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नेपाल के नागरिकता कानून को लेकर विवाद

  • 26 Sep 2022
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नेपाल के राष्ट्रपति ने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2006 के संसोधन विधेयक को पुनर्विचार के लिये नेपाल संसद के निचले सदन में वापस भेज दिया।

नागरिकता कानून से संबंधित विवाद का कारण:

  • परिचय:
    • वर्ष 2006 में नेपाल में राजशाही के पतन और उसकी शासन प्रणाली में लोकतांत्रिक रूप से परिवर्तन के बाद वर्ष 2015 में एक संविधान को अपनाने के बाद बहुदलीय प्रणाली का उदय हुआ।
      • इसके कारण संविधान लागू होने से पूर्व जन्म लेने वाले सभी नेपाली नागरिकों को प्राकृतिक नागरिकता मिल गई।
      • लेकिन इनके बच्चे नागरिकता से विहीन हो गए हैं क्योंकि इस मुद्दे को एक संघीय कानून द्वारा निर्देशित किया जाना था, जिसे अभी तक तैयार नहीं किया गया है।
        • हाल के संशोधन से नागरिकता से विहीन युवाओं और उनके माता-पिता के लिये नागरिकता का मार्ग प्रशस्त होने की उम्मीद है।
  • अधिनियम में निहित मुद्दे:
    • लैंगिक भेद-भाव:
      • यह लैंगिक न्याय के स्थापित मापदंडों के विरुद्ध है, एक नए संशोधन के अनुसार नेपाली नागरिकता वाले पिता या माता से पैदा हुए व्यक्ति को वंश के आधार पर नागरिकता मिल सकती है।
      • साथ ही, एक व्यक्ति जो एक नेपाली माँ (जो देश में रह चुकी है) एक अज्ञात पिता से पैदा हुआ है, उसे भी वंश के आधार पर नागरिकता मिलेगी।
        • लेकिन यह प्रावधान उस महिला के लिये अपमानजनक है, क्योंकि बच्चे को नागरिकता के लिये आवेदन करने हेतु उसके पति को अज्ञात घोषित करना पड़ता है।
        • इसके अलावा नेपाली पिता के मामले में ऐसी किसी घोषणा की आवश्यकता नहीं है।
    • प्रकृति में विरोधाभासी:
      • यदि कोई बच्चा नेपाली माँ और विदेशी नागरिकता रखने वाले पिता से उत्पन्न हुआ है, तो उसे प्राकृतिक नागरिकता मिल सकती है।
        • यह माँ (और बच्चे) पर स्थायी निवास की शर्त रखता है जो बच्चे के लिये नागरिकता प्रदान करने का निर्धारण करेगा।
    • कानून की त्रुटिपूर्ण प्रकृति:
      • यदि कोई व्यक्ति जो नेपाली माँ और अज्ञात पिता से संतान के रूप में जन्म लेता है, को वंश के आधार पर नागरिकता दी जा सकती है, हालाँकि अज्ञात पिता विदेशी नागरिक है, तो वंश द्वारा नागरिकता को प्राकृतिक नागरिकता में बदल दिया जाएगा।

इस संशोधन की आवश्यकता:

  • नेपाली पुरुष विशेष रूप से तराई क्षेत्र वाले, उत्तरी भारत की महिलाओं से शादी करना जारी रखते हैं तो इससे उनकी नेपाली पहचान प्रभावित हो सकती है।
  • "बेटी-रोटी" मुद्दा (भारतीय महिलाओं से शादी करने वाले नेपाली पुरुष), कई महिलाएँ नेपाल की नागरिक नहीं बन सकीं क्योंकि नेपाल में नागरिकता के लिये आवेदन करने से पहले उन्हें सात वर्ष की पुनर्विचार अवधि के अधीन किया गया था।
  • चूँकि ऐसी महिलाएँ नागरिकता विहीन थीं, ऐसे परिवारों के बच्चे भी अक्सर नेपाली नागरिकता विहीन पाए जाते थे।
  • इसलिये नए संशोधनों ने इन नागरिकता विहीन महिलाओं के लिये पुनर्विचार-अवधि को समाप्त कर दिया है।
  • इससे ऐसे परिवारों के बच्चों को फायदा होगा जहाँ माँ और बच्चे सालों तक नागरिकता विहीन रहे हों

स्रोत: द हिंदू

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