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सामाजिक न्याय

भारत में सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा

  • 11 Mar 2021
  • 11 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में शिक्षा के केरल मॉडल व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

नेल्सन मंडेला ने अपने प्रसिद्ध उद्धरण “शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिये कर सकते हैं”, के माध्यम से इस तथ्य को रेखांकित किया कि शिक्षा, ‘अज्ञानता, गरीबी, सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार’ के बंधनों से मुक्ति प्राप्त करने का साधन (या मुक्तिदाता) है।

इसी विचारधारा को मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) में अनुच्छेद 26 में निहित/प्रतिस्थापित किया गया है, जिसमें कहा गया था कि प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा का अधिकार प्राप्त है। हालाँकि UDHR के जारी होने के सात दशक बाद भी वैश्विक स्तर पर 58 मिलियन बच्चे स्कूलों से बाहर हैं और 100 मिलियन से अधिक बच्चे प्राथमिक शिक्षा पूरी करने से पहले ही स्कूली शिक्षा प्रणाली से बाहर हो जाते हैं। 

विडंबना यह है कि भारत जो कभी "विश्व गुरु" का स्थान रखता था, वर्तमान में सबसे अधिक ‘स्कूल से बाहर’ या ‘आउट ऑफ स्कूल’ बच्चों वाले देशों की सूची में सबसे ऊपर है। हालाँकि भारत के केरल राज्य ने आशा की किरण दिखाई है, क्योंकि यह अब संपूर्ण प्राथमिक शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने के वाले देश के पहले राज्य के रूप में घोषित होने के लिये बिल्कुल तैयार है।

इस संदर्भ में देश के अन्य राज्य (विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और असम), जिनका प्रदर्शन देश में प्राथमिक शिक्षा स्तर  के मामले में खराब रहा है, वे केरल शिक्षा मॉडल का अनुकरण कर सकते हैं।

शिक्षा का केरल मॉडल: 

  • केरल, जिसने बहुत पहले वर्ष 1991 में ही पूर्ण साक्षरता के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया था, ने एक बार स्वयं को  पुनः प्रमाणित करते हुए दिखा दिया है कि प्राथमिक स्तर पर भी पूर्ण साक्षरता के लक्ष्य को प्राप्त करना संभव है।
  • हालाँकि इस सफलता की जड़ों को वर्ष 1817 के रानी गौरी पार्वती बाई के ऐतिहासिक शाही निर्देश से जोड़कर देखा जा सकता है, जिसके तहत शिक्षा को राज्य की "ज़िम्मेदारी" के रूप में घोषित किया गया था। 
  • इसके साथ ही निर्देश में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कि शिक्षा के लिये निर्दिष्ट खर्च तय करने के लिये “राजनीतिक अर्थव्यवस्था” की अपेक्षा  "राजनीतिक इच्छाशक्ति" अधिक महत्त्वपूर्ण है।    
  • क्रमिक रूप से चुनी गई सरकारों के प्रयासों के परिणामस्वरूप केरल देश में उच्चतम साक्षरता दर और सौ प्रतिशत प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा नामांकन के लिये जाना जाता है।
  • प्राथमिक शिक्षा को सार्वभौमिक बनाने के लिये केरल सरकार ने अक्तूबर 2014 में ‘अथुल्यम’ (Athulyam) नामक एक विशेष योजना की शुरुआत की।   
  • इसके तहत व्यापक सर्वेक्षणों के माध्यम से पंचायतों में रहने वाले ऐसे लोगों की पहचान की गई जिन्होंने अब तक अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी नहीं की थी या जिन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने से पहले ही कुछकारणों से स्कूल छोड़ दिया था। इसके अगले चरण में उन्हें फिर से अध्ययन करने और परीक्षा में बैठने के लिये राजी करने के प्रयास किया गया। 
  • इसके पश्चात् उन्हें पाँच माह का प्रशिक्षण प्रदान किया गया, जिससे वे चौथी कक्षा के समकक्ष परीक्षा में शामिल हो सकें।
  • प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने केरल की आर्थिक और सामाजिक सफलता का श्रेय इस राज्य में स्कूली शिक्षा के विस्तार की निरंतरता को दिया है, जो सार्वजनिक नीतियों और कार्रवाई पर आधारित रही है।

शिक्षा के सार्वभौमिकरण में चुनौतियाँ: 

भारत का संविधान 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिये निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रावधान  करता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये भारत सरकार द्वारा ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009’ लागू किया गया। हालाँकि प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण का लक्ष्य अभी भी हमारी पहुँच से बहुत दूर है। इसके लिये उत्तरदायी कारकों में से कुछ निम्नलिखित हैं:

