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प्रिलिम्स फैक्ट्स: 14 अक्तूबर, 2020

  • 14 Oct 2020
  • 16 min read

अपोज़िशन

Opposition

‘अपोज़िशन’ (Opposition) नामक एक घटना जो प्रत्येक दो वर्ष एवं दो महीने में घटित होती है, के कारण मंगल, बृहस्पति ग्रह को पीछे छोड़ते हुए अक्तूबर 2020 में अंतरिक्ष में तीसरी सबसे चमकीली वस्तु बन जाएगा।

Earth-Mars

प्रमुख बिंदु: 

  • अंतरिक्ष में सबसे चमकीली वस्तु के संदर्भ में चंद्रमा एवं शुक्र क्रमशः पहले और दूसरे स्थान पर हैं।
  • नासा के अनुसार, 6 अक्तूबर, 2020 में जब मंगल ग्रह, पृथ्वी के सबसे निकट था तब 13 अक्तूबर, 2020 को ‘अपोज़िशन’ नामक घटना घटित हुई, परिणामतः वर्ष 2020 में मंगल ग्रह ‘सबसे बड़ा एवं स्पष्ट आकार’ का दिखाई दिया।
    • मंगल की अगली ‘निकटता’ 8 दिसंबर, 2022 को होगा जब यह पृथ्वी से 62.07 किमी. दूर होगा किंतु निकटता का मतलब यह नहीं है कि मंगल, चंद्रमा के समान आकार का दिखाई देगा।

‘अपोज़िशन’ (Opposition): 

  • ‘अपोज़िशन’ वह घटना है जब सूर्य, पृथ्वी एवं कोई अन्य ग्रह (इस संदर्भ में मंगल ग्रह) एक पंक्ति में होते हैं और सूर्य तथा उस ग्रह के बीच में पृथ्वी होती है। 
  • ‘अपोज़िशन’ की घटना तब घटित होती है जब कोई अन्य ग्रह सामान्य तौर पर किसी वर्ष में पृथ्वी से निकटतम दूरी पर होता है, क्योंकि यह पास होता है इसलिये अंतरिक्ष में चमकदार  दिखाई देता है।
  • मंगल की कक्षा में कहीं भी ‘अपोज़िशन’ की घटना हो सकती है किंतु यह तब होती है जब ग्रह सूर्य के सबसे निकट होता है और यह विशेष रूप से पृथ्वी के भी निकट होता है।

‘अपोज़िशन’ की घटना कब होती है?

  • पृथ्वी और मंगल अलग-अलग दूरी पर सूर्य की परिक्रमा करते हैं। मंगल पृथ्वी की तुलना में सूर्य से दूर है, इसलिये उसे सूर्य के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में अधिक समय लगता है।
  • वास्तव में ‘अपोज़िशन’ की घटना केवल उन ग्रहों के लिये संभव है जो पृथ्वी की तुलना में सूर्य से अधिक दूरी पर हैं।
  • मंगल के संदर्भ में लगभग प्रत्येक दो वर्ष में सूर्य और मंगल के बीच से पृथ्वी गुज़रती है, ‘अपोज़िशन’ की घटना तब होती है जब तीनों एक सीधी रेखा में व्यवस्थित हो जाते हैं।
  • इसके अतिरिक्त पृथ्वी एवं मंगल द्वारा सूर्य की परिक्रमा किये जाने के दौरान एक ऐसा बिंदु आता है जब वे एक-दूसरे के विपरीत होते हैं, इसलिये वे बहुत दूर होते हैं अर्थात् मंगल ग्रह पृथ्वी से लगभग 400 मिलियन किमी. दूर होता है।
  • ‘अपोज़िशन’ के संदर्भ में हालाँकि मंगल और सूर्य, पृथ्वी के सीधे विपरीत दिशा में हैं।
  • गौरतलब है कि निकटतम दूरी सापेक्ष है और इसलिये भिन्न हो सकती है। नासा के अनुसार, लगभग 60,000 वर्षों के दौरान वर्ष 2003 में मंगल ग्रह पृथ्वी से ‘निकटतम दूरी’ पर था और यह वर्ष 2287 तक पृथ्वी के करीब नहीं होगा। 
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि पृथ्वी और मंगल की कक्षाएँ पूरी तरह से गोलाकार नहीं हैं तथा अन्य ग्रहों द्वारा गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के कारण उनकी आकृतियाँ थोड़ी बदल सकती हैं। उदाहरण के लिये बृहस्पति ग्रह मंगल की कक्षा को प्रभावित करता है

