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न्यूनतम मासिक आय (Universal Basic Income-UBI)

  • 04 Feb 2019
  • 18 min read

संदर्भ


2019 के आम चुनाव बहुत दूर नहीं हैं और इसके मद्देनज़र देश के दो बड़े राजनीतिक दल लोक-लुभावन वादों की पोटली खोलकर बैठे हैं। इन्हीं में से एक है न्यूनतम मासिक आय (Universal Basic Income-UBI), जिसका अर्थ है सरकार की तरफ से देश के हर नागरिक को एक निश्चित मासिक आय देना। भारत में इसे सभी गरीब परिवारों पर लागू करने की बात चल रही है। बेशक सरकार ने अंतरिम बजट में इसका कोई उल्लेख नहीं किया, फिर भी यह मुद्दा लगातार चर्चा में बना हुआ है।

सिक्किम कर रहा है UBI लागू करने की तैयारी


सिक्किम सरकार ने राज्य में UBI लागू करने का प्रस्ताव रखा है। यदि सिक्किम सरकार ऐसा करने में सफल हो जाती है तो ऐसा करने वाला वह देश का पहला राज्य होगा।

आज़ादी से पहले भी हुई थी कोशिश


1938 में भी देश में आय की गारंटी देने की योजना पर विचार किया गया था। 1964 में भी सरकार ने इसे ठंडे बस्ते से निकालना चाहा था, लेकिन बात नहीं बनी। 2011-12 में बेहद छोटे स्तर पर इसे मध्य प्रदेश के एक गाँव में लागू किया गया। इसके बाद 2017-18 के आर्थिक सर्वेक्षण में इसका ज़िक्र किया गया था।

क्या है UBI?


लंदन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर Guy Standing ने गरीबी हटाने के लिये अमीर-गरीब, सबको एक निश्चित अंतराल पर तयशुदा रकम देने का विचार पेश किया था। उनके विचार के तहत इस योजना का लाभ लेने के लिये किसी भी व्यक्ति को अपनी कमज़ोर सामाजिक-आर्थिक स्थिति अथवा बेरोज़गारी का सबूत देने की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिये। ऐसे में कह सकते हैं कि UBI देश के प्रत्येक नागरिक को एक निश्चित समयांतराल पर दिया जाने वाला बिना शर्त नकद हस्तांतरण है।

क्या है प्रो. स्टैंडिंग की थ्योरी?


प्रो. स्टैंडिंग के मुताबिक, भारत में UBI को लागू करने पर GDP का 3 से 4 प्रतिशत खर्च आएगा, जबकि अभी कुल GDP का 4 से 5 प्रतिशत सरकार सब्सिडी में खर्च कर रही है। आर्थिक सर्वे 2016-17 में भी योजना को लागू करने के लिये जो तीन सुझाव दिये गए थे, उनमें पहला सुझाव सबसे गरीब 75 प्रतिशत आबादी को लाभ दिये जाने का था। इसमें कहा गया था कि इस पर GDP का 4.9 प्रतिशत हिस्सा खर्च होगा।

प्रो. स्टैंडिंग के मुताबिक, UBI और सब्सिडी दोनों साथ नहीं चल सकते। सरकार का वित्तीय अनुशासन प्रभावित नहीं हो, इसके लिये सरकार सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से हटा सकती है और सब्सिडी पूरी तरह खत्म हो सकती है। इसकी जगह निश्चित रकम सीधे लोगों के खाते में जाती रहेगी।

UBI अवधारणा की दो मुख्य विशेषताएँ

  • यह अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक (Universal) है, लक्षित (Targeted) नहीं। यह बिना शर्त होने वाला नकदी हस्तांतरण है, जिसके लिये किसी भी प्रकार की पहचान साबित करने की आवश्यकता नहीं है।
  • UBI एक न्यूनतम आधारभूत आय की गारंटी है जो प्रत्येक नागरिक को बिना किंतु-परंतु किये हर माह सरकार द्वारा दी जाएगी। इसके लिये व्यक्ति को केवल उस देश का नागरिक होना ज़रूरी होता है, जहाँ इसे लागू किया जाना है।

