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डोकरा धातु शिल्प
- 23 Dec 2022
- 3 min read
पश्चिम बंगाल का लालबाज़ार न केवल एक कला केंद्र है, बल्कि एक लोकप्रिय धातु शिल्प, डोकरा का केंद्र भी बन रहा है।
- वर्ष 2018 में पश्चिम बंगाल के डोकरा शिल्प को भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication- GI) टैग के साथ प्रस्तुत किया गया था।
डोकरा:
- डोकरा झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना जैसे राज्यों में रहने वाले ओझा धातुकर्मियों द्वारा प्रचलित बेल धातु शिल्प का एक रूप है।
- हालाँकि इस कारीगर समुदाय की शैली और कारीगरी भी अलग-अलग राज्यों में भिन्न है।
- ढोकरा या डोकरा को बेल मेटल क्राफ्ट के रूप में भी जाना जाता है।
- ढोकरा नाम ढोकरा डामर जनजातियों से लिया गया है, जो पश्चिम बंगाल के पारंपरिक धातुकर्मी हैं।
- लॉस्ट वैक्स कास्टिंग की उनकी तकनीक का नाम उनकी जनजाति के नाम पर ढोकरा धातु की ढलाई रखा गया है।
- डोकरा कलाकृतियाँ पीतल की हैं और इस मायने में अनूठी हैं कि इन टुकड़ों में कोई जोड़ नहीं होता है। यह तकनीक लॉस्ट वैक्स कास्टिंग और धातुशोधन का संयोजन है, जिसमें साँचे का उपयोग केवल एक बार किया जाता है और निर्माण के बाद तोड़ दिया जाता है, जिससे यह कला दुनिया में अपनी तरह की एकमात्र कला बन जाती है।
- यह जनजाति झारखंड से लेकर ओडिशा, छत्तीसगढ़, राजस्थान और केरल तक फैली हुई है।
- लॉस्ट वैक्स कास्टिंग की उनकी तकनीक का नाम उनकी जनजाति के नाम पर ढोकरा धातु की ढलाई रखा गया है।
- प्रत्येक मूर्ति को बनाने में लगभग एक माह का समय लगता है।
- मोहनजोदड़ो (हड़प्पा सभ्यता) की नृत्यांगना सबसे पुरानी ढोकरा कलाकृतियों में से एक है जिसे अब जाना जाता है।
- डोकरा कला का उपयोग अभी भी कलाकृतियों, सामान, बर्तनों और आभूषणों को बनाने के लिये किया जाता है।
अन्य शिल्प:
- कांस्य शिल्प:
- दुर्लभ जैन चित्र और चिह्न (कर्नाटक)
- पहलदार लैंप (जयपुर और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से)
- पेम्बरथी शिल्प (तेलंगाना)
- अन्य धातु शिल्प:
- राजस्थान की मारोड़ी कृति
- तारकशी (राजस्थान)
- बिदरी क्राफ्ट (कर्नाटक)
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