इसे ‘अपोज़िशन’ क्यों कहा जाता है?

  • नासा के अनुसार, पृथ्वी पर एक व्यक्ति के दृष्टिकोण से मंगल पूर्व में उगता है और पूरी रात रहने के बाद यह पश्चिम में अस्त हो जाता है जैसे- सूर्य पूर्व में उगता है और पश्चिम में अस्त होता है।
    • क्योंकि पृथ्वी के दृष्टिकोण से सूर्य और मंगल आकाश के विपरीत दिशा में दिखाई देते हैं, इसलिये मंगल को ‘अपोज़िशन’ में कहा गया है।


ऑकसोको अवर्सन

Oksoko Avarsan

हाल ही में यू.के. के एडिनबर्ग विश्वविद्यालय (University of Edinburgh) के शोधकर्त्ताओं ने टूथलेस, टू-फिंगर डायनासोर की एक नई प्रजाति ‘ऑकसोको अवर्सन’ (Oksoko Avarsan) की खोज की है जो लगभग 68 मिलियन वर्ष पहले पृथ्वी पर निवास करती थी।

oksoko-avarsan

प्रमुख बिंदु:

  • इस डायनासोर की तोते की तरह दिखाई देने वाली दाँत रहित एक चोंच थी। पंख वाले ये सर्वाहारी जीव लगभग दो मीटर लंबे होते थे।
  • इस नई प्रजाति के कई पूर्ण कंकाल मंगोलिया में गोबी मरुस्थल (Gobi Desert) से खोजे गए थे।

गोबी मरुस्थल (Gobi Desert):

Gobi-Desert

  • गोबी मरुस्थल पूर्वी एशिया में एक बड़ा रेगिस्तान या ब्रशलैंड (Brushland) क्षेत्र है। इसमें उत्तरी एवं पूर्वोत्तर चीन और दक्षिणी मंगोलिया के कुछ हिस्से शामिल हैं।
  • गोबी मरुस्थल के उत्तर में अल्ताई पर्वत और मंगोलिया के घास के मैदान एवं स्टेपी, पश्चिम में तकलामकान रेगिस्तान (Taklamakan Desert), दक्षिण-पश्चिम में हेक्सी कॉरिडोर (Hexi Corridor) तथा तिब्बती पठार एवं दक्षिण-पूर्व में यह उत्तर-चीन मैदान से घिरा हुआ है।

तकलामकान रेगिस्तान (Taklamakan Desert):

  • तकलामकान, उत्तर-पश्चिम चीन के दक्षिण-पश्चिम शिनजियांग क्षेत्र में एक रेगिस्तान है।
  • यह दक्षिण में कुनलुन पर्वत, पश्चिम एवं उत्तर में पामीर पर्वत और तियान शान (Tian Shan) तथा  पूर्व में गोबी रेगिस्तान से घिरा है।
  • यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शिफ्टिंग सैंड (Shifting Sand) मरुस्थल है।
  • गोबी एक वृष्टि छाया रेगिस्तान (Rain Shadow Desert) है। गौरतलब है कि तिब्बत का पठार हिंद महासागर से आने वाली मानसूनी पवनों को गोबी क्षेत्र में पहुँचने से रोकता है।
  • शोधकर्त्ताओं का मानना है कि ये प्रजातियाँ क्रेटेशियस काल (Cretaceous Period) से संबंधित हैं।

क्रेटेशियस काल (Cretaceous Period):