2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में हुआ था ज़िक्र


2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में UBI का जिक्र किया गया था। इस सर्वे में कहा गया था कि भारत में केंद्र सरकार की तरफ से प्रायोजित कुल 950 योजनाएँ हैं और GDP बजट आवंटन में इनकी हिस्सेदारी लगभग 5% है। ऐसी ज़्यादातर योजनाएँ आवंटन के मामले में छोटी हैं और टॉप 11 स्कीमों की कुल बजट आवंटन में हिस्सेदारी 50% है। इसे ध्यान में रखते हुए सर्वे में UBI को मौजूदा स्कीमों के लाभार्थियों के लिये विकल्प के तौर पर पेश करने का प्रस्ताव दिया गया है। सर्वे के अनुसार, 'इस तरह से तैयार किये जाने पर UBI न सिर्फ जीवन स्तर को बेहतर कर सकता है, बल्कि मौजूदा योजनाओं का प्रशासनिक स्तर भी बेहतर कर सकता है।'

तब आर्थिक सर्वेक्षण में UBI को लेकर 40 पेज का एक मसौदा तैयार किया गया था। उस मसौदे में कहा गया था कि UBI भारत में व्याप्त गरीबी का एक संभव समाधान हो सकता है। चूँकि कल्याणकारी योजनाएँ उम्मीद पर खरा नहीं उतर पा रही हैं, इस वज़ह से भी इसे सार्थक कदम बताया गया था। उस दौरान मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने कहा था, ‘UBI जैसी योजना हमें सामाजिक न्याय दिलाने के साथ मज़बूत अर्थव्यवस्था बनने में मददगार साबित हो सकती है।' 

इस आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक देश के सबसे गरीब 25 प्रतिशत परिवारों को 7,620 रुपए वार्षिक दिये जाने का प्रस्ताव रखा गया था। लेकिन इसकी लागत और कई तरह की सब्सिडी वापस लिये जाने में आने वाली दिक्कतों के मद्देनज़र इसे लागू नहीं किया गया। तब इससे राजकोष पर लगभग 7 लाख करोड़ रुपए का भार पड़ने का अनुमान लगाया गया था। 

देश में गरीबी का आकलन


देश में गरीबी रेखा के दायरे में कौन-कौन आता है, इसका आकलन ठीक से नहीं हो पाया है। तेंदुलकर फॉर्मूले फॉर्म्युले में 22 प्रतिशत आबादी को ‘गरीब’ बताया गया था, जबकि रंगराजन फॉर्मूले ने 29.5 प्रतिशत आबादी को गरीबी रेखा से नीचे माना था। इसके बावजूद सरकार आर्थिक और सामाजिक रूप से कमज़ोर वर्ग को एक निश्चित धनराशि की मदद ले सकती है। एक अनुमान के अनुसार UBI स्कीम के तहत पहले देशभर के करीब 20 करोड़ ज़रूरतमंदों को फायदा मिलेगा।

स्विट्ज़रलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक मंच (WEF) 2018 सम्मेलन के दौरान UBI पर कई सत्रों में चर्चा हुई थी।

मध्य प्रदेश में हो चुका है सफल पायलट प्रोजेक्ट


यूनिवर्सल बेसिक इनकम मध्य प्रदेश की एक पंचायत में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया था, जिसके काफी अच्छे परिणाम देखने को मिले थे। इंदौर के 8 गाँवों के 6000 लोगों को 2010 से 2016 के बीच इस योजना में लाया गया था। इसमें पुरुष और महिलाओं को 500 रुपए और बच्चों को हर महीने 150 रुपए दिये गए। 5 सालों में स्कीम का लाभ मिलने के बाद इनमें से अधिकांश लोगों ने अपनी आय बढ़ने की बात स्वीकारी।

UBI की राह में आने वाली संभावित चुनौतियाँ


सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत जैसे विकासशील और जनसंख्या में विश्व में दूसरा स्थान रखने वाले देश की अर्थव्यवस्था यह बोझ उठाने में सक्षम है और इसको लागू करने की राह में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • इसको लेकर सबसे बड़ा विवाद इस बात पर है कि असमानताओं और विविधताओं से भरे देश में इसका लाभ किस-किस को मिलना चाहिये?