  • कम सार्वजनिक व्यय: भारत ‘इंचियोन घोषणा’ (Incheon Declaration) का एक हस्ताक्षरकर्त्ता देश है और इस घोषणा में यह  उम्मीद की जाती है कि सदस्य देशों द्वारा ‘सतत् विकास लक्ष्य (SDG)-4’ को प्राप्त करने के लिये शिक्षा पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का 4-6% खर्च किया जाएगा।
  • निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी:  कई रिपोर्ट और उपलब्ध आँकड़े शिक्षा क्षेत्र में बढ़ते निजीकरण को रेखांकित करते हैं। इसके साथ ही एक बड़ी संख्या ऐसे बच्चों की भी है जो प्राथमिक स्तर पर ही शिक्षण प्रणाली से बाहर हो रहे हैं तथा प्रणालीगत अक्षमताओं के कारण शिक्षा की लागत बढ़ रही है और कई छात्र डेटा व लैपटॉप जैसे संसाधनों के अभाव में आत्महत्या करने को विवश हो जाते हैं।
  • गुणवत्ता का मुद्दा: अनिवार्य शिक्षा के सार्वभौमिकरण के वांछित लक्ष्य प्राप्त करने में विफलता का एक कारण यह भी रहा है कि प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता को नहीं बनाए रखा जा सका है।
    • पिछले कई वर्षों से ‘असर’ (ASAR) सर्वेक्षण लगातार देश के विभिन्न राज्यों में प्राथमिक शिक्षा में सीखने के परिणामों की खराब स्थिति को दर्शाता रहा है।
  • अन्य कारक: माता-पिता की निरक्षरता और अनदेखी, स्कूल तथा स्थानीय समुदाय के बीच सहयोग की कमी एवं शिक्षकों की भर्ती में भ्रष्टाचार जैसे कारक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के लक्ष्य को प्रभावित करते हैं।

आगे की राह:  

  • सरकार की सक्रिय भूमिका: शिक्षा को सार्वभौमिक बनाने के लिये राज्य को स्कूली स्वास्थ्य, मध्याह्न भोजन, पाठ्य पुस्तकों की मुफ्त आपूर्ति, लेखन सामग्री, स्कूल की वर्दी आदि जैसी सहायक सेवाएँ प्रदान करने हेतु संसाधन जुटाने चाहिये।
    • केरल मॉडल से पता चलता है कि पोषण, स्वास्थ्य, स्वच्छता आदि से संबंधित व्यापक हस्तक्षेप मानव विकास में स्थायी वृद्धि/बढ़त प्राप्त करने में सहायता कर सकता है।  
  • सामाजिक लेखापरीक्षण: प्रत्येक गाँव या शहरी क्षेत्र में एक गाँव या मोहल्ला स्कूल समिति को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये।
    • ऐसी समिति भवनों, खेल के मैदानों और स्कूल के बगीचों के निर्माण और रखरखाव, सहायक सेवाओं के प्रबंधन, उपकरणों की खरीद, आदि की देखरेख करेगी।
    • अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिये समिति के पास राज्य सरकार से दान और अनुदान सहायता के माध्यम से पर्याप्त धनराशि होगी।
    • उदाहरण के रूप में केरल की क्रमिक सरकारों ने शिक्षा के लिये पूंजी परिव्यय में वृद्धि के साथ-साथ स्थानीय निकायों के माध्यम से शिक्षा के विकेंद्रीकृत वित्तपोषण को बढ़ावा दिया है।
  • सिविल सोसाइटी की भागीदारी को प्रोत्साहन:  केरल की सफलता सरकार के विभिन्न विभागों, अधिकारियों, स्वयंसेवकों, गैर-सरकारी संस्थाओं और मैत्रीपूर्ण संगठनों के सामूहिक प्रयासों के कारण ही संभव हो सकी है।

निष्कर्ष:  

व्यापक साक्षरता के लिये सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह आर्थिक विकास, सामाजिक संरचना के आधुनिकीकरण और लोकतांत्रिक संस्थानों के प्रभावी कामकाज हेतु एक बुनियादी आवश्यकता है। 

साथ ही यह सभी नागरिकों को अवसर की समानता प्रदान करने के लिये आवश्यक अनिवार्य पहला कदम होगा। ऐसे में समग्र रूप से भारतीय समाज द्वारा प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण को प्राप्त करने के लिये आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिये।

अभ्यास प्रश्न:   “भारत, जो कभी "विश्व गुरु" का स्थान रखता था, वर्तमान में ‘स्कूल से बाहर’ या ‘आउट ऑफ स्कूल’ बच्चों वाले देशों की सूची में सबसे ऊपर है।” इस कथन के संदर्भ में भारत में प्राथमिक शिक्षा तंत्र की प्रमुख चुनौतियों और प्राथमिक शिक्षा के सवाभौमिकीकरण के लक्ष्य की प्राप्ति में शिक्षा के  ‘केरल मॉडल’ के अनुकरण के महत्त्व की समीक्षा कीजिये।

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