Dinosaur-Timeline

  • क्रेटेशियस काल मेसोज़ोइक युग (Mesozoic Era) का अंतिम और सबसे लंबा कालखंड था। 
  • क्रेटेशियस काल की अवधि लगभग 79 मिलियन वर्ष थी।
  • इस शोध को ‘रॉयल सोसाइटी ओपन साइंस’ (Royal Society Open Science) पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।


जलीय चूहों की नई प्रजाति

New Species of Aquatic Mice

हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने अफ्रीका महाद्वीप में कंगारू की तरह दिखाई देने वाले जलीय चूहों (Aquatic Mice) की दो नई प्रजातियों की खोज की है।

Aquatic-Mice

प्रमुख बिंदु:

  • 93 वर्ष पहले एक वैज्ञानिक ने इथियोपिया की एक जल धारा से एक जलीय चूहे को खोजा  था। अफ्रीका के सभी माइस (Mice), चूहों और जेरबिल्स (Gerbils) में से यह जलीय चूहा जल प्रतिरोधी रोवां (Water-Resistant Fur), चौड़े पैरों के साथ जल में रहने के लिये अनुकूल था।
    • इस जीनस का एकमात्र नमूना शिकागो के फील्ड म्यूज़ियम (Field Museum) में रखा हुआ है और वैज्ञानिकों का मानना था कि यह अब विलुप्त हो चुका है।
    • किंतु ‘ज़ूलॉजिकल जर्नल ऑफ द लिनियन सोसाइटी’ (Zoological Journal of the Linnean Society) में प्रकाशित एक नए अध्ययन में शोधकर्त्ताओं ने इस अर्द्ध-जलीय चूहे के सबसे नज़दीकी दो प्रजातियों की खोज की है।
  • शोधकर्त्ताओं ने दो मुख्य प्रकार के चूहों [निलोपेगामीस (Nilopegamys) एवं कोलोमीस (Colomys)] का अध्ययन किया।
    • निलोपेगामीस (जिसका अर्थ है ‘नील के उद्गम से प्राप्त चूहा’) वह जीनस है जिसे केवल वर्ष 1927 में एकत्र किये गए एक नमूने से जाना जाता है।
  • ‘निलोपेगामीस’ केवल इथियोपिया में पाया गया है, जबकि ‘कोलोमीस’ कांगो बेसिन और अफ्रीकी महाद्वीप के पश्चिमी भाग में पाया गया है।
  • ‘कोलोमीस’ (Colomys) को सामान्य तौर पर बढ़े हुए पैरों के लिये ‘स्टिल्ट माउस’ (Stilt Mouse) के रूप में जाना जाता है जो उथली जल धाराओं में कैडिसफ्लाई लार्वा (Caddisfly Larvae) जैसे जल में रहने वाले कीड़ों का शिकार करता है।
    • ये चूहे लंबे पैर वाले कंगारू की तरह होते हैं।
    • ये उथली जल धाराओं में शिकार करना पसंद करते हैं किंतु ये दलदली क्षेत्रों और यहाँ तक ​​कि नदियों में भी पाए गए हैं जो 3-4 फीट गहरी होती हैं।

Misc

  • शोधकर्त्ताओं ने विश्लेषणों से पता लगाया है कि ‘कोलोमीस’ (Colomys) जीनस के अंतर्गत दो नई प्रजातियाँ भी थीं जिनका वर्णन अभी तक नहीं किया गया है।
    • इन दो नई प्रजातियों को कांगो के प्रमुख नेता पैट्रिक लुमुम्बा (Patrice Lumumba) और लाइबेरिया के वोलोग्ज़ी पर्वत (Wologizi Mountains) के नाम पर क्रमशः कोलोमीस लुमुम्बाई (Colomys Lumumbai) और सी. वोलोग्ज़ी (C. Wologizi) नाम दिया गया है।

वोलोग्ज़ी पर्वत (Wologizi Mountains):