वैसे इस योजना से जुड़े अधिकांश लोग यह मानते हैं कि UBI योजना तभी सफल हो सकती है जब इसका लाभ सभी को मिले। प्रो. स्टैंडिंग भी यह मानते हैं कि यह योजना तभी सफल होगी, जब हर नागरिक को एक न्यूनतम आय हर महीने मिले और इसमें अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं होना चाहिये। यदि ऐसा किया जाता है तो यह योजना अपने मूल रूप में यूनिवर्सल नहीं रहेगी। इससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा और अन्य विवादों के उभरने की संभावना भी बनी रहेगी।

  • लेकिन आर्थिक सर्वे 2016-17 में स्पष्ट कहा गया है कि UBI के दायरे में देश की पूरी आबादी को नहीं लाया जा सकता, इसलिये इसके वास्तविक लाभार्थियों की पहचान करना सबसे बड़ी चुनौती है।
  • सर्वे में जो तीन सुझाव दिये गए थे, उनमें एक को भी आधार मानकर UBI की शुरुआत की जाती है तो वास्तविक हकदार के योजना से बाहर छूटने की आशंका बनी रहेगी, जैसा कि हर कल्याणकारी योजना के साथ होता है।
  • देश में अब लगभग सभी के पास अपनी विशिष्ट आधार संख्या है, उस नंबर से जुड़े बैंक खाते में हर महीने एक तय धनराशि पहुँचाई जा सकती है, जैसे-LPG सब्सिडी के मामले में अभी किया जा रहा है।
  • यहाँ जो बात गौर करने वाली है वह यह कि बेशक आधार हर व्यक्ति की पहचान को स्थापित करता है, लेकिन यह लोगों का वर्गीकरण नहीं करता। ऐसे में लाभार्थी की बेहतर तरीके से पहचान किये बिना UBI पर आगे बढ़ना ठीक नहीं होगा। 
  • सबसे जटिल प्रश्न यह है कि UBI का ‘मान’ क्या होगा? यदि यह गरीबी रेखा हो तो ग्रामीण क्षेत्र में 32 रुपए एवं शहरी क्षेत्र में औसतन 40 रुपए के अनुसार लगभग 1200 रुपए प्रतिमाह व 19,400 रुपए प्रतिवर्ष होते हैं। क्या इससे व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकता ?

UBI लागू करने के बाद खत्म हो जाता है सब्सिडी सिस्टम

इसमें कोई दो राय नहीं है कि UBI का विचार भारत की जनता के स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य नागरिक सुविधाओं में सुधार के साथ उनके जीवन-स्तर को ऊपर उठाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास हो सकता है, लेकिन यह तब तक संभव नहीं है जब तक कि वर्तमान में सभी योजनाओं के माध्यम से दी जा रही सब्सिडीज़ चरणबद्ध तरीके से खत्म नहीं कर दी जातीं। यह बात ध्यान में रखनी होगी कि UBI योजना शुरू होते ही सब्सिडी सिस्टम खत्म कर दिया जाता है। इसके लिये समाज कल्याण की योजनाओं को बंद करना पड़ेगा या उनमें कटौती करनी पड़ेगी। सार्वजनिक क्षेत्र में निजी निवेश को लाने की मंज़ूरी देने के साथ अतिरिक्त टैक्स लगाकर संसाधन जुटाने की ज़रूरत भी पड़ सकती है।

विदेशों में भी हो चुके हैं प्रयोग

ऐसा नहीं है कि UBI की चर्चा सिर्फ भारत में ही हो रही है, बल्कि विदेशों में भी इसको लागू करने के लिये प्रयोग चल रहे हैं।

