजीव अभयारण्य कर दिया गया था।
  • NSTR कृष्णा नदी के तट पर अवस्थित है तथा आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के 5 ज़िलों में विस्तारित है।
  • इसके अलावा बहुउद्देशीय जलाशय- श्रीशैलम और नागार्जुनसागर NSTR में ही अवस्थित हैं।
  • NSTR विभिन्न प्रकार के जंगली जानवरों का निवास स्थान है, यहाँ बंगाल टाइगर के अलावा, तेंदुआ, चित्तीदार बिल्ली, पेंगोलिन, मगर, इंडियन रॉक पायथन और पक्षियों की असंख्य किस्में पाई जाती हैं।
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