Mount-Wuteve

  • वोलोग्ज़ी पर्वत/माउंट वुटेवे (Mount Wuteve) लाइबेरिया में स्थित एक पर्वत है जिसका शिखर लाइबेरिया का सबसे ऊँचा स्थान माना जाता है। 
  • यह गिनी हाइलैंड्स रेंज (Guinea Highlands range) में स्थित है, जिसकी मूल श्रेणी पश्चिम अफ्रीका पर्वत (West Africa Mountains) है।
  • इसे स्थानीय लोमा (Loma) जनजाति के बीच माउंट वोलोग्ज़ी के रूप में भी जाना जाता है।
  • शोधकर्त्ताओं ने यह भी पाया कि एक उप-प्रजाति ने वास्तव में अपनी अलग प्रजाति का गठन किया और दूसरी प्रजाति की सीमा को संशोधित किया।
  • शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए डीएनए अध्ययन से पता चला है कि ‘निलोपेगामीस’, कोलोमीस का एक नज़दीकी जीनस है।

महत्त्व:

  • इन नई प्रजातियों के माध्यम से अफ्रीकी वर्षावनों की जैव विविधता को समझने और संरक्षित क्षेत्रों पर प्रकाश डालने में मदद मिलेगी।
    • कांगो बेसिन में कई विशाल क्षेत्र हैं जिनका पिछले 70 वर्षों में मुश्किल से ही अन्वेषण किया गया है, इन स्थानों पर राजनीतिक अस्थिरता के कारण यहाँ पहुँचना कठिन है।
  • इस शोध से प्राप्त निष्कर्ष सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयासों को सफल बनाने में मदद कर सकते हैं। 
    • COVID एक ज़ूनोटिक बीमारी है और ज़ूनोटिक बीमारी को समझने के लिये जैव विविधता अनुसंधान की आवश्यकता होती है।


ध्वनि की गति के लिये ऊपरी सीमा 

Upper Limit for Speed of Sound

लंदन के क्वीन मैरी विश्वविद्यालय (Queen Mary University), कैम्ब्रिज़ विश्वविद्यालय (University of Cambridge) और ट्राईटस्क (Troitsk) में ‘इंस्टीट्यूट फॉर हाई प्रेशर फिज़िक्स’  (Institute for High Pressure Physics) के बीच एक शोध सहयोग ने ध्वनि की सबसे तेज गति की खोज की है।

प्रमुख बिंदु: 

  • ध्वनि की गति की ऊपरी सीमा दो आयामहीन मूल स्थिरांक पर निर्भर करती है।
    • सूक्ष्म संरचना स्थिरांक (Fine Structure Constant) 
    • प्रोटॉन-टू-इलेक्ट्रॉन द्रव्यमान अनुपात (Proton-to-Electron Mass Ratio)
  • ये दो पहलू पहले से ही अंतरिक्ष को समझने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिये जाने जाते हैं।
  • ध्वनि की सबसे तेज़ गति लगभग 36 किमी. प्रति सेकंड है जो दुनिया में सबसे ठोस ज्ञात सामग्री ‘हीरे’ में ध्वनि की गति से लगभग दोगुनी है।
    • तरंगें जैसे- ध्वनि या प्रकाश तरंगें, ऊर्जा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाती हैं।
    • ध्वनि तरंगें विभिन्न माध्यमों जैसे-द्रव या गैस माध्यम में यात्रा कर सकती हैं और वे विभिन्न माध्यमों में इनकी गति अलग-अलग होती है। जैसे- द्रव या गैस की अपेक्षा ठोस माध्यम से इनकी गति तेज़ होती है।
  • आइंस्टीन का सापेक्षता का सिद्धांत निरपेक्ष गति सीमा निर्धारित करता है जिस पर एक तरंग यात्रा कर सकती है जो प्रकाश की गति है और लगभग 300,000 किमी. प्रति सेकंड के बराबर है। 
  • यह अध्ययन ‘साइंस एडवांसेज़’ (Science Advances) नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
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