  • अमेरिका में कैलिफोर्निया राज्य के स्टॉकटन में इसे आंशिक रूप से लागू करने पर विचार हो रहा है। यहाँ के 100 लोगों को प्रतिमाह 500 डॉलर डेढ़ साल तक दिये जाएंगे।
  • फिनलैंड ने जनवरी 2017 में 25 से 58 वर्ष के 2000 लोगों को UBI की सुविधा दी थी, लेकिन दो वर्ष बाद ही इसे बंद कर दिया। इन सभी लोगों को 560 यूरो प्रतिमाह दिये जाते थे।
  • UBI का अब तक का सबसे बड़ा प्रयोग अफ्रीकी देश केन्या में शुरू हुआ है। अमेरिकी चैरिटी संस्था GiveDirectly ने आधिकारिक तौर पर ग्रामीण केन्या UBI का परीक्षण शुरू किया है। केन्या के लगभग 120 गाँवों के सभी निवासियों पर यह प्रयोग किया जा रहा है। इनमें कुल मिलाकर 16 हज़ार से अधिक लोग शामिल हैं, जिन्हें प्रयोग के बिना शर्त दौरान कुछ-न-कुछ नकद हस्तांतरण दिया जा रहा है। इनमें से कुछ गाँवों को 12 वर्षों के लिये UBI की सुविधा दी जानी है।
  • ब्राज़ील के कुछ इलाकों में भी प्रायोगिक तौर पर UBI की सुविधा दी जा रही है। 2004 में वहाँ Bolsa Familia Program शुरू किया गया था, जिसके तहत परिवारों को बच्चों सहित एक निश्चित धनराशि देनी शुरू की गई। 2013 तक प्रत्येक परिवार को लगभग 30 डॉलर प्रतिमाह की सहायता दी गई, जो तत्कालीन न्यूनतम मज़दूरी का 4.4 प्रतिशत था। जब इसके नतीजों पर नज़र डाली गई तो पता चला कि इससे ब्राज़ील को कुपोषण का स्तर कम करने में सहायता मिली।
  • ईरान ने भी 2011 में UBI जैसी योजना चलाई, जिसका उद्देश्य गैस और पेट्रोलियम पर मिलने वाली सब्सिडी को समाप्त करना था। पहले-पहल तो इस योजना से ईंधन के दामों में बढ़ोतरी देखी गई, लेकिन कुछ समय बाद स्थिति सामान्य हो गई। इसके तहत प्रत्येक परिवार को लगभग 40 डॉलर प्रतिमाह दिये गए।
  • 2005 से 2009 के बीच मेक्सिको सरकार ने Programa de Apoyo नाम की नीति पेश की, जिसके तहत प्रत्येक परिवार को न्यूनतम मजदूरी दर की 10 प्रतिशत राशि या उसके बराबर खाद्यान्न दिया जाना था। लेकिन इसके कार्यान्वयन में बरती गई लापरवाहियों के कारण इसे रद्द कर दिया गया।
  • एक पायलट परियोजना के तहत अल्पविकसित अफ्रीकी देश नामीबिया के दो गाँवों में भी 2008-09 के बीच एक साल की अवधि के लिये UBI की सुविधा दी गई थी। जर्मन प्रोटोस्टेंट चर्च द्वारा वित्त पोषित इस योजना से इस समयावधि में उन गाँवों की खाद्यान्न समस्या कम हो गई थी।
  • स्विट्ज़रलैंड ने भी पिछले साल इस पर जनमत संग्रह किया परंतु UBI के वित्तीय प्रभाव और इसकी वज़ह से लोगों में काम करने की प्रेरणा के खत्म होने की आशंका से वहाँ की जनता ने इसे खारिज कर दिया।

UBI पर नीति आयोग का रुख


2017 में नीति आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने कहा था...

देश के पास UBI योजना के लिये आवश्यक वित्तीय संसाधन नहीं हैं। आय के मौज़ूदा स्तर पर और स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढाँचा तथा रक्षा क्षेत्र में निवेश के सापेक्ष देश के पास 130 करोड़ भारतीयों के लिये उचित UBI के लिहाज़ से पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। 2011-12 को आधार वर्ष मानते हुए तेंदुलकर समिति ने गरीबी रेखा पर जो रिपोर्ट सौंपी थी, उसके मद्देनजर इस स्कीम को अमल में लाने के लिये भारी धनराशि की ज़रूरत होगी। आधार वर्ष 2011-12 पर तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट के हिसाब से शहरी गरीबी रेखा 1000 रुपए प्रति व्यक्ति मासिक की है। 2011-12 के दौरान मुद्रास्फीति और मौजूदा कीमतों को देखते हुए यह आँकड़ा काफी बड़ा होगा। लेकिन हर भारतीय को प्रतिमाह 1000 रुपए ट्रांसफर करने की कुल लागत 15.6 लाख करोड़ (1000x12महीनेx130 करोड़ आबादी) रुपए प्रतिवर्ष होगी...और देश के पास इतने परिमाण में वित्तीय संसाधन नहीं हैं।

जहाँ तक भारत का प्रश्न है तो क्या UBI अन्य कल्याणकारी योजनाओं को प्रतिस्थापित कर सकेगी? यदि हाँ, तो सरकारी सहायता के अभाव और मांग में वृद्धि से उत्पन्न महँगाई को UBI कैसे संतुलित कर पाएगी? यह देखने में आया है कि जिन देशों में भी इस प्रकार के प्रयास जिन राष्ट्रों ने आय योजना के साथ प्रयोग किये हैं, वे या तो समाजवाद से प्रभावित रहे हैं या वहाँ कल्याणकारी राजनीति का गहरा प्रभाव है।

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